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146 साल पुरानी महू-ओंकारेश्वर मीटरगेज ट्रेन बंद:अंग्रेजों ने होलकर स्टेट से 1 करोड़ का लोन लेकर बिछाया था ट्रैक

देवेंद्र मीणा, इंदौर2 महीने पहले
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महू से ओंकारेश्वर रोड जाने वाली 146 साल पुरानी इकलौती मीटरगेज लाइन (छोटी) आज इतिहास बन जाएगी। 30 जनवरी को इसके आखिरी सफर पर निकले टीसी और पायलट भी रवानगी पर भावुक हो गए। दरअसल, यहां ब्रॉडगेज यानी रेल की बड़ी लाइन डाली जाना है, इसलिए इसे बंद किया जा रहा है। विरासत की विदाई के वक्त जानिए इस ट्रेन लाइन के बिछने से बंद होने तक की पूरी कहानी...

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रेलवे से जुड़े एक्सपर्ट नागेश नामजोशी बताते हैं कि मीटरगेज ट्रैक को बिछाने का इतिहास भी रोचक है। इसे अंग्रेजों ने 1877 में बिछाया था। इसके लिए होलकर स्टेट ने अंग्रेजी हुकूमत को एक करोड़ रुपए का लोन 4 पर्सेंट की ब्याज दर पर दिया था। 1873 से 1877 के बीच काम पूरा कर लिया गया। 3 अगस्त 1877 को वह दिन आया जब यहां मालगाड़ी चलाकर ट्रायल शुरू कर दिया गया।

पहले देखिए वो फोटो मीटर जिसे गेज ट्रेन के आखिरी फेरे में एक यात्री ने लिया

ये फोटो महू रेलवे स्टेशन का है। महू स्टेशन पर जब आखिरी बार मीटरगेज ट्रेन पहुंची तब एक यात्री ने इसका फोटो-वीडियो लिया। इसके आखिरी कोच पर लिखा था गुड बाय मीटरगेज।

पहली बार प्रोजेक्ट के पैसे बच गए…

ट्रैक को पैसेंजर ट्रेन के लिए खोल दिया गया। जनवरी 1878 में पहली पैसेंजर ट्रेन चला दी गई। इसकी अधिकतम स्पीड करीब 40-60 माइल्स यानी 60 से 70 किलोमीटर प्रति घंटा के आसपास रही होगी। दिलचस्प यह था कि इस प्रोजेक्ट में जो लागत मंजूर की गई थी, उसमें से पैसा बच गया। यह पहला मौका था जब कास्ट से कम में काम हो गया था। अमूमन लागत देरी होने से बढ़ने के किस्से खूब थे।

अंग्रेजों के जमाने में 1877 में इस ट्रेन लाइन को बिछाया गया था। ये ट्रैक बिछाने के लिए अंग्रेजों ने होलकर स्टेट से 1 करोड़ रुपए का लोन लिया था। यह लोन 4 परसेंट ब्याज पर दिया गया था।

टूरिस्ट के लिहाज से भी मनोहारी था सफर

घने जंगल के बीच से ट्रेन निकलने का अनुभव उस वक्त के लोग ही जानते होंगे। साथ ही टनल के अंदर का सफर भी अपने आपमें दिलचस्प था। एक तरफ पहाड़, दूसरी तरफ खाई में नदी बहते दिखती थी। एक ही पुल दो सुरंगों को जोड़ता था।

टनल में धुआं कर देता था परेशान

घाट उतरते समय दिक्कत नहीं आई, लेकिन ओंकारेश्वर से महू वापसी के दौरान टनल में धुआं लोगों को परेशान कर देता था। दरअसल चढ़ाई के लिए बेकर्स (ट्रेन के पिछले हिस्से में भी एक्स्ट्रा स्टीम इंजन) भी लगाना पड़ता था। यानी घाट पर डबल इंजन लगता था। इसके बावजूद कई बार घाट में ट्रेन रुक जाती थी। गाड़ी टनल में रुक जाए तो आगे और पीछे दोनों स्टीम इंजन से निकलने वाला धुआं पूरी टनल में भर जाता था। इससे यात्रियों को तकलीफ होती थी। बाद में स्टीम इंजन की जगह डीजल इंजन ने ले ली। मीटरगेज लाइन पर इन 146 सालाें में कभी गंभीर हादसा कभी नहीं हुआ।

उस जमाने में घाट पर डबल इंजन लगता था। इसके बावजूद कई बार घाट में ट्रेन रुक जाती थी। जब दोनों इंजन चलते थे तो टनल में धुआं भर जाता था। इससे यात्रियों को परेशानी होती थी। बताया जाता है कि मीटरगेज लाइन पर कभी कोई गंभीर हादसा नहीं हुआ।

