पटना. आर्यभट्ट व रामानुजन परंपरा का सितारा आखिरकार टूट गया। ख्यात गणितज्ञ डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह नहीं रहे। वे 73 साल के थे। गुरुवार की सुबह पटना में उनका निधन हुआ। शुक्रवार सुबह महुली घाट (भोजपुर) पर राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार हाेगा।
1) गणितज्ञ डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह की चार कहानिया
नासा के अपोलो स्पेस मिशन के समय अचानक 31 कंप्यूटर कुछ देर के लिए बंद हो गए। मिशन से जुड़े वैज्ञानिक और गणितज्ञों को काठ मार गया। इसी बीच डॉ.वशिष्ठ नारायण सिंह ने पल भर के लिए आंखें बंद कीं और कागज पर कुछ लिखा। जब कंप्यूटर ऑन हुए तो सभी यह देख हतप्रभ थे कि कंप्यूटर और वशिष्ठ बाबू की गणना एक ही थी।
वशिष्ठ ने नेतरहाट स्कूल की परीक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया। हायर सेकेंड्री परीक्षा के टॉपर रहे। उनके लिए पटना विश्वविद्यालय का कानून बदला। सीधे बीएससी ऑनर्स किया। साइंस कॉलेज के तत्कालीन प्रिंसिपल डॉ. नागेंद्र नाथ ने कॉलेज में आए प्रो. केली से वशिष्ठ का परिचय कराया। प्रो. केली की पहल पर वशिष्ठ कैलिफोर्निया पहुंचे।
अद्भुत मेधा के धनी डॉ वशिष्ठ का दाखिला 8 सितंबर, 1965 को बर्कले यूनिवर्सिटी में हुआ। 1966 में वह नासा में काम करने लगे। 1967 में वह कोलंबिया इंस्टीट्यूट ऑफ मैथेमेटिक्स के निदेशक बने। तब उम्र सिर्फ 21 साल थी। 1969 में पीएचडी का शोध पत्र दाखिल किया जो सुर्खियों में रहा। बर्कले यूनिवर्सिटी ने उन्हें ‘जीनियसों का जीनियस’ कहा था।
साइंस कॉलेज में प्रो.बीकन भगत गणित के शिक्षक थे। छात्र वशिष्ठ ने सवाल हल करने के उनके तरीके पर सवाल उठाया और खुद कई तरीके से हल कर दिखा दिया। प्रो. भगत ने इसे अशिष्टता माना। शिकायत प्राचार्य प्रो. नागेंद्र नाथ से की। प्राचार्य ने उन्हें तलब किया। गणित के कई सवाल किए। वशिष्ठ ने हर सवाल को कई तरीके से हल कर दिया।
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