बुधवार से बाबा रामदेव मंदिर में श्रीश्वरी देवी का आध्यात्मिक प्रवचन शुरू हुआ। उन्होंने श्वेताश्वरोपनिषद के तीसरे अध्याय के आठवें मंत्र की व्याख्या करते हुए मानव जीवन के महत्व और कर्तव्यों को विस्तार से बताया। वेद मंत्र का अर्थ बताते हुए कहा कि केवल मनुष्य ही ऐसा जीव है जो ईश्वर को जानकर माया से उत्तीर्ण हो सकता है। इसके लिए उन्होंने वेद, रामायण, पुराण, गीता, गुरुग्रंथ साहिब जैसे ग्रंथों का हवाला देते हुए कहा कि 84 लाख प्रकार के जीवों में मनुष्य का शरीर ही सबसे श्रेष्ठ है। इसे पाने के लिए स्वर्ग के देवी-देवता भी तरसते हैं। मनुष्य का शरीर ज्ञान प्रधत्व और पुरुषार्थ युक्त है। उसे कर्मों का फल मिलता है। अच्छे कर्म का फल स्वर्ग और बुरे कर्म के फल के रूप में नरक मिलता है। मोक्ष और भक्ति कर हम परमानंद की प्राप्ति कर सकते हैं। वहीं अन्य योनियों में किए गए कर्मों का फल नहीं मिलता। इस वजह से उन्हें बार-बार मृत्युलोक में तब तक आना पड़ता है जब तक वे अपना लक्ष्य प्राप्त न कर लें। उन्होंने कहा कि मानव रूप मिलने पर हमारा लक्ष्य प्राप्त हो जाता है। इसमें वह कर्म की गति से अपने जीवन को सिद्ध करता है। मनुष्य शरीर पानी के बुलबुले के समान क्षणभंगुर है।
बालोद. प्रवचन के पहले दिन कलश शोभायात्रा निकाली गई।