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भास्कर एक्सप्लेनर:किसानों के बिल के मुद्दे पर प्रधानमंत्री पर भी भरोसा क्यों नहीं कर रहे हैं पंजाब के किसान? कानूनों पर अकाली दल पहले राजी था, बाद में नाराज क्यों हो गया?

3 वर्ष पहले
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  • भारतीय खाद्य निगम की खरीद का बड़ा हिस्सा आता है पंजाब से और किसानों को लग रहा है कि एफसीआई अनाज खरीदना बंद कर देगा
  • छोटे किसान और खेत मजदूर ही अकाली दल का मुख्य वोटबैंक, उन्हें नाराज कर और कमजोर नहीं होना चाहती सुखबीर बादल की पार्टी

अब तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आकर भी कह दिया है कि न तो भारतीय खाद्य निगम किसानों से अनाज खरीदना बंद करेगा और न ही न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बंद होने वाला है। तब भी किसानों के कानूनों से जुड़े मसले पर अकाली दल नाराज है। जो अकाली दल चार दिन पहले तक इन विधेयकों पर भाजपा के साथ खड़ा था, उसे अब क्या हो गया है? पंजाब में तो उसने जून में जारी ऑर्डिनेंस का बचाव तक किया।

कुछ ही दिनों में ऐसे घटनाक्रम हुए कि अकाली दल ने न केवल विधेयकों का विरोध किया, बल्कि पार्टी अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल की पत्नी हरसिमरत कौर बादल ने केंद्रीय कैबिनेट तक से इस्तीफा दे दिया। अब सवाल उठ रहा है कि यदि किसानों की भलाई की बात थी तो अकाली दल ने पहले इन विधेयकों का विरोध क्यों नहीं किया? कुछ मुद्दों पर पहले भी मतभेद रहे हैं, ऐसे में सरकार से बाहर निकलने या एनडीए छोड़ने की क्या जरूरत थी?

सबसे पहले समझते हैं कि यह कानून क्या है और इनसे क्या बदलेगा?

  • कृषि सुधारों को टारगेट करने वाले तीन विधेयक हैं- द फार्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फेसिलिटेशन) बिल 2020; द फार्मर्स (एम्पॉवरमेंट एंड प्रोटेक्शन) एग्रीमेंट ऑफ प्राइज एश्योरेंस एंड फार्म सर्विसेस बिल 2020 और द एसेंशियल कमोडिटीज (अमेंडमेंट) बिल 2020।
  • सरकार कह रही है कि यह विधेयक आजादी के बाद एग्रीकल्चर सेक्टर में सबसे बड़े सुधार के तौर पर लागू किए जा रहे हैं। एक कानून किसानों को कृषि उपज मंडियों से बाहर अपनी फसल बेचने की इजाजत देता है। यानी दलालों पर निर्भरता खत्म। लेकिन, कांग्रेस समेत कुछ पार्टियों को इसमें कॉर्पोरेट्स को लाभ पहुंचाने की साजिश नजर आ रही है।
  • इन तीनों ही कानूनों को केंद्र सरकार ने लॉकडाउन के दौरान 5 जून 2020 को ऑर्डिनेंस की शक्ल में लागू किया था। यह तीनों लोकसभा में पास हो चुके हैं। अब यह चर्चा के लिए राज्यसभा में जाएगा। वहां से पास होने पर कानून लागू हो जाएगा। सरकार की कोशिश इसी सत्र में इन तीनों ही कानूनों को संसद से पारित कराने की है।

अकाली दल क्यों कर रहा है इन विधेयकों का विरोध?

  • यह समझना जरूरी है कि पंजाब में अकाली दल की इस समय स्थिति क्या है? उसके वोटबैंक की रीढ़ है छोटे किसान और खेत मजदूर। सुखबीर कहते हैं कि 'हर अकाली एक किसान है और हर किसान एक अकाली है।' पंजाब में इस समय किसानों के संगठनों ने राजनीतिक मतभेद मिटाकर इन ऑर्डिनेंस के खिलाफ एकजुटता दिखाई है।
  • कांग्रेस के बाद देश की दूसरी सबसे पुरानी पार्टी शिरोमणि अकाली दल ने 2017 के पंजाब विधानसभा चुनावों में 117 में से सिर्फ 15 सीटें जीती थीं। जिस पार्टी ने 2007 से 2017 तक लगातार 10 साल राज्य में शासन किया, उस अकाली दल और भाजपा गठबंधन को सिर्फ 15% सीटें मिली थी। कांग्रेस ने 1957 के बाद सबसे मजबूती जीत हासिल की थी।
  • ऐसे में आंदोलन में किसानों के साथ खड़े होना अकाली दल को नई ताकत देगा। किसी ने ऐसा सोचा भी नहीं था कि वह इस मुद्दे पर भाजपा के खिलाफ खड़ा हो सकता है। इस आंदोलन से अकाली दल को नई ताकत मिल सकती है। किसानों को सपोर्ट देकर अकाली शासन में 2015 में हुई सैक्रिलेज की घटनाओं का गुस्सा कम कर सकते हैं।

