विकास का पहिया कर्ज के दलदल में धंस रहा है। राज्यों ने अप्रैल-दिसंबर के बीच यानी 9 महीनों में जितना कर्ज लिया था, उससे 52% ज्यादा तो जनवरी से मार्च के बीच लेने वाले हैं। 30 राज्यों ने अप्रैल से दिसंबर 2022 के दौरान कुल 2.28 लाख करोड़ का कर्ज लिया था और जनवरी-मार्च 2023 में 3.40 लाख करोड़ रु. का कर्ज लेने की तैयारी में हैं। कर्नाटक सर्वाधिक ~36 हजार करोड़ कर्ज लेगा। रिजर्व बैंक की रिपोर्ट में यह तस्वीर सामने आई है।
पंजाब सबसे बढ़ा कर्जदार
पंजाब देश में सबसे बड़ा कर्जदार है। उसने अपनी जीडीपी का 53.3% तक कर्ज ले रखा है। रिजर्व बैंक के मुताबिक, किसी भी राज्य पर कर्ज उसकी जीडीपी के 30% से ज्यादा नहीं होना चाहिए। नतीजा यह कि राज्यों की आय का एक बड़ा हिस्सा ब्याज चुकाने में खर्च हो रहा है। पंजाब और हरियाणा अपनी कमाई का 21% हिस्सा ब्याज में चुका रहे हैं, जो देश में सर्वाधिक है।
कर्ज की बड़ी वजह फ्री की योजनाएं
बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस कहते हैं कि इससे दूसरे जरूरी खर्चे रुक जाते हैं और विकास प्रभावित होता है। कर्ज की बड़ी वजह फ्री की योजनाएं भी हैं। राज्यों को इन पर जीडीपी का 1% ही खर्च करना चाहिए। लेकिन पंजाब 2.7%, आंध्र 2.1% और मप्र-झारखंड 1.5% तक कर रहे हैं।
मुफ्त वाली योजनाओं पर खर्च में आंध्र टॉप
लोकलुभावन योजनाओं पर खर्च करने में आंध्र प्रदेश (27,541 करोड़) सबसे आगे है। मध्यप्रदेश 21 हजार करोड़ रु. और पंजाब कुल 17 हजार करोड़ रु. की फ्री योजनाएं संचालित कर रहा है।
सेहत पर महाराष्ट्र सबसे कम हिस्सा खर्च कर रहा
शिक्षा पर खर्च में दिल्ली अव्वल, तेलंगाना पीछे...
टैक्स घटा तो कहां से लाएंगे पैसे?
कोरोना के बाद मांग बढ़ने से राज्यों को खूब टैक्स मिला। पर अगले साल जीडीपी वृद्धि दर 6% के आसपास रहेगी। टैक्स कम मिलेगा। ऐसे में ब्याज अदायगी का बोझ झेलना बड़ी चुनौती है। - रजनी सिन्हा, मुख्य अर्थशास्त्री, केयर रेटिंग्स इंडिया
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