सितंबर में रिटेल महंगाई बढ़कर 7.41% हो गई। अगस्त में ये 7% थी। वहीं एक साल पहले यानी सितंबर 2021 में ये 4.35% थी। कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (CPI) आधारित रिटेल महंगाई दर के आंकड़े बुधवार को जारी किए गए। खाने-पीने का सामान खास तौर पर सब्जियों और दालों की कीमतों के बढ़ने की वजह से महंगाई बढ़ी है।
सितंबर महीने में खाने-पीने की चीजों की महंगाई दर अगस्त के 7.62% से बढ़कर 8.6% पर आ गई। जबकि सब्जियों की महंगाई अगस्त के 13.23% से बढ़कर 18.05% पर पहुंच गई है।
महंगाई कैसे प्रभावित करती है?
महंगाई का सीधा संबंध पर्चेजिंग पावर से है। उदाहरण के लिए, यदि महंगाई दर 7% है, तो अर्जित किए गए 100 रुपए का मूल्य सिर्फ 93 रुपए होगा। इसलिए महंगाई को देखते हुए ही निवेश करना चाहिए। नहीं तो आपके पैसे की वैल्यू कम हो जाएगी।
RBI कैसे कंट्रोल करती है महंगाई?
महंगाई कम करने के लिए बाजार में पैसों के बहाव (लिक्विडिटी) को कम किया जाता है। इसके लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) रेपो रेट बढ़ाता है। बढ़ती महंगाई से चिंतित RBI ने हाल ही में रेपो रेट में 0.50% इजाफा किया है। इससे रेपो रेट 5.40% से बढ़कर 5.90% हो गया है।
CPI क्या होता है?
दुनियाभर की कई इकोनॉमी महंगाई को मापने के लिए WPI (Wholesale Price Index) को अपना आधार मानती हैं। भारत में ऐसा नहीं होता। हमारे देश में WPI के साथ ही CPI को भी महंगाई चेक करने का स्केल माना जाता है।
भारतीय रिजर्व बैंक मौद्रिक और क्रेडिट से जुड़ी नीतियां तय करने के लिए थोक मूल्यों को नहीं, बल्कि खुदरा महंगाई दर को मुख्य मानक (मेन स्टैंडर्ड) मानता है। अर्थव्यवस्था के स्वभाव में WPI और CPI एक-दूसरे पर असर डालते हैं। इस तरह WPI बढ़ेगा, तो CPI भी बढ़ेगा।
रिटेल महंगाई की दर कैसे तय होती है?
कच्चे तेल, कमोडिटी की कीमतों, मैन्युफैक्चर्ड कॉस्ट के अलावा कई अन्य चीजें भी होती हैं, जिनकी रिटेल महंगाई दर तय करने में अहम भूमिका होती है। करीब 299 सामान ऐसे हैं, जिनकी कीमतों के आधार पर रिटेल महंगाई का रेट तय होता है।
अगस्त में इंडस्ट्रियल ग्रोथ घटकर -0.8% रह गई
इस बीच, इंडेक्स ऑफ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन (IIP) की मापी गई इंडस्ट्रियल ग्रोथ अगस्त में घटकर -0.8% रह गई, जबकि जुलाई में यह 2.4% थी। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर आउटपुट -0.% घटा। माइनिंग आउटपुट में 3.9% की कमी आई। इसके अलावा बिजली उत्पादन भी 1.4% गिरा है।
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