पंजाब में ही क्यों भड़के हुए हैं किसान?

  • पंजाब और हरियाणा के किसान संगठनों की माने तो यह विधेयक शुरुआत है। आगे चलकर मिनिमम सपोर्ट प्राइज (एमएसपी) बंद हो जाएगी। कृषि उपज मंडियां भी बंद हो जाएंगी। पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी की स्टडी के मुताबिक राज्य में 12 लाख किसान परिवार हैं। 28 हजार रजिस्टर्ड कमीशन एजेंट्स। यह सीधे-सीधे खेती से जुड़े हैं।
  • पंजाब की इकोनॉमी मुख्य तौर पर फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (एफसीआई) जैसी केंद्रीय एजेंसियों के फंड्स पर चलती है। 2019-20 रबी सीजन में केंद्रीय पूल में खरीदे गए 341.3 लाख मीट्रिक टन गेहूं में पंजाब की हिस्सेदारी 129.1 लाख मीट्रिक टन थी। 2018-19 में केंद्र ने 443.3 लाख मीट्रिक टन चावल खरीदा, इसमें पंजाब से 113.3 एलएमटी चावल खरीदा गया।
  • किसानों को लग रहा है कि एफसीआई अब राज्य की मंडियों से गेहूं-चावल नहीं खरीदेगी। इसका मतलब है कि दलाल/कमीशन एजेंट/ आढ़तिए को 2.5 प्रतिशत कमीशन भी नहीं मिलेगा। राज्य को भी एफसीआई से मिलने वाला 6% कमीशन नहीं मिलेगा। खुले में अनाज बेचने की अनुमति मिलने पर यह कमीशन बंद हो जाएगा।

अकाली दल और भाजपा के रिश्तों में खटास क्या पहली बार पड़ी है?

  • पहली बार तो ऐसा नहीं हुआ है। नागरिकता कानून और जम्मू-कश्मीर के मसले पर भी दोनों पार्टियों में खटास आई थी। लेकिन, तब भी ऐसी स्थिति नहीं बनी थी कि हरसिमरत ने इस्तीफा दे दिया हो। अब की बार मामला गंभीर नजर आ रहा है।
  • दरअसल, सुखबीर बादल पार्टी के सर्वेसर्वो तो बन गए, लेकिन अब तक अपनी काबिलियत साबित नहीं कर सके हैं। वहीं, मोदी सरकार ने अकाली दल से अलग होकर अलग ग्रुप बनाने वाले राज्यसभा सांसद एसएस ढींडसा को पद्म भूषण दिया था।
  • अकाली दल ने इससे पहले जनवरी में संसद में नागरिकता (संशोधन) अधिनियम को सपोर्ट किया। लेकिन पंजाब विधानसभा में जब इस विषय पर विरोध में संकल्प आया तो उसे भी सपोर्ट किया। इसके बाद दिल्ली चुनावों में भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ने का फैसला किया।
  • इसी हफ्ते संसद में सुखबीर बादल ने नए केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के लिए भाषा संबंधी विधेयक में पंजाबी शामिल न करने पर विरोध जताया था। उनका कहना था कि खालसा राज के समय से वहां पर स्थानीय स्तर पर पंजाबी बोली जाती रही है।
  • इससे पहले, 2017 के चुनावों से पहले भी संकेत आए थे कि दोनों पार्टियां अलग-अलग विधानसभा चुनाव लड़ सकती हैं। हालांकि, दोनों अलग हुए नहीं थे। प्रकाश सिंह बादल दोनों पार्टियों को जोड़ने रखने में अहम कड़ी थे। ऐसे में सुखबीर की प्रतिभा और क्षमता अब दांव पर लगी है।
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