लॉकडाउन ने चाहे कितनी भी मुश्किलें पैदा की हों लेकिन पर्यावरण के नजरिए से बहुत कीमती सबक भी दिए हैं। लॉकडाउन के दरमियान कई शहरों की हवा की शुद्धता ऐसी रही जैसे शिमला-कुल्लू जैसे हिल स्टेशनों में होती है। लोगों ने बेहतर पर्यावरण के महत्व को सीधे तौर पर महसूस किया। अब लोगों की चिंता है कि पर्यावरण में जो सुधार दिखाई दिया है, उसे कैसे स्थायी किया जाए? आइए जानते हैं कि लॉकडाउन में आबो-हवा कितनी बदली और आगे हमें क्या करने की जरूरत है...
प्रदूषण कम किया, नदियां गंदी नहीं कीं, कचरा कम किया, तो दिखा साफ आकाश, चहचहाती चिड़ियां; घातक गैसों में कमी, कई बीमारियों से राहत…
एक फैक्ट ये भीः जहां-जहां प्रदूषण ज्यादा, वहां कोरोना ज्यादा फैला
जर्मनी की मार्टिन लूथरकिंग युनिवर्सिटी के प्रोफेसर यगोन अगेन के नेतृत्व में किए गए एक रिसर्च में पाया गया है कि इटली,स्पेन, फ्रांस और जर्मनी के जिन 66 इलाकों में कोरोना से सर्वाधिक मौत हुई हैं, वहां एयर पॉल्यूशन की मात्रा सबसे ज्यादा थी।
हमने लॉकडाउन में जो पर्यावरण को दिया, उसके नतीजे सामने हैं। हवा साफ है, इसलिए अब पर्यावरण हमने क्या चाहेगा। हम अपनी लाइफस्टाइल बदलें। वहीं, सरकार पॉलिसी में सुधार लाए। पर्यावरण क्षेत्र में काम करने वाली संस्था क्लाइमेट ट्रेंड्स ने लॉकडाउन के बीच 11 शहरों के लगभग 1082 लोगों से `पर्यावरण स्थायित्व और लोगों का नजरिया` विषय पर एक सर्वे किया है। संस्था की डायरेक्टर आरती खोसला ने बताया कि इस सर्वे से बहुत अहम बातें सामने आई हैं। स्वच्छ पर्यावरण, हवा में पॉल्यूशन में कमी, साफ पानी, पॉल्यूशन जनित बीमारियों में कमी जैसी बातों ने लोगों को पर्यावरण से हुई घातक छेड़छाड़ का अहसास करवाया है। अधिकांश लोगों का मानना है कि वे भी तैयार हैं सरकार को भी पॉल्यूशन की बेहतरी के लिए कुछ उपाय करने चाहिए।
1- सरकार को केमिकल, सीमेंट और स्टील जैसी पर्यावरण के लिए घातक इंडस्ट्रीज के लिए कोई समयबद्ध प्रोग्राम बनाना चाहिए ताकि उन्हें पॉल्यूशन फ्री कर सकें।
2- सरकार को शहर और आसपास इकोलॉजिकल बैलेंस बनाने के लिए प्रयास करना चाहिए। इकोलॉजिकल बैलेंस का मायना है जंगल और जीवों के बीच सही संतुलन बनाया जाना।
3- सरकार को इलेक्ट्रॉनिक व्हीकल खरीदने वालों को प्रोत्साहित करने करने का प्रयास करना चाहिए।
4- इसी तरह पब्लिक ट्रांसपोर्ट में इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए।
5- सरकार को इस तरह की सड़कें बनाना चाहिए जो सिर्फ साइकिल चलाने वालों और पैदल चलने वालों के लिए हों।
6- सरकार को प्रदूषण में सबसे ज्यादा योगदान देने वाले कोयला से चलाए जाने वाले पावर स्टेशनों, डीजल जेनरेटरों की जगह विंड, सोलर हाइड्रो पावर ऊर्जा की तरफ जाना चाहिए।
7- लोगों का मानना है कि पॉल्यूशन के स्तर को कम करने में सबसे ज्याद मदद अतिरिक्त पार्कों के निर्माण, ईको फ्रेंडली ट्रांसपोर्ट और इंडस्ट्रीज में ग्रीन एनर्जी के इस्तेमाल से मिलेगी।
8- वर्क फ्रॉम होम से भी शहरों में रोड पर वाहनों की कमी होगी जिससे पॉल्यूशन घटने में मदद मिलेगी।
9- लोगों का मानना है कि वो इलेक्ट्रिक व्हीकल लेना चाहेंगे, यदि सरकार उनके लिए शहर और हाइवे पर चार्जिंग प्वाइंट्स की व्यवस्था कर दे। इससे पॉल्यूशन घटाने में बहुत मदद मिलेगी।
इंडस्ट्रियल पॉल्यूशन रोकने के लिए यदि उसे कोई पॉलिसी लाना चाहिए, ताकि एयर क्वालिटी लगातार इंप्रूव होती रहे। लोगों में भी पर्यावरण को लेकर अवेयरनेस लाई जानी चाहिए। लोग लॉकडाउन में अपने स्तर पर डिसिप्लिन दिखा चुके हैं। अब जरूरत है इस अहसास को निरंतर बनाए रखने की।
लोगों का नजरिया बदला है तो व्यवहार भी बदल जाएगा
एक महत्वपूर्ण बात इस सर्वे से यह भी निकली कि लॉकडाउन ने लोगों का पर्यावरण के प्रति नजरिया बदला है। लोगों की यह राय बनी है कि पर्यावरण पर जरूरत से ज्यादा दबाव नहीं डाला जाना चाहिए। हमें अपने रिसोर्सेज को किसी तरह की क्राइसिस के लिए बचा कर रखना है। पर्यावरण के दोहन के स्थान पर उसे हरा-भरा बनाने की कोशिश चाहिए। बड़ी बात यह है कि बदला हुआ यही नजरिया ही लोगों के पर्यावरण के प्रति व्यवहार को बदलने का काम करेगा।
कुछ कदम हम भी उठाएंः कार नहीं, साइकिल अपनाएं
सबने देख लिया कि, न प्यूरीफाई काम आता है न साफ हवा देने वाला एसी, अब तो कार नहीं, साइकिल की जरूरत है। कार को छोड़कर साइकिल जैसे तरीके अपनाए जाने की जरूरत है। सुबह-सुबह हरियाली के बीच कुछ देर की वॉक और वो सब कुछ जिसमें पब्लिक एक्सपोजर कम से कम हो। अब गपशप की नहीं बल्कि डिजिटली कनेक्ट होने की जरुरत है। इन छोटे-छोटे कदमों से हम भी बना सकते हैं, अपना बेहतर पर्यावरण।
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