अमरनाथ यात्रा पर स्टिकी बम हमले का खतरा मंडरा रहा है। खुफिया एजेंसियों को पुख्ता जानकारी है कि अमरनाथ यात्रियों को ले जाने वाले वाहनों पर स्टिकी बम से हमला किया जा सकता है। 30 जून से शुरू होने वाली इस यात्रा में इस बार करीब 3 लाख से ज्यादा यात्री पहुंचेंगे। भारी भीड़ के चलते सुरक्षा एजेंसियों ने अपने सिक्योरिटी प्लान में बदलाव कर दिया है। सिक्योरिटी एजेंसी ने गाड़ियों के मूवमेंट के प्लान में बड़ा बदलाव किया है।
जम्मू-कश्मीर में आतंकियों के पास स्टिकी बम होने को लेकर सुरक्षा एजेंसियां अलर्ट पर हैं। दरअसल, स्टिकी बम ऐसे विस्फोटक होते हैं जिन्हें गाड़ियों पर चिपकाकर कहीं दूर से बैठकर भी विस्फोट किया जा सकता है। इनका इस्तेमाल दूसरे वर्ल्ड वॉर से लेकर अफगानिस्तान में तालिबानी आतंकियों तक ने किया है।
ऐसे में चलिए जानते हैं कि आखिर क्या है स्टिकी बम? स्टिकी बम कब और कहां हुए इस्तेमाल? आतंकी क्यों करते हैं इनका इस्तेमाल? भारत में कब हुआ इनका प्रयोग?
अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा के लिए जारी हुई नई SOP क्या है
पिछले कुछ दिनों में सुरक्षा एजेंसियों ने आतंकियों के पास से कई स्टिकी बम बरामद किए हैं। गिरफ्तार हुए आतंकियों से हुई पूछताछ और बाकी सबूतों के आधार पर इस बात की आशंका जाहिर की जा रही है कि कश्मीर में मौजूद आतंकी संगठनों के पास स्टिकी बम पहले ही पहुंच चुके हैं। पिछले महीने कटरा से जम्मू जा रही एक बस पर हमले में भी स्टिकी बम के इस्तेमाल का शक है, जिसकी NIA जांच कर रही है।
पिछले हफ्ते ही पुलिस ने कश्मीर में आतंक फैलाने का पाकिस्तानी प्लान फेल किया था। पुलिस ने कठुआ जिले के हरिनगर में टल्ली हरिया चाक गांव के पास एक पाकिस्तानी ड्रोन को मार गिराया था। ये इलाका इंटरनेशनल बॉर्डर से केवल 3 किलोमीटर दूर है। उस ड्रोन से हथियार और गोला-बारूद बरामद किए गए थे, जिनमें से सात मैग्नेटिक या स्टिकी बम भी थे।
इन घटनाओं को देखते हुए सुरक्षा एजेंसियों ने अमरनाथ यात्रा की सिक्योरिटी की रणनीति पर फिर से काम करना शुरू कर दिया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, सुरक्षा अधिकारियों ने फैसला लिया है कि तीर्थ यात्रियों और सुरक्षाबलों की गाड़ियां अलग-अलग रहकर चलेंगी। साथ ही सुरक्षाबलों और तीर्थयात्रियों के मैनेजमेंट से जुड़े लोगों को ये निर्देश भी जारी किए गए हैं कि किसी भी गाड़ी को लावारिस न छोड़ें।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, कश्मीर रेंज के IG विजय कुमार का कहना है कि सुरक्षा एजेंसियां स्टिकी बम के खतरे से निपट रही हैं और इसके लिए पर्याप्त कदम उठा रही हैं। कश्मीर में आतंकियों के पास पहली बार स्टिकी बम पिछले साल फरवरी में जम्मू के सांबा इलाके में बरामद हुआ था।
आर्टिकल-370 हटाए जाने के बाद पहली अमरनाथ यात्रा
इस साल 30 जून से शुरू होने वाली अमरनाथ यात्रा में 3 लाख श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है। ये यात्रा करीब डेढ़ महीने, यानी 11 अगस्त को रक्षाबंधन के दिन तक चलेगी। 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल-370 हटाए जाने के बाद से ये पहली अमरनाथ यात्रा होगी। उसके बाद के दो सालों में कोरोना की वजह से ये यात्रा स्थगित रही थी।
अमरनाथ गुफा दक्षिण कश्मीर में गांदरबल जिले में 17 हजार फीट से ज्यादा ऊंचाई वाले अमरनाथ पर्वत पर स्थित है। इस गुफा में हर साल प्राकृतिक शिवलिंग बनता है। अमरनाथ धाम हिंदू धर्म के प्रमुख धामों में से एक है।
क्या है स्टिकी बम?