टंट्या मामा को सलामी देने के लिए रुकती है ट्रेन

अंग्रेजों से लड़ने वाले टंट्या मामा भील का पातालपानी के यहां मंदिर है। टंट्या मामा को सलामी देने के लिए ट्रेन यहां कुछ मिनट रोक दी जाती है। कहा जाता है कि इसके बाद ही ट्रेन में सवार यात्री सही सलामत अपने गंतव्य तक पहुंच पाते हैं। टंट्या मामा के यहां आज भी गाड़ी रुकती है, लेकिन तकनीकी कारण ये है कि जब गाड़ी ढलान पर उतरती है तो गाड़ी के ब्रेक चेक किए जाते हैं। वैक्यूम प्रेशर चेक होता है, इसलिए सामान्यत: सुरक्षा की दृष्टि से गाड़ी को रोककर चेक किया जाता है। विशेषत: उतरते वक्त ढलान पर।

ओंकारेश्वर रोड स्थित रेलवे ट्रैक। इस ट्रैक पर इन 146 सालाें में कभी गंभीर हादसा कभी नहीं हुआ। अब ये ट्रैक बंद किया जा रहा है। इसकी जगह बड़ी लाइन बिछाई जाएगी।

अब आगे क्या...

रेलवे इस काम को जल्दी पूरा करने का इच्छुक नहीं

नामजोशी ने बताया कि रेलवे की क्षमता काम करने की है। इससे बड़े-बड़े काम रेलवे ने किए हैं। ये (महू-सनावद ब्रॉडगेज) बहुत बड़ा काम नहीं है जो रेलवे नहीं कर सकता। जिस तरीके से इस काम को डील किया जा रहा है तो लगता नहीं है कि रेलवे इस काम को जल्दी पूरा करने का इच्छुक है।

घाट सेक्शन चुनौती

11 डिब्बे की ट्रेन का ट्रैक पर संचालन हुआ। इंदौर-खंडवा रूट पर करीब 24 किलोमीटर का घाट सेक्शन है। यहां स्पीड 15 से 20 किमी प्रतिघंटा रहती है। वर्ष 1996 में घाट पर ग्रेडियंट 1 बटा 40 को 1 बटा 100 करना प्रस्तावित किया गया। (ग्रेडियंट यानी 40 फीट चढ़ने के बाद गाड़ी एक फीट वापस नीचे रुकती है।) इस पर काम हुआ और सर्वे पूरा होने के बाद रेलवे के अधिकारियों ने 1 बटा 150 का सर्वे ऑर्डर किया। वर्ष 2020 में सर्वे शुरू हुआ और 2021 में समाप्त होना था, लेकिन सर्वे कंपनी भाग गई। इसके बाद रेल विकास निगम को काम सौंपा और उसने अगस्त-सितंबर में 2022 में सर्वे पूरा कर लिया, लेकिन अभी तक रिपोर्ट ही नहीं आई है।

रूट पर बनना है 11 टनल

रेलवे ने खंडवा-सनावद के बीच काम पूरा कर लिया है। अब रेलवे 1 फरवरी से महू से ओंकारेश्वर रोड के बीच मीटरगेज सेक्शन पर ट्रेनों का संचालन बंद कर इस सेक्शन को बंद कर देगा। सोमवार को डॉ. आंबेडकर नगर (महू) से ओंकारेश्वर रोड स्पेशल पैसेंजर का अंतिम फेरा रहा। अब महू-सनावद सेक्शन के बीच काम होगा। महू के आगे घाट सेक्शन का काम सबसे चुनौतीपूर्ण है। रूट पर 11 टनल बनना है। खास बात यह है कि 2014 में पूरा होने वाला यह प्रोजेक्ट आठ साल लेट चल रहा है।

सोमवार को डॉ. आंबेडकर नगर (महू) से ओंकारेश्वर रोड स्पेशल पैसेंजर का अंतिम फेरा रहा। इस दौरान रेलवे कर्मचारियों का स्वागत किया गया।

यात्री बोले- ये ट्रेन ही महू तक आने का सहारा थी

महू से सोमवार शाम 5.45 बजे ट्रेन ओंकारेश्वर के लिए रवाना हुई। इस ट्रेन को गार्ड रोशनलाल कौशल, लोको पायलट दौलत राम मीणा और सहायक लोको पायलट ऋषि कुमार ओंकारेश्वर ले गए। ट्रेन में महू से 30 से अधिक यात्री रवाना हुए। सफर करने वाले यात्री रंगलाल सत्तार, पीहू और पायल ने बताया कि रेलवे इस रूट की ट्रेन बंद कर देगा तो हमें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा।

