भारतीय इतिहास में बेगम समरू अपनी खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध हैं। जल्द ही इस तवायफ़ की असली जिंदगी रूपहले पर्दे पर आने वाली है। इसकी घोषणा होते ही बेगम चर्चा में आ चुकी हैं। बेनजीर खूबसूरती की मलिका बेगम समरू यानी फरजाना दिल्ली के चावड़ी बाजार के एक कोठे में अपनी खूबसूरती का सौदा करती थी। यही से निकल कर वह दौलत, ताकत और शोहरत की बुलंदियों तक पहुंची।
इतिहास के पन्नों को पलटने पर पता चलता है कि फरजाना की मां चावड़ी बाजार में तवायफ थी। इसे मेरठ के करीब कोटाना के असद खान ने अपनी रखैल बना लिया था। फरजाना का जन्म कोटाना में ही 1753 में हुआ। इसके सात साल बाद ही असद की मौत हो गई और मां और बेटी को दिल्ली लौटना पड़ा।
फरजाना यहां कोठे पर काम करने लगी। यहीं उसकी मुलाकात वाल्टर रेनहार्ट सोम्ब्रे से हुई। वह उससे तीस साल बड़ा था। पर उसकी कमसिन सुंदरता पर फिदा हो गया। सोम्ब्रे ने प्यार का प्रस्ताव रखा फरजाना ने कूबूल कर लिया।
दोनों मेरठ के सरधाना में आकर बस गए। कुछ सालों बाद रेनहार्ट का इंतकाल हो गया। 18 यूरोपीय अफसरों और 4000 सैनिकों की फौज फरजाना के हाथों में आ गई। कुछ साल बाद फरजाना ने ईसाइयत कबूल कर ली। जोहाना नोबिलिस सोम्ब्रे बन गई। बाद में सोम्ब्रे का सोम्बर हुआ। फिर फरजाना बन गई बेगम समरू।
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