क्या है राजीव गांधी फाउंडेशन का चीन कनेक्शन:तवांग झड़प के बाद अमित शाह बोले- चीन से 1.35 करोड़ चंदा लिया; जानें पूरा मामला

6 महीने पहलेलेखक: अनुराग आनंद
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9 दिसंबर 2022 को अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में भारत और चीन की सेना के बीच जमकर झड़प हुई है। इसमें दोनों पक्षों के जवान घायल हुए। जब कांग्रेस ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार को घेरा तो गृह मंत्री अमित शाह ने खुद मोर्चा संभाला। इस दौरान अमित शाह ने कांग्रेस को जवाब देते हुए कहा कि-

‘आपकी वजह से ही हजारों किलोमीटर हमारी जमीन चीन की हो गई है। आपकी वजह से ही संयुक्त राष्ट्र में स्थाई सदस्यता हमें नहीं मिल पाई। जनता सब जानती है। 2005 से 2007 के बीच राजीव गांधी फाउंडेशन के जरिए कांग्रेस पार्टी ने चीन से 1 करोड़ 35 लाख रुपए चंदा लिए हैं।’

ऐसे में आज भास्कर एक्सप्लेनर में जानते हैं राजीव गांधी फाउंडेशन क्या है? क्या सच में कांग्रेस ने चीन से चंदा लिया, इस संस्था पर कौन-कौन से आरोप लगे हैं?

राजीव गांधी फाउंडेशन क्या है?
शिक्षा और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के सपने को पूरा करने के लिए 21 जून 1991 को सोनिया गांधी ने इस फाउंडेशन की शुरुआत की थी। ये फाउंडेशन मुख्य रूप से तीन सेक्टर में काम करता है-

  • शिक्षा
  • साइंस एंड टेक्नोलॉजी के प्रमोशन,
  • शोषित यानी अंडरप्रिवलेज्ड और दिव्यांगों लोगों को समाज के मुख्यधारा में लाने के लिए काम करना।

डोनेशन और इन्वेस्टमेंट पर मिलने वाले रिटर्न के पैसे से ये संस्था अपना काम करती थी। सोनिया गांधी इसकी चेयरपर्सन हैं। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अलावा राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और पी. चिदंबरम ट्रस्टी रहे।

राजीव गांधी फाउंडेशन पर लगे दो गंभीर आरोपों के बाद शुरू हुआ विवाद
अमित शाह के बयान के बाद राजीव गंधी फाउंडेशन पर दो गंभीर आरोप लगे, जिसकी वजह से इस वक्त एक बार फिर से फाउंडेशन विवाद में है।

पहला आरोप- चीन से फंडिंग मिली। गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को कहा कि 2005 से 2007 के बीच राजीव गांधी फाउंडेशन को चीन से 1 करोड़ 35 लाख रुपए चंदा में मिले थे। फांउडेशन की एनुअल रिपोर्ट के आधार पर यह दावा किया गया है। 2005-06 की एनुअल रिपोर्ट में फाउंडेशन को डोनेशन देने वालों की लिस्ट में चीन का भी नाम है।

यहां वेबसाइट पर दी गई जानकारी के स्क्रीनशॉट को देख सकते हैं…

दूसरा आरोप- मनमोहन सरकार के समय PM रिलीफ फंड का पैसा डायवर्ट किया
BJP ने इस संस्था पर आरोप लगाते हुए ये भी कहा है कि प्रधानमंत्री नेशनल रिलीफ फंड का पैसा राजीव गांधी फाउंडेशन यानी RGF को दिया गया था। सोनिया प्रधानमंत्री नेशनल रिलीफ फंड के बोर्ड में भी थीं और राजीव गांधी फाउंडेशन की अध्यक्ष भी थीं।

ऐसे में जब मन हुआ सरकार ने प्रधानमंत्री रिलीफ फंड के अकाउंट से राजीव गांधी फाउंडेशन के अकाउंट में पैसा ट्रांसफर किया। भाजपा ने इस आरोप का आधार RGF की 2005-06 और 2007-08 की एनुअल रिपोर्ट को बनाया है। इन दोनों ही रिपोर्ट में डोनेशन देने वालों की लिस्ट में PM रिलीफ फंड का पैसा शामिल है।

यहां वेबसाइट पर दी गई जानकारी में प्रधानमंत्री रिलीफ फंड से राजीव गांधी फाउंडेशन में ट्रांसफर किए गए पैसे की जानकारी स्क्रीनशॉट में देख सकते हैं…

