जन्माष्टमी पर कोरोना संकट:पोशाक कारोबारियों को 100 करोड़ का नुकसान, 80 से ज्यादा फैक्ट्रियों में 1 महीने पहले काम शुरू हुआ; ज्यादातर मुस्लिम कारोबारी प्रभावित
- कान्हा से जुड़े शृंगार के सामानों वाली दुकानों पर 5 फीसदी ग्राहक भी नहीं आए
- देश-विदेश में वृंदावन से भेजी जाती थीं पोशाकें, इस बार कारोबार चौपट रहा
कोरोनावायरस के बीच पहली बार कृष्ण जन्मोत्सव बिना भक्तों के मनाया जा रहा है। इस खास मौके पर लोग अपने आराध्य ठाकुरजी को रंग-बिरंगी पोशाक पहनाते हैं। लेकिन कोरोना के चलते इस बार यह कारोबार चौपट हो गया है। इस उद्योग को करीब 100 करोड़ का नुकसान हुआ है। वृंदावन में कृष्णा के पोशाक कारोबार से ज्यादातर मुस्लिम कारीगर जुड़े हुए हैं। यहां से पोशाकें विदेशों तक भेजी जाती हैं। तीन महीने के लॉकडाउन के बाद कारीगरों को उम्मीद थी कि मथुरा के देवालयों के द्वार खुलेंगे, साथ ही जन्माष्टमी से भी आस थी। लेकिन मथुरा कृष्णा भक्तों के लिए सील हो गई। मंदिर में भी स्थानीय भक्त नहीं जा सकते हैं। ऐसे में उनकी रही-सही उम्मीद भी टूट गई है।
देश-विदेश में भेजी जाती है यहां से बनी पोशाक
वृंदावन का राधा निवास मोहल्ला। यहां लगभग हर घर में ठाकुरजी की पोशाक बनाने का काम होता है। यहां रहने वाले अनीस चारपाई पर कसे हुए कपड़े पर सुई से आकर्षक आकृतियां उकेर रहे थे। बगल में उनके साथ परिवार के कुछ और सदस्य भी लगे हुए थे। अनीस ने बताया कि एक चादर पूरी करने में कभी पूरा दिन लग जाता है। कढ़ाई ज्यादा हो तो उससे भी ज्यादा समय लग जाता है। अनीस के मुताबिक अबकी बार काम एक दम नहीं है। उन्होंने बताया कि महीने में 25 से 30 हजार की कमाई भी बमुश्किल हो रही है।
3 महीने पहले शुरू होती थी तैयारियां, अबकी 1 महीने पहले शुरुआत हुई
बगल के घर में रहने वाले फखरुद्दीन बताते हैं कि जन्माष्टमी की तैयारी हम लोग तीन महीने पहले से शुरू कर देते थे। इतना ऑर्डर रहता था कि कुछ तो पूरे भी नहीं हो पाते थे। लेकिन इस बार कोरोना की वजह से सब फीका पड़ गया है। अभी एक महीने पहले करीब 80 फैक्ट्रियों में इसी आस में पोशाक बननी शुरू हुई थी कि जन्माष्टमी पर कुछ कारोबार हो जाएगा। लेकिन अब उस पर भी रोक लग गई है। जन्माष्टमी के बाद हम लोगों का कारोबार भी बंद हो जाएगा। उन्होंने कहा कि जहां मथुरा से 80 से 100 करोड़ का पोशाक का कारोबार होता था, वहीं अब यह सिमट कर 10% रह गया है।
कोरोना की वजह से बिजनेस चौपट, 5% का कारोबार भी नहीं
वृंदावन में पोशाक की दुकान चलाने वाले पीयूष बताते हैं कि मेरे परिवार की तीसरी पीढ़ी अब इस दुकान को संभाल रही है। मेरे दादा ने शुरुआत की थी। अब मैं बैठ रहा हूं। हम ठाकुरजी के साज-ओ-शृंगार का हर समान बेचते हैं। लेकिन ऐसी मंदी कभी नहीं देखी। उस समय दुकान पर 5% ग्राहक भी नही आ रहे हैं। वरना पिछले साल वृंदावन की गलियों में पैर रखने की जगह नही थी। पूरा मार्किट धराशायी हो गया है।