औरंगाबाद। नाशिक के अस्पताल में भर्ती एक महिला का संघर्ष अनूठा है। लिवर की बीमारी से जूझ रही इस महिला को ब्लड चाहिए। लेकिन उन्हें ब्लड देने लायक १७९ लोग ही हैं देश में। इस समूह का नाम है बॉम्बे ब्लड ग्रुप। जानिए, आशा राजेंद्र सोनवणे का ब्लड क्यों अनूठा है...
आशा सोनवणे को दो दिन पहले नाशिक के देवगावकर अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उनके लिवर ने काम करना बंद कर दिया। खून की जरूरत आ पड़ी। रिश्तेदारों ने ब्लड के लिए राज्य के प्रमुख ब्लडबैंकों से संपर्क किया परंतु असफलता ही हाथ लगी। वह मिलना भी मुश्किल था।
बॉम्बे ब्लड ग्रुप जो ठहरा। दरअसल, एंटीबायोटिक्स बनाने के लिए ब्लड में जिस 'एचÓ एंटीजन की जरूरत होती है, वह बॉम्बे ब्लडग्रुप वालों के खून में नहीं होता। पूरी दुनिया में ऐसे ब्लड ग्रुप वाले कुल आबादी का ०.०००४ फीसदी ही हंै। भारत में तो इनकी संख्या 172 ही है। आशा के लिए इस ग्रुप के लोगों से संपर्क किया जा रहा है।
बॉम्बे ब्लड ग्रुप की खोज 1552१९५२ में मुंबई के डॉ. वायएम बेंडे ने की थी। केईएम अस्पताल में भर्ती एक रोगी को ब्लड चढ़ाने पर साईड इफेक्ट हो गया। खून की और जांच कराई गई तो इस नए ब्लडग्रुप का पता चला। तब से इस ग्रुप का नाम बॉम्बे ब्लड ग्रुप पड़ा। बॉम्बे ब्लड ग्रुप की जरूरत पडऩे पर bombaybloodgroup.org वेबसाईट पर जानकारी देना होती है।
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