टाटा ग्रुप में वापसी के बाद शुक्रवार को एयर इंडिया के एक साल पूरे हो गए हैं। इस मौके पर एयरलाइन के चीफ एग्जीक्यूटिव कैंपबेल विल्सन ने भी कंपनी के कर्मचारियों को लेटर लिखकर बधाई दी है। 27 जनवरी 2022 को ही टाटा संस ने आधिकारिक तौर पर सरकारी कंपनी एअर इंडिया को टेकओवर किया था। इसके बाद टाटा देश की दूसरी बड़ी एयरलाइन बन गई थी।
विल्सन ने बताया कि टाटा ग्रुप में शामिल होने के बाद एयरलाइन ने पिछले एक साल में कोविड-19 महामारी के प्रभावों से निपटते हुए कई उपलब्धियां हासिल की हैं। कंपनी अधिग्रहण की पहली वर्षगांठ के मौके पर 20 बोइंग 787 और 10 बोइंग 777X के साथ 190 बोइंग 737 मैक्स नैरो बॉडी विमानों के लिए एक ऑर्डर देने के लिए तैयार कर रही है।
1.20 लाख करोड़ रुपए की इंडस्ट्री
2022 में कुल 12.32 करोड़ लोगों ने घरेलू रूट्स पर यात्रा की थी। भारत दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा एविएशन मार्केट है। यह 1.20 लाख करोड़ रुपए की इंडस्ट्री है। इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन (IATA) काअनुमान है कि 2030 तक भारत चीन और अमेरिका को इस मामले में पीछे छोड़ सकता है।
1932 में शुरू हुई थी एअर इंडिया
एअर इंडिया के इतिहास की बात करें तो इसकी शुरुआत अप्रैल 1932 में हुई थी। इसकी स्थापना उद्योगपति JRD टाटा ने की थी। उस वक्त नाम टाटा एयरलाइंस हुआ करता था। JRD टाटा ने महज 15 की उम्र में साल 1919 में पहली बार शौकिया तौर पर हवाई जहाज उड़ाया था, लेकिन शौक जुनून बन गया और JRD टाटा ने अपना पायलट का लाइसेंस ले लिया।
15 अक्टूबर 1932 को पहली उड़ान
एयरलाइन की पहली कॉमर्शियल उड़ान 15 अक्टूबर 1932 को भरी गई थी। तब सिर्फ सिंगल इंजन वाला 'हैवीलैंड पस मोथ' हवाई जहाज था, जो अहमदाबाद-कराची के रास्ते मुंबई गया था। प्लेन में उस वक्त एक भी यात्री नहीं था बल्कि 25 किलो चिट्ठियां थीं। चिट्ठियों को लंदन से 'इम्पीरियल एयरवेज' से कराची लाया गया था। यह एयरवेज ब्रिटेन का राजसी विमान था। इसके बाद साल 1933 में टाटा एयरलाइंस ने यात्रियों को लेकर पहली उड़ान भरी। टाटा ने दो लाख रुपए की लागत से कंपनी स्थापित की थी।
दूसरे विश्व युद्ध के बाद नाम पड़ा एअर इंडिया
दूसरे विश्व युद्ध के बाद इंडिया से सामान्य फ्लाइट्स शुरू की गईं और तब इसका नाम एअर इंडिया रखा गया। इसे सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी बनाया गया। साल 1947 में आजादी के बाद एक नेशनल एयरलाइंस की जरूरत थी। भारत सरकार ने इसमें 49% हिस्सेदारी ली। इसके बाद 1953 में भारत सरकार ने एअर कॉर्पोरेशन एक्ट पास किया और टाटा समूह से इस कंपनी में ज्यादातर हिस्सेदारी खरीद ली। इस तरह यह पूरी तरह से एक सरकारी कंपनी बनी।
घाटे की शुरुआत
1954 में जब इसका राष्ट्रीयकरण हुआ, उसके बाद सरकार ने दो कंपनियां बनाईं। इंडियन एअरलाइंस घरेलू सेवा के लिए और एअर इंडिया विदेशी रूट के लिए तय की गई। साल 2000 तक यह कंपनी मुनाफे में रही। पहली बार 2001 में इसे 57 करोड़ रुपए का घाटा हुआ। तब विमानन मंत्रालय ने इसके लिए उस समय के एमडी माइकल मास्केयरनहास को दोषी मानते हुए पद से हटा दिया था।
2007 में इंडियन एअरलाइंस को मिलाया गया
साल 2007 में एअर इंडिया को इंडियन एअरलाइंस के साथ मिला दिया गया। उस समय दोनों का घाटा 771 करोड़ रुपए था। मिलने से पहले इंडियन एअर लाइंस 230 करोड़ के घाटे में थी। जबकि एअर इंडिया 541 करोड़ के घाटे में थी। इसके बाद से घाटा लगातार बढ़ता गया और कंपनी कर्ज पर कर्ज लेती गई।
12 हजार करोड़ के पार हुआ घाटा
साल 2009-10 में इसका घाटा बढ़कर 12 हजार करोड के पार पहुंच गया। घाटे की एक वजह यह भी बताई गई कि 2005 में 111 विमानों की खरीद का फैसला एअर इंडिया के लिए संकट बना। इस डील पर 70 हजार करोड़ खर्च किए गए। दूसरा कारण यह भी रहा कि इस दौरान नई एयरलाइंस कंपनियों ने ग्राहक सेवा से लेकर कम किराए की रणनीति अपनाई। इसमें भी एअर इंडिया पीछे हो गई। अक्सर यह कंपनी लेटलतीफी के लिए जानी जाती है।
निजी कंपनियों के विमान एक दिन में कम से कम 14 घंटे उड़ान भरते थे, जबकि एअर इंडिया का विमान 10 घंटे उड़ान भरता था। दूसरी ओर जिस रूट पर प्राइवेट कंपनियां सेवा देने से कतराती थीं, वहां एअर इंडिया को चलाया गया, जो घाटे का रूट हुआ करता था।
कर्ज के कारण सरकार ने टाटा को बेचा
एअर इंडिया पिछले एक दशक के दौरान भारी नुकसान में रही है। इस पर 31 मार्च 2020 तक 70 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज था। एअर इंडिया को 2020-21 फाइनेंशियल ईयर में 7 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का घाटा हुआ था। इस कारण सरकार ने एयरलाइन को टाटा को बेच दिया। टाटा ने पिछले साल एअर इंडिया को 18 हजार करोड़ रुपए में खरीदा था।
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