2 महीने पहले रद्द हुआ है राजीव गांधी फाउंडेशन का लाइसेंस
2020 में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राजीव गांधी फाउंडेशन, राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट और इंदिरा गांधी मेमोरियल ट्रस्ट की जांच के आदेश दिए थे। इसके लिए एक इंटर मिनिस्ट्रियल कमेटी भी बनाई गई थी। इसके साथ ही जांच की अगुआई ED के एक स्पेशल डायरेक्टर को सौंपी गई थी।

इस कमेटी को ये जांचना था कि गांधी परिवार से जुड़े इन दोनों ट्रस्टों ने नियमों का उल्लंघन तो नहीं किया है। इसी जांच के आधार पर अक्टूबर 2022 में दो संस्थाओं के लाइसेंस रद्द किए गए…

  • राजीव गांधी फाउंडेशन
  • राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट

इन दोनों गैर सरकारी संगठनों की प्रमुख कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी थीं। इन संगठनों पर आरोप था कि इन्‍होंने विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम यानी FCRA के नियमों को तोड़ा विदेश से पैसा लिया है।

अब एक ग्राफिक्स में जानिए आखिरी 3 साल में राजीव गांधी फाउंडेशन को कितना चंदा मिला…

जिस FCRA की वजह से राजीव गांधी फाउंडेशन के लाइसेंस रद्द किए गए। दिल्ली हाईकोर्ट में उसी आरोप में दोषी पाए जाने पर BJP सरकार ने कानून को बदलकर कांग्रेस और खुद को कार्रवाई से बचाया था..

  • 1976 में FCRA कानून बनाया गया। इसका मकसद राजनीतिक दलों को विदेश से मिलने वाले चंदे को नियंत्रित करना था।
  • 2004 से 2009 के बीच विदेशी कंपनी वेदांता की भारत में रजिस्टर्ड सब्सिडियरी कंपनी ने कांग्रेस और BJP को चंदा दिया।
  • 2010 में FCRA एक्ट 1976 को हटाकर उसकी जगह FCRA एक्ट 2010 लाया गया।
  • 2013 में एक पूर्व IAS अधिकारी ने दिल्ली हाईकोर्ट में चंदा लेने के खिलाफ FCRA 1976 के तहत याचिका दायर की। इस मामले में हाईकोर्ट ने कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों को दोषी पाया और चुनाव आयोग को एक्शन लेने का आदेश दिया।
  • 2016 में मोदी सरकार ने FCRA 2010 में बदलाव किया। इसके जरिए सरकार ने एक्ट में विदेशी कंपनी की परिभाषा को बदल दिया। मतलब ये कानून तो 2016 में बदला गया, लेकिन इसे लागू 2010 से माना गया।
  • इस तरह सरकार ने खुद को और प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस को दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश से बचा लिया।
  • इस बदलाव के बाद सैद्धांतिक तौर पर आज कोई भी ऐसी कंपनी जिसमें 50% से ज्यादा हिस्सा विदेशी कंपनी का है, वह राजनीतिक चंदा नहीं दे सकती है।
  • अगर यह कंपनी किसी ऐसे सेक्टर की कंपनी है जिसमें 70% तक विदेशी कंपनी के इन्वेस्टमेंट की छूट है तो इस सेक्टर से जुड़ी कोई कंपनी चंदा दे सकती है। भले ही उस कंपनी की 51% हिस्सेदारी विदेशी कंपनी के पास हो।
  • 2017 में दिल्ली हाईकोर्ट ने इस बदलाव को अस्वीकार करते हुए सरकार को BJP और कांग्रेस के खिलाफ कार्रवाई के लिए 6 महीने का समय दिया।
  • 2018 में मोदी सरकार ने 1976 से ही FCRA में बदलाव कर दिया। तब से ही विदेशी कंपनियों से लिए गए राजनीतिक चंदे को वैध कर दिया गया।

10 साल पहले राजीव गांधी फाउंडेशन की फंडिंग को लेकर पहली बार हुआ था विवाद
आतंकियों से रिश्ते होने के आरोपी जाकिर नाइक की इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन ने 2011 में राजीव गांधी फाउंडेशन को 50 लाख रुपए दिए थे। हालांकि, कांग्रेस ने बाद में रकम लौटा दी थी। भाजपा ने तब कहा था कि रकम लौटाकर लोगों को बेवकूफ बनाया गया है। भाजपा नेता आरपी सिंह ने कहा था कि नाइक के खिलाफ जांच चल रही है, इसलिए कांग्रेस ने खुद को सुरक्षित रखने के लिए रकम लौटा दी।

जाकिर नाइक करीब साढ़े तीन साल से मलेशिया में है। गिरफ्तारी के डर से वह 2016 में भाग गया था। भारत में उसके खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग और कट्‌टरता बढ़ाने का केस दर्ज है। जून 2017 में कोर्ट ने उसे भगोड़ा अपराधी घोषित किया था।

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