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भारत सरकार हाई-प्रोफाइल केयर्न एनर्जी पीएलसी रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स मामले में जल्द ही अपील दर्ज करा सकती है। हाल में भारत के खिलाफ इंटरनेशनल ट्रिब्यूनल ने आदेश पास किया था।
ट्रिब्यूनल के आदेश की जांच कर रही है सरकार
सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्स (CBDT) के चेयरमैन पी सी मोदी ने कहा कि सरकार अंतरराष्ट्रीय ट्रिब्यूनल के आदेश की जांच कर रही है। सरकार उस समय लागू कानून को पूरी तरह से अमल में लाना चाहती है। उन्होंने कहा कि वोडाफोन मामले में देश के खिलाफ इसी तरह का फैसला सुनाए जाने के बाद सरकार ने अपील दायर की है।
केयर्न पर जल्द ही लिया जाएगा फैसला
उनके मुताबिक, जल्द ही केयर्न मामले में अपील करने या न करने का फैसला सामने आएगा। हमने वोडाफोन के मामले में आगे अपील करने के लिए पहले ही फैसला ले लिया है। CBDT प्रमुख ने कहा कि जहां तक केयर्न का सवाल है, हम इस मुद्दे की जांच कर रहे हैं। CBDT इनकम टैक्स विभाग के लिए पॉलिसी तैयार करता है।
पिछले साल केयर्न के खिलाफ भारत की हुई थी हार
भारत को पिछले साल दिसंबर में टैक्स की रेट्रोस्पेक्टिव लेवी को लेकर अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता (international arbitration ) में हार का सामना करना पड़ा था। इस में केयर्न एनर्जी को 1.4 अरब अमेरिकी डॉलर लौटाने का आदेश दिया गया। ट्रिब्यूनल ने फैसला सुनाया कि केयर्न के भारत में 2006-07 में व्यापार के आंतरिक पुनर्गठन (internal reorganisation) पर 10,247 करोड़ रुपए का भारत का टैक्स का दावा सही नहीं है।
पैसों को लौटान का आदेश दिया गया था
ट्रिब्यूनल ने सरकार को अपने द्वारा बेचे गए शेयरों का पैसा लौटाने, डिविडेंड जब्त करने और टैक्स डिमांड की वसूली के लिए रोके गए टैक्स रिफंड का आदेश दिया। कुछ महीने पहले वोडाफोन ग्रुप पीएलसी ने इसी तरह रेट्रोस्पेक्टिव कानून का उपयोग कर 22 हजार 100 करोड़ रुपए का टैक्स का मामला भारत के खिलाफ जीता था। रेट्रोस्पेक्टिव का मतलब एक ऐसा टैक्स जो सालों पहले के कारोबार पर लगाया जा रहा हो। भारत ने इस फैसले को सिंगापुर की एक कोर्ट में चुनौती दी है।
वोडाफोन पर 2006-07 के टैक्स का है मामला
इनकम टैक्स विभाग ने कहा था कि वोडाफोन ने 2007 में हचिसन व्हाम्पोआ के मालिकाना हक वाले मोबाइल फोन कारोबार में 67 पर्सेंट हिस्सेदारी खरीदी थी। भारत में कैपिटल गेन टैक्स से बचने के लिए यह किया गया था। सरकार ने मई, 2012 में फाइनेंस एक्ट पास किया था। इसमें 1961 के इनकम टैक्स एक्ट के विभिन्न प्रावधानों में बदलाव किया गया था ताकि किसी गैर-भारतीय कंपनी में शेयरों की खरीद-बिक्री पर होने वाले फायदे पर टैक्स लगाया जा सके।
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