यात्रियों ने कहा- इस रूट पर ट्रेन ही हमारे लिए एक सहारा था और अब हमें बाजार करने में भी दिक्कत आएगी। कालाकुंड से महू तक कोई भी रास्ता नहीं है। हमें कई किलोमीटर पैदल चलकर इंदौर रोड तक जाना पड़ता है। वहां से हमें बस मिलती है, वह भी महू तक नहीं लाती। सिमरोल नाके पर ही उतार देती है, फिर वहां से कोई भी साधन महू तक के लिए नहीं मिलता। रेलवे को इस रूट के लिए विचार करना चाहिए।

आंबेडकर नगर रेलवे स्टेशन महू से ओंकारेश्वर के लिए सोमवार को आखरी ट्रेन रवाना हुई। रेलवे ने महू-कालाकुंड रेलवे ट्रैक को बंद करने का निर्णय लिया है। इसको लेकर सोमवार को यह ट्रेन आखिरी बार ओंकारेश्वर के लिए रवाना हुई। इस ट्रेन में महू से 30 से अधिक यात्री रवाना हुए।

विदाई देने पहुंचें समाजसेवी

अपने आखरी सफर पर रवाना होने से पहले ओंकारेश्वर रोड और बड़वाह स्टेशन पर ट्रेन को अंतिम विदाई देने के लिए समाजसेवी और अन्य संस्थाओं के सदस्य भी प्लेटफॉर्म पर पहुंचें। व्यापार और आवागमन का एक मात्र साधन रही मीटर गेज ट्रेन से लोगों का काफी भावनात्मक जुड़ाव भी है। बड़वाह के प्रसिद्ध चिवड़े को राजस्थान और हैदराबाद तक पहचान भी इसी ट्रेन के माध्यम से मिली थी।

बड़वाह रेलवे स्टेशन पर पॉइंट मैन पद से सेवानिवृत हुए सुरेश पाल ने बताया कि मेरी पहली पोस्टिंग महू से इंदौर रेल रूट पर एक स्टेशन पर हुई थी। मेरे जीवन के करीब 25 साल इसी महू-ओंकारेश्वर रोड रेलवे ट्रैक पर बीते। एक समय था इस ट्रैक से पांच ट्रेनें गुजरती थीं। चित्तौड़गढ़, अजमेर से लेकर महाराष्ट्र-हैदराबाद तक जाती थी। इस दौरान ट्रेन में काफी भीड़ भी रहती थी। पर्वों पर तो लोग ट्रेन में ऊपर बैठकर सफर करते थे। इस ट्रेन का बंद होना मेरे लिए भावुक कर देने वाला क्षण है।

इस ट्रेन के बंद होने से कई यात्री नाराज नजर आए, क्योंकि अब कालाकुंड से महू तक के लिए यात्रियों को कोई साधन नहीं मिलेगा। इसके साथ ही इस रूट पर कई छोटे गांव भी आते हैं, इन गांवों के ग्रामीण इसी ट्रेन से महू के लिए सफर करते थे।

देरी से बढ़ गई प्रोजेक्ट की लागत

बताया जाता है कि 2007 में रेल मंत्रालय ने मीटरगेज लाइन को ब्रॉडगेज में बदलने का निर्णय लिया। 2008 में खंडवा-इंदौर लाइन परिवर्तन प्रोजेक्ट का बजट 1400 करोड़ रुपए था, लेकिन 2017 में सनावद से महू परिवर्तन की लागत 2470 करोड़ रुपए हो गई। करीब 1500 करोड़ अधिक का भार आया। वहीं, प्रोजेक्ट की लागत करीब 4 हजार करोड़ रुपए हो गई है। मार्च 2022 में प्रधानमंत्री की पहल पर रेल मंत्री ने 888 करोड़ रुपए स्वीकृत किए। परियोजना में महू से सनावद 52 किलोमीटर व खंडवा से अकोट 121 किलोमीटर परिवर्तन शेष है। मात्र 173 किलोमीटर ब्रॉडगेज करने से 1668 किलोमीटर की दिल्ली-हैदराबाद लाइन पूरी हो जाएगी।

इंदौर स्टेशन पर यातायात दबाव को कम करने की भी कवायद

महू रेलवे स्टेशन को ब्रॉडगेज लाइन के अनुसार तैयार किया जा रहा है। पिछले महीने दिसंबर में रेलवे जीएम और अन्य अधिकारियों ने रेलवे स्टेशन पर दौरा किया था। महू रेलवे स्टेशन पर वर्तमान में मीटरगेज की चार लाइनें हैं। इनमें पहली लाइन पर ट्रेन संचालन किया जाता है। दूसरी लाइन पर गुड्स रैक रखा है। तीसरी और चौथी लाइन में पिटलाइन और डिपो की योजना थी। ये सभी कार्य इंदौर रेलवे स्टेशन पर ट्रेनों के यातायात दबाव कम करने के लिए किया जा रहा है।

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