बगहा 2 प्रखंड के हरनाटांड़ से सटे थरुहट मे अनंतं चतर्दशी व्रत के शुभ अवसर पर भव्य मेला का आयोजन किया गया। मूलतः आदिवासी संस्कृति से जुड़ा यह समुदाय एक ओर आधुनिक सुख सुविधाओं से जीवन जीने के लिए नित्य नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है, तो दूसरी ओर अपनी परम्परों को आज भी काफी संजीदगी के साथ संजोए हुए है। वर्षों से चली आ रही परम्पराओ के अनुसार इस वर्ष भी थरुहट के बेरई, घुरौली, पछफेड़वा इत्यादि गावों में अनंत चतुर्दशी मेला छोटा भावसा में लगता है। इसके अतिरिक्त नौरगिया केरई गांव का मेला केरई नहर पुल के पास लगता है। तो बेलाहवा, सखुवानवा, मलकौली, पीपरा धुमवाटाड़, महुवा, गोड़ार, सखुवानवा के मनोर नदी के किनारे लगता हैं।
झरक गायन व नृत्य की होती है प्रस्तुति | मेला के अवसर पर सभी घरों में ताला लटका दिया जाता है या फिर कोई बुजूर्ग रहा तो घर उसके हवाले होता है। बाकी सारे लोग मेला में जाते है। जहां पारम्परिक खेल लाठी डंडे से लेकर झरक गायन व नृत्य की प्रस्तुति नवयुवकों की ओर से की जाती है। इनका उत्साह और आनंद देखते बनता है। नौरगीया दरदरी पंचायत के मुखिया विहारी महतो ने बताया कि थरुहट मे अनतं चतर्दशी के शुभ अवशर पर थरुहट मे बहुत ही भव्य मेला लगता है। गांव मे घर घर महावीर हनुमान जी की मूर्ति की झांकी घुमाया जाता है और पूजा किया जाता है। झांकी को गांव का भ्रमण करने के बाद मेला में लाया जाता है। थरुहट के अपने संस्कृति को कायम रखने के लिए पुराने कल्चर को विलुप्त होने से बचाया जाता रहा है।
मेला में डंडे के साथ झरक खेलते युवक।