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जब अमेरिका में कोराना का इतिहास लिखा जाएगा, तब इतिहासकार शायद लिखेंगे कि राष्ट्रपति ट्रम्प की सबसे बड़ी गलती यह नहीं थी कि वे 2020 की शुरुआत में वायरस से लड़ने की सही रणनीति नहीं बना पाए, जब इसकी रणनीति पर बहस हो रही थी। वे तो यह लिखेंगे कि ट्रम्प जून 2020 में तब असफल रहे, जब सही रणनीति स्पष्ट और आसान थी।
इसमें शक नहीं कि वायरस रहस्यमयी है। लेकिन अब इसके बारे में हम इतना तो जानते ही हैं, जिससे लॉकडाउन के बाद के इस चरण को कम खतरनाक और आर्थिक रूप से ज्यादा व्यवहार्य बना सकें। हम जानते हैं कि जिन देशों में सभी मास्क पहन रहे हैं, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहे हैं, वहां लोग कम संक्रमित हो रहे हैं और कर रहे हैं।
शीर्ष सरकारी विशेषज्ञ डॉ एंथनी फॉची ने बताया है कि इन आसान तरीकों के साथ में टेस्टिंग, संक्रमण की चेन को ट्रेस करने और संक्रमितों को क्वारेंटाइन करने से लॉकडाउन के बाद फिर से बढ़ रही मरीजों की संख्या को कम कर सकते हैं।
और इधर अमेरिका में ऐसे राष्ट्रपति हैं, जिन्होंने मास्क पहनने की अवज्ञा को उदारवादियों के खिलाफ चुनौतीपूर्ण साहसिक कार्य में बदल दिया, जिन्होंने वेस्ट पॉइंट के 1100 कैडेट्स को कैंपस वापस बुलाकर दो हफ्तों के लिए क्वारेंटाइन करवाया, ताकि वे उनके ग्रैजुएशन समारोह को संबोधित करते हुए फोटो खिंचवा सकें, जिन्होंने बार और रेस्टोरेंट खोलने वाले गवर्नरों की तारीफें कीं और जिन्होंने टुल्सा में शनिवार को बड़ी रैली की योजना बनाई, जहां सबसे जरूरी एहतियात यह था कि आपको एक कानूनी घोषणापत्र देना होगा कि ‘आप स्वेच्छा से कोविड-19 होने का जोखिम उठा रहे हैं और इसके लिए डोनाल्ड ट्रम्प को जिम्मेदार नहीं ठहराएंगे।’
यह बहुत भयानक है, जैसे ट्रम्प रोज सुबह उठकर खुद से पूछते हों: आज किस स्वास्थ्य विशेषज्ञ की सलाह को नकारा दूं? कोरोना का फैलाव रोकने वाले कौन-से आसान तरीकों को नजरअंदाज करूं? आज कौन-से नीम-हकीम वाले इलाज को मैं बढ़ावा दूं?
हमारा लक्ष्य ज्यादा से ज्यादा जानें और आजीविकाएं बचाने वाली टिकाऊ रणनीति होना चाहिए। और मैं हैरान हूं कि जो भी जान व नौकरियां बचाने की बात कर रहा है, उसे संवेदनाशून्य पूंजीवादी बता रहे हैं। अब 4 करोड़ अमेरिकी बेरोजगार हैं। अगर यही स्थिति रही तो इसके मानसिक और शारीरिक दुष्प्रभाव भयावह होंगे।
लेकिन ट्रम्प एहतियात की बात किए बगैर चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा अमेरिकी काम पर लौटें। यह बेहद मूर्खतापूर्ण है। क्योंकि अगर लोग बहुत से रिश्तेदारों, दोस्तों और सहकर्मियों को बीमार होते, मरते देखेंगे तो वे बाहर जाकर काम नहीं करेंगे, फिर ट्रम्प कुछ भी कहें।
ट्रम्प जन स्वास्थ्य पर जो प्रतिक्रिया दे रहे हैं, वह विज्ञान आधारित नहीं है, उनकी राजनीतिक जरूरतों पर आधारित है। कोविड-19 का फिर से बढ़ना, अस्पतालों में भीड़, साथ में पुलिस द्वारा हत्याओं के विरोध में अश्वेतों का प्रदर्शन, उसके साथ बेहद बेरोजगारी के साथ थके हुए राष्ट्र को दूसरे लॉकडाउन में भेजने का आदेश, यह सब एक साथ हो तो ध्यान देना जरूरी है।
आज एक असली राष्ट्रपति को गवर्नरों से क्या करने को कहना चाहिए? जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. डारिया लॉन्ग और डॉ. डेविड काट्ज द्वारा हाल ही में प्रस्तावित दिशानिर्देशों के आधार पर लोगों को पूरी सुरक्षा के साथ काम पर वापस लाने की तैयार की जाए।
काट्ज ने एक इंटरव्यू में कहा, ‘आंकड़े बता रहे हैं कि वायरस युवाओं और स्वस्थ लोगों की तुलना में गंभीर रूप से बीमार और बुजुर्गों के लिए ज्यादा घातक है। यह भी स्पष्ट है कि बेरोजगारी के नतीजों और स्वास्थ्य के सामाजिक निर्धारकों के बारे में चिंताजनक अनुमान भी सही साबित हो रहे हैं।
हम नशा, घरेलू हिंसा और मानसिक रोगों के मामले बढ़ते हुए देख रहे हैं। हम यह भी जानते हैं कि यह वायरस हमेशा आसानी से नहीं फैलता। कई लोग कम एक्सपोजर या इस वायरस के लिए शरीर की प्रतिरोधकता या दोनों के चलते संक्रमित नहीं भी हो रहे हैं।’
काट्ज तर्क देते हैं, ‘अब हमारे पास कुछ करने के लिए पर्याप्त जानकारी है। हमें कमजोरों और बुजुर्गों की सुरक्षा के लिए कदम उठाने चाहिए। फिर बाकी लोग अपना काम शुरू कर सकते हैं। लेकिन जो नीतियां अभी हैं, उससे जोखिम बढ़ जाएगा।’ सबकुछ सामान्य होने के लिए कोरोना के खिलाफ व्यापक रोगप्रतिरोधक क्षमता की जरूरत है, जो केवल दो तरीकों से मिल सकती है।
पहला, वैक्सीन है जो सुरक्षित, असरकारी हो। उम्मीद है कि वैक्सीन सितंबर तक आ जाए, लेकिन नहीं आती है तो हम अर्थव्यवस्था को रोके नहीं रख सकते। काट्ज कहते हैं, ‘दूसरा तरीका है प्राकृतिक हर्ड इम्यूनिटी, जो उन लोगों को मिलेगी जिन्हें गंभीर संक्रमण का खतरा नहीं है, जो जरूरी सुरक्षा उपायों के साथ सामान्य जीवन की ओर लौट सकते हैं।
इस बीच हमें उनकी रक्षा भी करनी होगी जो असुरक्षित हैं। इसी तरह के विचारशील, जोखिम कम करने वाले तरीकों से ही हमें वायरस से अधिकतम सुरक्षा और न्यूनतम नुकसान के साथ हर्ड इम्यूनिटी मिलेगी।’ लेकिन हमारा मौजूदा बेतरतीब तरीका तो संकट की भीख मांग रहा है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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