भिंडी की अगेती खेती से कर सकते हैं ज्यादा आमदनी
बीज की मात्रा बुआई का तरीका
उद्यानविभाग के सहायक निदेशक राजेंद्र कुमार सामोता ने बताया कि सिंचित अवस्था में 2.5 से 3 किग्रा तथा असिंचित दशा में 5-7 किग्रा प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है। हाईब्रिड किस्मों के लिए 5 किग्रा प्रति हैक्टेयर की बीज दर पर्याप्त होती है। बीज बोने से पहले खेत तैयार करने के लिए 2-3 बार जुताई करनी चाहिए। ग्रीष्मकालीन भिंडी की बुआई कतारों में करनी चाहिए। कतार से कतार की दूरी 25-30 सेमी एवं कतार में पौधे से पौधे की दूरी 15-20 सेमी रखनी चाहिए। बीज की 2 से 3 सेमी गहरी बुआई करें। बुआई से पहले बीजों को 3 ग्राम मेन्कोजेब कार्बेन्डाजिम प्रति किलो की दर से उपचारित करना चाहिए। अच्छा उत्पादन लेने के लिए प्रति हैक्टेयर क्षेत्र में लगभग 15-20 टन गोबर की खाद एवं नत्रजन, स्फुर एवं पोटाश क्रमशः 80 किग्रा, 60 किग्रा एवं 60 किग्रा प्रति हैक्टेयर की दर से मिट्टी में देना चाहिए।
गर्म नम वातावरण भिंडी के लिए होता है श्रेष्ठ
भिंडीके लिए लंबी अवधि का गर्म नम वातावरण श्रेष्ठ माना जाता है। बीज उगने के लिए 27-30 डिग्री सेग्रे तापमान उपयुक्त होता है तथा 17 डिग्री सेग्रे से कम पर बीज अंकुरित नहीं होता। यह फसल ग्रीष्म तथा खरीफ दोनों ही ऋतुओं में उगाई जाती है। भिंडी को उत्तम जल निकास वाली सभी तरह की जमीन में उगाया जा सकता है। भूमि की दो-तीन बार जुताई कर भुरभुरी कर मेज चलाकर समतल कर लेना चाहिए।
खेतीको खरपतवार से रखें दूर : भिंडीकी खेती की नियमित निराई-गुड़ाई कर खेत को खरपतवार मुक्त रखना चाहिए। बुआई के 15-20 दिन बाद प्रथम निराई-गुड़ाई करना जरूरी रहता है।
राधेश्याम तिवारी | अलवर
भिंडीकी अगेती खेती कर किसान अधिक लाभ कमा सकते हैं। भिंडी का सब्जियों में प्रमुख स्थान है। ग्रीष्मकालीन भिंडी की बुआई के लिए फरवरी-मार्च माह पीक समय होता है। यदि फसल लगातार लेनी है तो वर्षाकालीन भिंडी की बुआई जून-जुलाई में की जा सकती है। अलवर जिले में लगभग 9.60 हैक्टेयर भूमि में भिंडी की खेती की जाती है। प्रदेश के सभी जिलों में इसकी खेती की जा सकती है। कृषि विस्तार उपनिदेशक पीसी मीणा ने बताया कि भिंडी में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, खनिज लवणों जैसे कैल्शियम, फाॅस्फोरस के अलावा विटामिन ए, बी सी थाईमीन पाया जाता है। भिंडी में आयोडीन की मात्रा अधिक होती है। मीणा ने बताया कि अधिक उत्पादन तथा मौसम की उपज प्राप्त करने के लिए देशी हाईब्रिड भिंडी की वैरायटी का विकास कृषि वैज्ञानिकों ने किया है। ये वैरायटी यलो वेन मोजेक वाइरस रोग को सहन करने की अधिक क्षमता रखती हैं। इसलिए वैज्ञानिक विधि से खेती करने पर उच्च गुणवत्ता का उत्पादन कर सकते हैं। जिले में राजगढ़, प्रतापगढ़, थानागाजी, उमरैण, कोटकासिम, खेड़ली, मालाखेड़ा आदि इलाकों में भिंडी की फसल बहुतायत में होती है।
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