हेलीकॉप्टर सेवा देने वाली सरकारी कंपनी पवन हंस को बेचने और उसका मैनेजमेंट कंट्रोल ट्रांसफर करने के लिए सरकार ने मंगलवार को फिर से टेंडर जारी किया। इससे पहले दो बार सरकार पवन हंस की रणनीतिक बिक्री करने में नाकाम रही है। निवेश और लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग (DIPAM) ने प्रीलिमिनरी इंफोर्मेशन मेमोरेंडम (PIM) जारी किया है और संभावित खरीदारों से 19 जनवरी 2021 तक एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट (EoI) आमंत्रित किया है।
पवन हंस में सरकार की 51 फीसदी हिस्सेदारी है। शेष 49 फीसदी हिस्सेदारी ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन (ONGC) के पास है। इससे पहले ONGC ने भी कंपनी में अपनी समूची हिस्सेदारी सरकार के साथ ही बेचने का फैसला किया था।
रोहिणी का हेलीपोर्ट प्रस्तावित ट्रांजेक्शन का हिस्सा नहीं
सरकार ने पहले स्ट्रैटेजिक डिसइनवेस्टमेंट और मैनेजमेंट कंट्रोल के जरिये पवन हंस में अपनी समूची इक्विटी शेयरहोल्डिंग को बेचने का फैसला किया था। PIM में कहा गया है कि रोहिणी का हेलीपोर्ट प्रस्तावित ट्रांजेक्शन का हिस्सा नहीं होगा और इसे पवन हंस लिमिटेड से अलग कर लिया जाएगा। यह हेलीपोर्ट नागर विमानन मंत्रालय को आवंटित किए गए भूखंड पर बनाया गया है। दिल्ली विकास प्राधिकरण ने परपेचुअल लीज के तहत मंत्रालय को यह भूखंड आवंटित किया था।
खरीदार 1 साल तक कर्मचारी को नहीं निकाल सकेगा
पवन हंस के खरीदार को यह हेलीपोर्ट 10 साल तक उपयोग करने के लिए देने के एक प्रस्ताव पर हालांकि सरकार विचार कर रही है। PIM में यह भी कहा गया है कि खरीदार को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह कंपनी को खरीदने के बाद एक साल तक एक भी स्थायी कर्मचारी को नौकरी से नहीं निकालेगा। कंपनी को खरीदने के बाद एक साल के अंदर यदि खरीदार किसी कर्मचारी को निकालना चाहेगा, तो उसे वॉलंटरी रिटायरमेंट ऑफर करना होगा।
पवन हंस की स्थापना अक्टूबर 1985 में हुई थी
पवन हंस की स्थापना अक्टूबर 1985 में सरकारी कंपनी के रूप में हुई थी। इसका मुख्य मकसद ONGC की एक्सप्लोरेशन गतिविधियों और पूर्वोत्तर राज्यों के लिए हेलीकॉप्टर सेवा देना था। 31 मार्च 2020 को कंपनी के पास 560 करोड़ रुपए की अथॉराइज्ड पूंजी और 557 करोड़ रुपए की चुकता शेयर पूंजी थी। बिडर 22 दिसंबर तक PIM पर अपने सवाल दर्ज करा सकते हैं।
2019-20 में पवन हंस ने 28 करोड़ रुपए का घाटा दर्ज किया था
सरकार ने 2018 में अपनी 51 फीसदी हिस्सेदारी बेचने के लिए निविदा जारी की थी। लेकिन ONGC ने भी अपनी 49 फीसदी हिस्सेदारी सरकार के साथ ही बेचने का फैसला किया तो निविदा वापस ले लिया गया। इसके बाद 2019 में भी सरकार ने पवन हंस को बेचने की कोशिश की, लेकिन निवेशकों की ओर से प्रतिक्रिया नहीं मिलने पर सेल का प्रोसेस असफल हो गया। 31 जुलाई 2020 को कंपनी में कुल 686 कर्मचारी थे। इसमें से 363 रेगुलर और 323 कंट्रैक्चुअल स्टाफ थे। कारोबारी साल 2019-20 में कंपनी ने 28 करोड़ रुपए का घाटा दर्ज किया था। इससे पहले 2018-19 में कंपनी को 69 करोड़ रुपए का घाटा हुआ था।
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