नई दिल्ली। अंतरजातीय विवाह करने वालों के बच्चों को यह कह कर आरक्षण से वंचित नहीं किया जा सकता कि उनके पिता या मां ऊंची जाति के हैं। यह व्यवस्था बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने दी।
जस्टिस आफताब आलम और रंजना प्रकाश देसाई की बेंच ने गुजरात सरकार के फैसले के खिलाफ रमेशभाई दाभाई नाइका की याचिका पर यह फैसला दिया।
अदालत ने सरकार को निर्देश दिया कि नाइका को अनुसूचित जनजाति कोटे के तहत मिलने वाले आरक्षण का लाभ दिया जाए। सरकार ने इस आधार पर नाइका को आरक्षण देने से मना कर दिया था कि उनके पिता क्षत्रिय जाति के हैं।
हाईकोर्ट ने भी सरकार के फैसले के खिलाफ नाइका की याचिका खारिज कर दी थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दो अलग-अलग जातियों के महिला-पुरुष के बीच होने वाली शादी में संभावना हो सकती है कि उनसे होने वाला बच्चा पिता की जाति का माना जाए।
यह संभावना उस वक्त बढ़ जाती है, जब पिता उच्च जाति का हो। लेकिन इस संभावना के निष्कर्ष हमेशा मानने की कोई वजह नहीं है।
कोर्ट ने व्यवस्था दी कि यह बच्चे पर निर्भर है कि क्या वह साबित कर सकता है कि उसके माता या पिता के उच्च जाति के होने से उसकी जाति बदल गई। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में हर मामले की परिस्थितियों और साक्ष्यों के आधार पर फैसला होना चाहिए।
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