फोटो: केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली बुधवार को आम बजट को अंतिम रूप देते हुए। वाणिज्य उद्योग (स्वतंत्र प्रभार), वित्त और कॉरपोरेट मामलों की राज्यमंत्री निर्मला सीतारमन और मंत्रालय के सचिव भी इस मौके पर मौजूद थे।
क्या आम बजट पेश किए जाते वक्त आप सिर्फ टैक्स पर दी जाने वाली छूट या महंगी-सस्ती होने वाली चीजों पर ही ध्यान देते हैं? बजट के बहुत सारे पहलू आपको बोरिंग लगते होंगे, लेकिन यकीन मानिए, वे भी आपकी जिंदगी को काफी प्रभावित करते हैं। जानिए, बजट से जुड़े कुछ ऐसे ही पहलुओं के बारे में:
1 जीडीपी की विकास दर
सकल घरेलू उत्पाद (ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट) से जुड़े आंकड़ों पर इस बार ध्यान दीजिएगा। अगले साल आपकी तनख्वाह कितनी बढ़ेगी, यह बहुत कुछ इस पर निर्भर करता है। जीडीपी विकास दर जितनी ज्यादा होगी, आपकी सैलरी बेहतर होने की उम्मीदें उतनी ही मजबूत होंगी। अगर बीते 10 साल में आप खुद को ज्यादा अमीर महसूस कर रहे हैं तो 2004 और 2014 की सैलरी की तुलना करके देखिएगा। इस अवधि में जीडीपी 690 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2.3 ट्रिलियन डॉलर हो गया।
क्या है जीडीपी: सकल घरेलू उत्पाद में देश की वस्तुओं का उत्पादन मूल्य और विदेश से प्राप्त आय को शामिल किया जाता है। इसमें देश में विदेशी कंपनियों द्वारा किए गए उत्पादन मूल्य को भी शामिल किया जाता है। हालांकि, इसमें ऐसे व्यक्तियों की कंपनियों का उत्पादन मूल्य नहीं शामिल किया जाता, जो रहते तो देश में हैं, लेकिन उनकी कंपनियों का कारोबार विदेश में होता है।
2 आर्थिक घाटा (फिस्कल डेफिसिट)
यह वह रकम है जो भारत सरकार उधार के तौर पर लेती है, क्योंकि उसकी आय से सारे खर्च पूरे नहीं होते। इस बार भारत सरकार का आर्थिक घाटा 5.3 लाख करोड़ या जीडीपी के 4 पर्सेंट होने की उम्मीद है। बाजार, अर्थशास्त्री और क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों का कहना है कि यह आंकड़ा बहुत ज्यादा है। यह आपके लिए भी चिंताजनक है। आर्थिक घाटा ज्यादा होने का मतलब है कि बैंक से आपको कम लोन मिलने की गुंजाइश और ब्याज दरों में इजाफा। इसके अलावा, आर्थिक घाटा अधिक होने का मतलब लड़खड़ाता बाजार, गिरती वैश्विक रेटिंग, कम विदेशी निवेश और बाजार का सेंटिमेंट गड़बड़ाना। अगर ऐसा हुआ तो अगले साल अच्छी सैलरी हाइक होने की उम्मीद भी छोड़ दीजिए। वहीं, कम आर्थिक घाटा सभी के लिए हितकर है।
3 विनिवेश
कई लोगों के लिए बिलकुल अपरिचित शब्द। इसका मतलब है सरकारी कंपनियों की हिस्सेदारी शेयर मार्केट में बेचना। जानकार कहते हैं कि ज्यादा विनिवेश का मतलब है, ज्यादा राजस्व और कम होता आर्थिक घाटा। आम आदमी के लिए इसके दो मतलब हैं। अगर बहुत सारी सरकारी कंपनियां अपनी हिस्सेदारी बेचती हैं तो स्टॉक मार्केट में उछाल आना मुमकिन है और अगर विनिवेश से आर्थिक घाटा कम होता है तो यह भी फायदेमंद है।
4 सरकारी सब्सिडी
सरकार आम जनता को महंगाई की मार से बचाने के लिए खाद्य पदार्थों, ईंधन, खाद आदि पर रियायत देती है और इस पर हुए घाटे को वहन खुद करती है। हो सकता है कि पेट्रोल, डीजल पर मिलने वाली रियायत से आपका सीधा वास्ता पड़ता हो, लेकिन बजट में इस पहलू से जुड़े आंकड़ाें पर ज्यादा ध्यान दीजिए। इस वक्त सरकार 2.5 लाख करोड़ रुपए की सब्सिडी दे रही है, जो जीडीपी का करीब 2.5% है। सीधा-सा मतलब है, सब्सिडी बढ़ेगी तो आर्थिक घाटा भी बढ़ेगा और ऐसा होने पर देश की इकोनॉमी का मूड भी गड़बड़ाएगा। इसके उलट, सब्सिडी में कटौती का मतलब है कि कहीं न कहीं आपकी जेब पर असर होना। ऐसा नहीं होता तो डीजल व पेट्रोल महंगा होने पर इतना शोरगुल क्यों मचता। ऐसे में, अगर वित्त मंत्री सब्सिडी में कटौती करते हैं तो इसका एक मतलब यह भी है कि वह देश की इकोनॉमी को पटरी पर लाने के लिए यह कदम उठा रहे हैं।