- नारद पुराण के अनुसार काल भैरव की पूजा से दूर हो जाते हैं रोग और तकलीफें
Dainik Bhaskar
Nov 18, 2019, 04:00 PM ISTरिलिजन डेस्क. कालाष्टमी के दिन शिव शंकर के इस रूप भैरव का जन्म हुआ था। भैरव का अर्थ है भय को हरने वाला, इसीलिए ऐसा माना जाता है कि कालाष्टमी के दिन जो भी व्यक्ति कालभैरव की पूजा करने से भय का नाश होता है। कालाष्टमी के दिन भगवान शिव, माता पार्वती और काल भैरव की पूजा करनी चाहिए। विद्वानों का मानना है कि ये पूजा रात में की जाती है। कृष्णपक्ष की अष्टमी को मध्याह्न के समय भगवान शंकर के अंश से भैरव रूप की उत्पत्ति हुई थी। मंगलवार को मध्याह्न मेंमार्गशीर्ष माह की अष्टमी तिथि होने से कालभैरव अष्टमी19 नवंबर को मनाई जाएगी।
- काल भैरव अष्टमी का महत्व और पूजन विधि
- नारद पुराण में बताया है महत्व
नारद पुराण में बताया गया है कि कालभैरव की पूजा करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। मनुष्य किसी रोग से लम्बे समय से पीड़ित है तो वह रोग, तकलीफ और दुख भी दूर होती हैं।
- काल भैरव की पूजा विधि
काल भैरव की पौराणिक कथा
एक बार भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश यानि त्रिदेवों के बीच इस बात को लेकर विवाद हो गया है कि उनमें से कौन सर्वश्रेष्ठ है। विवाद को सुलझाने के लिये समस्त देवी-देवताओं की सभा बुलाई गई। सभा ने काफी मंथन करने के पश्चात जो निष्कर्ष दिया उससे भगवान शिव और विष्णु तो सहमत हो गए, लेकिन ब्रह्मा जी संतुष्ट नहीं हुए। यहां तक कि भगवान शिव को अपमानित करने का भी प्रयास किया जिससे भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गये। भगवान शंकर के इस भयंकर रूप से ही काल भैरव की उत्पत्ति हुई। सभा में उपस्थित समस्त देवी देवता शिव के इस रूप को देखकर थर्राने लगे।
कालभैरव जो कि काले कुत्ते पर सवार होकर हाथों में दंड लिये अवतरित हुए थे ने ब्रह्मा जी पर प्रहार कर उनके एक सिर को अलग कर दिया। ब्रह्मा जी के पास अब केवल चार शीश ही बचे उन्होंने क्षमा मांगकर काल भैरव के कोप से स्वयं को बचाया। ब्रह्मा जी के माफी मांगने पर भगवान शिव पुन: अपने रूप में आ गए, लेकिन काल भैरव पर ब्रह्म हत्या का दोष चढ़ चुका था जिससे मुक्ति के लिये वे कई वर्षों तक यत्र तत्र भटकते हुए वाराणसी में पंहुचे जहां उन्हें इस पाप से मुक्ति मिली। भगवान काल भैरव को महाकालेश्वर, डंडाधिपति भी कहा जाता है। वाराणसी में दंड से मुक्ति मिलने के कारण इन्हें दंडपाणी भी कहा जाता है।