अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों में भारी गिरावट आई है। पिछले 15 दिनों में इसमें 10% की कमी हुई है। इस वजह से देश में सरकारी तेल कंपनियां पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कमी कर सकती हैं।
64 डॉलर पर पहुंचा कच्चा तेल
जानकारी के मुताबिक कच्चा तेल यानी क्रूड ऑयल इस समय 64 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया है। यह इस महीने की शुरुआत में 71 डॉलर प्रति बैरल था। कच्चे तेल की कीमतों में कमी कमजोर मांग और रिकवरी की वजह से आई है। यूरोपियन शहरों में कोरोना के बढ़ते मामलों में से प्रतिबंध और लॉकडाउन फिर शुरू हो रहा है। तेल की कीमतें हाल के समय में हालांकि काफी बढ़ गई थीं। ऐसा इसलिए क्योंकि तेल उत्पादक देशों ने अप्रैल तक सप्लाई कट करने का फैसला किया था। उस समय वैक्सीन के आने और पूरी दुनिया में इसके पहुंचने से तेल की कीमतों को बढ़ाने में मदद मिली थी। साथ ही अमेरिका के राहत पैकेज ने भी इसमें मदद की।
लॉकडाउन फिर से लगने से तेल की मांग में कमी
विश्लेषकों के मुताबिक, उधर कुछ बड़ी अर्थव्यवस्थाओं ने फिर से कुछ शहरों में लॉकडाउन लगाने की शुरुआत कर दी है। इससे मांग में गिरावट आने के आसार हैं। इसका सीधा दबाव तेल की कीमतों पर दिखेगा। कच्चे तेल की गिरती कीमतों के कारण देश में तेलों की कीमतें कम हो सकती हैं। चूंकि आने वाले समय में कुछ राज्यों के विधानसभा चुनाव भी हैं। इसलिए इसकी संभावना ज्यादा है कि कीमतें घट जाएं।
27 फरवरी से नहीं बढ़ी तेल की कीमतें
हालांकि देश में 27 फरवरी के बाद से अभी तक कीमतें स्थिर हैं। पेट्रोल की कीमतें औसत लेवल पर दिल्ली में 91.17 रुपए प्रति लीटर हैं जबकि डीजल की कीमतें 81.47 रुपए प्रति लीटर हैं। इस साल की शुरुआत से पेट्रोल और डीजल की कीमतें 7.5 रुपए प्रति लीटर बढ़ी हैं। इस वजह से फरवरी में डीजल की मांग 8.5% घट गई थी। पेट्रोल की मांग में 6.5% की गिरावट आई थी।
रोज सुबह तय होती हैं तेल की कीमतें
सरकारी तेल कंपनियां रोज सुबह 6 बजे तेल की कीमतों को बढ़ाने या घटाने या स्थिर रखने का फैसला लेती हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि कच्चे तेल की कीमतों के आधार पर यह होचा है। कच्चे तेल की कीमतें करेंसी की चाल पर निर्भर होती हैं। वर्तमान में तेल की कीमतों में करीबन 60% टैक्स लगता है। यह अब तक का ऐतिहासिक रूप से सबसे ज्यादा टैक्स है। इसमें राज्य और केंद्र सरकार दोनों टैक्स लगाती हैं।
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