दुनिया के 90% से ज्यादा हीरों की कटिंग-पॉलिशिंग करने वाला सूरत कुछ महीनों से कुदरती रफ डायमंड की किल्लत का सामना कर रहा है। रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते पैदा हुई इस समस्या से निपटने के लिए शहर की डायमंड इंडस्ट्री ने लैब ग्रोन डायमंड (LGD) का उत्पादन बढ़ाया है। इसके चलते अगले तीन वर्षों में इसका बिजनेस दोगुना बढ़कर 31 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का हो जाने का अनुमान है।
सूरत में 500 से ज्यादा लैब ग्रोन डायमंड मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स हैं और इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है। नतीजतन भारत में दुनिया का करीब 15% लैब ग्रोन डायमंड बनाया जाने लगा है। हालांकि चीन 56% LGD का उत्पादन करता है, लेकिन भारत की रफ्तार तेज है। भंडेरी लैब ग्रोन डायमंड्स के चेयरमैन घनश्याम भंडेरी ने बताया कि दो-तीन वर्षों में ही भारत में LGD का उत्पादन कुछ हजार कैरेट से बढ़कर 30 लाख कैरेट या लगभग 15,500 करोड़ रुपए का हो गया है। बीते वित्त वर्ष भारत से पॉलिश्ड LGD का निर्यात 106% बढ़कर 10 हजार करोड़ का हो गया।
कीमत 75% तक कम होने से युवाओं के बीच बढ़ी डिमांड
सेमी-कंडक्टर में भी इस्तेमाल
जेम्स एंड ज्वैलरी इंडस्ट्री के अलावा लैब ग्रोन डायमंड का इस्तेमाल सेमी-कंडक्टर, सैटेलाइट और 5-जी नेटवर्क जैसी टेक्नोलॉजी में भी होता है। ये सिलिकॉन चिप की तुलना में कम पावर में अधिक स्पीड से काम कर सकते हैं।
PLI स्कीम में शामिल करने की उठी मांग जेम्स एंड ज्वैलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के प्रेसिडेंट कोलिन शाह कहते हैं कि सरकार से लैब ग्रोन डायमंड इंडस्ट्री को PLI स्कीम में शामिल करने की बात हुई है। इस इंडस्ट्री में 10 लाख रोजगार और 40,000 करोड़ रुपए से ज्यादा का निर्यात टर्नओवर हासिल करने की क्षमता है।
क्या होते हैं लैब ग्रोन डायमंड?
कुदरती हीरे जमीन के नीचे लाखों साल में बनते हैं, जिनकी माइनिंग की जाती है, जबकि LGD लेबोरेटरी में बनाए जाते हैं। ये सिर्फ एक से चार हफ्तों में तैयार हो जाते हैं। ऐसे हीरों की बनावट, चमक, कठोरता, रासायनिक संरचना भी कुदरती हीरों जैसी ही होती है।
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