शालिनी वेणुगोपाल भगत. कभी अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा के परिवार के लिए व्हाइटहाउस में खाना बना चुके स्टार शेफ विकास खन्ना, अब प्रवासी मजदूरों के लिए खाने की व्यवस्था कर रहे हैं। वे भारत की संस्थाओं के साथ मिलकर लाखों खाने के पैकेट्स जरूरतमंदों तक पहुंचा रहे हैं। देश में 25 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा हो गई थी। लाखों मजदूर काम और पैसों की तंगी के चलते पैदल ही अपने घरों की ओर निकल पड़े थे। डर के बाद ये मजदूर भूख का ही सबसे ज्यादा सामना कर रहे थे।
"मैं हमारे लोगों को दिखाना चाहता हूं कि एकता अभी जिंदा है"
हाल ही में भारत के कई हिस्सों में संकट आ गया और लोग खाने के लिए परेशान थे। विकास यह सब खबरों के जरिए अपने घर से ही देखकर हताश हो रहे थे। बीते हफ्ते एक इंटरव्यू के दौरान विकास ने कहा कि, हमने हमारे लोगों को पूरी तरह से असफल कर दिया। मैं उन्हें दिखाना चाहता हूं कि एकता अभी जिंदा है। उन्होंने कहा कि, मेरी मां अमृतसर में अकेली रहती हैं और मैंने सोचा कि अगर उन्हें जरूरत पड़ती है तो उनकी मदद करने वाला कोई नहीं है।
ट्विटर पर की थी मदद की अपील
भारत में विकास काफी लोकप्रिय हैं। उन्होंने अप्रैल की शुरुआत में ट्विटर पर एक इमोशनल अपील की थी, जिसमें उन्होंने खाने के लिए परेशान हो रहे लोगों से उनकी डिटेल मांगी थी। देखते ही देखते उनके पास जवाबों की बाढ़ आ गई थी। वे जान गए कि भूखे लोगों तक पहुंचना इतना आसान नहीं था।
मदद करने वाला खाना लेकर गायब हो गया
विकास ने पहली कोशिश बैंगलुरु के पास स्थित एक एल्डर केयर होम से की थी। लेकिन इसमें डिलीवरी करने वाला करीब 900 किलो से ज्यादा चावल और 400 किलो से ज्यादा दाल लेकर गायब हो गया था। किसी भरोसेमंद साथी की खोज उन्हें नेशनल डिसास्टर रिलीफ फोर्स की ओर ले गई। विकास ने रिलीफ फोर्स के प्रमुख सत्य नारायण प्रधान से इस बारे में बात की।
प्रधान ने अपनी चर्चा को याद करते हुए बताया कि विकास ने उनसे कहा था क्या आप मेरी मदद कर सकते हैं, मैं यहां बहुत दूर न्यूयॉर्क में रहता हूं? उन्होंने कहा कि मैं इसपर लॉजिस्टिक्स के जरिए विकास की मदद करने के लिए तैयार हुआ। उन्होंने बताया कि, यह पार्टनरशिप दिल्ली में शुरू हुई थी और दिन ब दिन तेजी से बढ़ रही थी। प्रधान ने विकास के प्रयासों को लेकर कहा कि, उन्होंने अपना खुद का पैसा इसमें लगाया है, जानते हुए कि यह काफी कठिन होगा इसलिए हम उनकी हरसंभव मदद करने के लिए तैयार हुए।
एक महीने में बांटे 70 लाख से ज्यादा खाने के पैकेट
विकास ने बताया कि, इस शरुआत के जरिए बीते महीने ड्राय फूड और तैयार खाने के 70 लाख से ज्यादा पैकेट वितरित किए हैं। भारत की चावल कंपनी दावत और गेट ने खाना डोनेट किया, पेटिएम इसका स्पॉन्सर बना और हंगर बॉक्स कंपनी ने मुंबई और नॉएडा स्थित अपने किचन खाने बनाने के लिए ऑफर किए। लॉकडाउन में रियायतें मिलने के बाद यह काम थोड़ा आसान हो गया है नहीं तो इससे सामान को स्टेट बॉर्डर्स और रेड जोन में ले जाना एक बुरे सपने की तरह था।
केवल खाने के नहीं शादी के प्रस्ताव भी आ रहे हैं
विकास ने अपने प्रयासों की शुरुआत अनाथ आश्रम, वृद्धाश्रम और गरीब इलाकों में ड्राय फूड के जरिए की थी। देशभर में जरूरतमंद लोगों ने उन्हें ईमेल और ट्विटर के जरिए कॉन्टेक्ट किया और उन्होंने सभी की मदद का रास्ता निकाला। खास बात है कि, इस दौरान विकास को खाने की मदद मांगने वालों के अलावा शादी के भी ऑफर्स आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि, यह सभी शादी के प्रपोजल उनकी मदद की कोशिशों को धीमा कर रहे थे।
ईद से पहले मुंबई में 2 लाख से ज्यादा लोगों की मदद
कुछ हफ्ते पहले विकास ने जाना कि उनकी कोशिशें सबसे ज्यादा परेशान लोगों तक नहीं पहुंच रही हैं। हजारों प्रवासी मजदूर लॉकडाउन के कारण फंस गए हैं और लंबी दूरी चल कर पूरी कर रहे हैं। उन्हें पता लगा कि, ड्राय फूड इन लोगों के काम का नहीं है, इसलिए उन्होंने भारत की सबसे बड़ी गैस कंपनियों में से एक भारत पेट्रोलियम के साथ हाथ मिलाया और गैस स्टेशन में किचन तैयार किए। शुक्रवार को यानी ईद के एक दिन पहले विकास की टीम ने मुंबई में 2 लाख से ज्यादा लोगों को फूड किट बांटी। इस किट में दाल, चावल, आटा, फल, सब्जियां, चाय, कॉफी, मसाले, शक्कर, पास्ता, तेल और सूखे मेवे शामिल थे।
रमजान में रखते हैं रोजा
विकास बताते हैं कि, उनके दिल में इस त्यौहार की खास जगह है। क्योंकि एक बार 1992 में हुए मुंबई दंगों में वो फंस गए थे। एक मुस्लिम महिला ने उन्हें अपने घर में रखा। उन्होंन कहा कि, उस महीला ने मेरी जान बचाई थी। तब से ही मैं रमजान में एक दिन का रोजा जरूर रखता हूं। उन्होंने अनुमान लगाया कि उनकी कोशिश से हर रोज करीब 275000 लोगों को खाना मिल रहा है। उन्होंने कहा कि, मुझे ऐसा महसूस हो रहा है कि बीते 30 साल की ट्रैनिंग और 20 घंटे के काम ने मुझे इसी वक्त के लिए तैयार किया था। यह मेरे करिअर के सबसे ज्यादा संतुष्टि देने वाले दो महीने थे।
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