स्टिकी बम चिपकने वाला ऐसा बम होता है, जो कि गाड़ियों या किसी चीज की ओर फेंके जाने पर उससे चिपक जाता है और दूर से ही रिमोट के जरिए या टाइमर सेट करके इसमें ब्लास्ट कर दिया जाता है।
स्टिकी बम को मैग्नेटिक बम भी कहते हैं, जिसे गाड़ियों में चिपकाया जा सकता है। इसके बाद इसे कहीं दूर बैठकर या टाइमर सेट करके उड़ाया जा सकता है।
अक्सर स्टिकी बम को कार, बस या सेना की गाड़ियों के फ्यूल टैंक से चिपका दिया जाता है, जिससे ब्लास्ट होने पर गाड़ी के परखच्चे उड़ जाते हैं। स्टिकी बम में 5-10 मिनट का टाइमर होता है, जोकि हमला करने वाले को भागने के लिए पर्याप्त समय देता है। दरअसल, स्टिकी बम एक तरह का IED है।
पहली बार ब्रिटेन में बने थे स्टिकी बम
इसे ग्रेनेड, एंटी टैंक नंबर-74, S.T. ग्रेनेड या स्टिकी बम के रूप में जाना जाता है। इस बम को ब्रिटेन में सेकेंड वर्ल्ड वॉर के समय डिजाइन किया गया था। इसे MIR (c) की टीम ने डिजाइन किया था जिनमें स्टुअर्ट मैक्रे शामिल थे।
क्यों आतंकी करते हैं इनका इस्तेमाल?
स्टिकी बम बहुत सस्ता होता है और इसे आसानी से कैरी किया जा सकता है। दरअसल, स्टिकी बम को 2 हजार रुपए में बनाया जा सकता है। इसी वजह से आतंकी इसका खूब इस्तेमाल करते रहे हैं।
स्टिकी बम कब और कहां हुए इस्तेमाल?
दूसरे वर्ल्ड वॉर के दौरान स्टिकी बम का इस्तेमाल ब्रिटेन के साथ ही फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा ने भी किया था। हाल के सालों में इराक में भी स्टिकी बम से कई आतंकी हमलों को अंजाम दिया गया। अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे से पहले तालिबान ने भी अफगानिस्तान में NATO सेनाओं के खिलाफ इसका खूब इस्तेमाल किया था।
2021 से पहले अक्सर अफगानिस्तान में कार में विस्फोट की खबरें आती थीं। इन धमाकों में स्टिकी बम का ही इस्तेमाल होता था। आतंकी अफगानिस्तान में बच्चों के जरिए ट्रैफिक सिग्नल पर या धार्मिक स्थलों के बाहर खड़ी गाड़ियो में इस स्टिकी बम को चिपका देते थे और फिर दूर बैठकर मोबाइल से धमाका कर देते थे।
2020 दिसंबर में स्टिकी बम के हमले में काबुल के डिप्टी प्रांतीय गर्वनर की मौत हो गई थी। इसके साथ ही काबुल में स्टिकी बम से तालिबानी आतंकियों ने कई सारे हमले किए थे। इनमें दर्जनों सरकारी अधिकारी मारे गए थे।
स्टिकी बम के इस्तेमाल के पीछे कौन सी स्ट्रैटजी?
रिपोर्ट्स के मुताबिक, नेशनल सिक्योरिटी गार्ड्स, यानी NSG, का कहना है कि पिछले साल सांबा में बरामद स्टिकी बम काफी कुछ फरवरी 2012 में दिल्ली में इजराइली दूतावास के बाहर कार को उड़ाने में इस्तेमाल स्टिकी बम जैसा ही था।
NSG के मुताबिक, हाल में बरामद हुए एक स्टिकी बम का कोन-जैसा मेटेलिक स्ट्रक्चर था, जिससे ये पता चला कि इसे स्थानीय स्तर पर नहीं बनाया गया है, बल्कि ये बम प्रोफेशनल तरीके से बनाया गया है।
NSG का कहना है कि स्टिकी बम इस्तेमाल करने के पीछे बड़ी संख्या में नागरिकों की जान लिए बिना ही डर फैलाने की स्ट्रैटजी है। जब सामान्य IED बम फटता है, तो यह चारों ओर नुकसान पहुंचाता है, लेकिन कोन जैसा स्ट्रक्चर स्टिकी बम को यूनि-डायरेक्शनल, यानी एकतरफा धमाके वाला बनाता है। इसका मतलब है कि बस या कार पर लगाने पर धमाके की दिशा अंदर की ओर होती है, जिससे आसपास ज्यादा नुकसान के बजाय उस गाड़ी को ही नुकसान पहुंचता है।
अलकायदा इस तरह के बम बनाने में माहिर
एक्सपर्ट्स का मानना है कि स्टिकी बम भारत में नहीं बनते हैं, बल्कि ज्यादातर स्टिकी बम इंर्पोटेड हैं। भारतीय उपमहाद्वीप में आतंकी संगठन अलकायदा इस तरह के स्टिकी बम बनाने में माहिर रहा है।
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