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भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के नव नियुक्त डिप्टी गवर्नर एम राजेश्वर राव ने शुक्रवार को कहा कि फाइनेंशियल सिस्टम में स्टैबिलिटी बनाए रखने के लिए बड़ी नॉन बैंकिंग फाइनेंश कंपनियों (NBFC) के लिए बैंकों जैसे सख्त नियम होने चाहिएं। उन्होंने साथ ही कहा कि अन्य NBFC के लिए नियम थोड़े नरम होने चाहिएं। उन्होंने कहा कि माइक्रोफाइनेंस इंस्टीट्यूशंस (MFI) के रेगुलेशन की भी समीक्षा की जा सकती है।
राव ने सुझाव दिया कि जो NBFC इतने बड़े नहीं हैं कि सिस्टेमिक रिस्क पैदा कर सकें और इतने छोटे भी नहीं हैं कि उन्हें नजरंदाज कर दिया जाए, ऐसी कंपनियों के रेगुलेटरी आर्बिट्रेज में कमी लानी चाहिए। NBFC पर एसोचैम द्वारा आयोजित कार्यक्रम में राव ने कहा कि बड़ी NBFC के लिए बैंकों जैसे सख्त रेगुलेशन होने से सिस्टेमिक जोखिम की एक सीमा को पार करने के बाद उन कंपनियों के लिए खुद को कमर्शियल बैंक में बदल लेने का इंसेटिव बना रहेगा। अन्यथा वे अपने नेटवर्क एक्सटर्नलिटी को घटाकर खुद को फाइनेंशियल सिस्टम की सीमा में ला सकती हैं।
माइक्रोफाइनेंस सेक्टर के रेगुलेशंस एक्टिविटी आधारित हों, कंपनी आधारित नहीं
राव ने अपने भाषण में माइक्रोफाइनेंस सेक्टर के लिए सख्त रेगुलेशन की वकालत की। कई बड़े MFI ने खुद को स्मॉल फाइनेंस बैंक बना लिया है। इससे माइक्रोफाइनेंस सेक्टर में NBFC-MFI कंपनियों की हिस्सेदारी घटकर 30 फीसदी से कुछ ज्यादा रह गई है। उन्होंने कहा कि कुछ MFI पर ही सख्त नियम लागू होते हैं। इस माइक्रोफाइनेंस सेक्टर के रेगुलेटरी टूल्स को फिर से प्रायोरिटाइज किए जाने चाहिएं, ताकि रेगुलेशंस एक्टिविटी आधारित हों, कंपनी आधारित नहीं। क्योंकि माइक्रोफाइनेंस रेगुलेशन का मूल मकसद ग्राहकों की सुरक्षा है।
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