17 दिसंबर को मद्रास हाईकोर्ट ने फेसबुक पोस्ट को लेकर युवक पर दर्ज हुई FIR को रद्द करते हुए कहा कि संविधान के आर्टिकल 19(1) में ‘राइट टु बी फनी’ को भी जोड़ा जा सकता है। राइट टु बी फनी यानी मजाकिया होने का अधिकार। कोर्ट ने कहा कि अगर ये फैसला कार्टूनिस्ट या व्यंग्यकार दे रहे होते तो हो सकता कि वे फंडामेंटल ड्यूटी में 'ड्यूटी टु लाफ' को जोड़ते। यानी मौलिक कर्तव्यों में हंसने का कर्तव्य भी जोड़ा जा सकता था।
आइए समझते हैं, पूरा मामला क्या है? हाईकोर्ट ने ये टिप्पणी क्यों की? हाईकोर्ट का पूरा फैसला क्या है? और राइट टु बी फनी क्या होता है?
सबसे पहले पूरा मामला समझते है
तमिलनाडु में कम्युनिस्ट पार्टी (CPI-ML) के नेता मथिवनन अपनी फैमिली के साथ हिल स्टेशन घूमने गए। इस दौरान उन्होंने ट्रिप की फोटोज फेसबुक पर पोस्ट की। फोटो के कैप्शन में लिखा ‘Trip to Sirumalai for shooting practice’ यानी 'शूटिंग (फोटोग्राफी) प्रैक्टिस के लिए सिरुमलाई की यात्रा'। दरअसल, मथिवनन ने ये कैप्शन फोटोग्राफी के लिए लिखा था, लेकिन पुलिस ने शूटिंग को गोली चलाने से जोड़ते हुए उन पर केस दर्ज कर लिया।
मथिवनन पर आपराधिक साजिश रचने, देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने समेत कई गंभीर धाराओं में केस दर्ज कर किया गया।
पुलिस ने मथिवनन को गिरफ्तार कर रिमांड के लिए मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया। हालांकि मजिस्ट्रेट ने रिमांड देने से मना कर दिया। इसके बाद अपने ऊपर दर्ज केस हटाने के लिए मथिवनन ने मद्रास हाईकोर्ट का रुख किया।
हाईकोर्ट ने फैसले में क्या कहा?
राइट टु बी फनी क्या है?
आसान भाषा में समझें तो राइट टु बी फनी यानी मजाकिया होने का अधिकार। हाईकोर्ट का मानना है कि जिस तरह अभी आपको संविधान के तहत कई तरह के अधिकार मिले हुए हैं, उसी तरह मजाकिया होने का अधिकार भी दिया जा सकता है।
कोर्ट ने अपने जजमेंट में और क्या कहा?
कोर्ट ने भारत में रीजनल डाइवर्सिटी का हवाला देते हुए यह भी बताया कि हमें किस बात पर हंसना है यह एक गंभीर सवाल है। कोर्ट ने इसको समझाने के लिए अलग-अलग उदाहरण दिए हैं। कोर्ट ने कहा कि हमारे यहां वाराणसी से लेकर वाडीपट्टी तक ‘होली काऊ’ है। उसका मजाक उड़ाने की किसी की हिम्मत नहीं होती जबकि होली काऊ की कोई लिस्ट नहीं है। हर व्यक्ति के लिए होली काऊ अलग-अलग होती है।
इसी तरह पश्चिम बंगाल में टैगोर इतनी प्रतिष्ठित शख्सियत हैं कि खुशवंत सिंह को उनके बारे में टिप्पणी करना महंगा पड़ा था। दरअसल 2013 में खुशवंत सिंह ने रवीन्द्रनाथ टैगोर को लेकर कहा था कि वे "बिना किसी महान योग्यता के लेखक थे"। इसके बाद खासा विवाद हुआ था।
कोर्ट ने कहा कि तमिलनाडु में पेरियार एक होली काऊ की तरह है। इसी तरह केरल में कार्ल मार्क्स और लेनिन आलोचना के परे हैं। राज्यों की तरह देश में भी एक होली काऊ है जिसे नेशनल सिक्योरिटी कहा जाता है।
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