कैसी थी बाला साहेब ठाकरे की शिवसेना:'लुंगी हटाओ' के नारे से शुरू की पार्टी, मुस्लिमों को कहते थे ‘हरा जहर’

एक वर्ष पहलेलेखक: नीरज सिंह
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शिवसेना से बगावत करने के बाद एकनाथ शिंदे का पहला ट्वीट था- हम बाला साहेब के पक्के शिवसैनिक हैं। सत्ता के लिए कभी धोखा नहीं दिया और न कभी देंगे। इसके जवाब में उद्धव ठाकरे ने कहा- जैसी शिवसेना बाल ठाकरे के समय थी, वैसी ही अब भी है। इसके बाद पिछले तीन दिनों से हर दूसरे-तीसरे बयान में बाला साहेब की शिवसेना का जिक्र हो रहा है।

ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर कैसी थी बाला साहेब की शिवसेना? आइए, जानते हैं...

शुरुआतः मराठी मानुस की बात करते हुए शिवसेना बनाई

60 के दशक में मुंबई में बड़े कारोबार पर गुजरातियों का कब्जा था। वहीं छोटे कारोबार में दक्षिण भारतीयों और मुस्लिमों की हिस्सेदारी काफी ज्यादा थी। यानी मुंबई में मराठियों के लिए काफी कम स्कोप था। इसी समय एंट्री होती है बाला साहेब ठाकरे की। ठाकरे इस मुद्दे को भुनाते हैं और मराठी मानुस की बात करते हुए 1966 में शिवसेना का गठन करते हैं।

मुंबई में उस समय मराठियों की आबादी लगभग 43% थी, लेकिन बॉलीवुड से लेकर बिजनेस और नौकरियों में उनकी संख्या सबसे कम थी। उधर, 14% आबादी वाले गुजरातियों का यहां बड़े बिजनेस के क्षेत्र में बोलबाला था। वहीं छोटे कारोबारों और नौकरियों में 9% की आबादी वाले दक्षिण भारतीयों का दबदबा था।

उस समय नौकरियों का अभाव था और बाल ठाकरे ने 1966 के मेनिफेस्टो में दावा किया कि दक्षिण भारतीय लोग मराठियों की नौकरियां छीन रहे हैं। उन्होंने मराठी बोलने वाले स्थानीय लोगों को नौकरियों में तरजीह दिए जाने की मांग को लेकर आंदोलन शुरू कर दिया।

उन्होंने दक्षिण भारतीयों के खिलाफ ‘पुंगी बजाओ और लुंगी हटाओ' अभियान चलाया था। ठाकरे तमिल भाषा का उपहास करते हुए उन्हें ‘यंडुगुंडू’ कहते थे। वो अपनी पत्रिका मार्मिक के हर अंक में उन दक्षिण भारतीय लोगों के नाम छापा करते थे जो मुंबई में नौकरी कर रहे थे और जिनकी वजह से स्थानीय लोगों को नौकरी नहीं मिल पा रही थी।

महाराष्ट्र के कद्दावर नेता बाला साहेब ठाकरे हमेशा किंगमेकर माने जाते थे। कई लोगों के लिए वह महाराष्ट्र के सांस्कृतिक पहचान भी थे। उग्र भाषण देने वाले ठाकरे ने करियर आरके लक्ष्मण के साथ 1950 में इंग्लिश अखबार फ्री प्रेस जरनल में शुरू किया।
महाराष्ट्र के कद्दावर नेता बाला साहेब ठाकरे हमेशा किंगमेकर माने जाते थे। कई लोगों के लिए वह महाराष्ट्र के सांस्कृतिक पहचान भी थे। उग्र भाषण देने वाले ठाकरे ने करियर आरके लक्ष्मण के साथ 1950 में इंग्लिश अखबार फ्री प्रेस जरनल में शुरू किया।

हिंदुत्व पर शिफ्टः 1987 में नारा दिया गर्व से कहो हम हिंदू हैं

1966 में शिवसेना अस्तित्व में आई। बाल ठाकरे का कहना था कि महाराष्ट्र में वहां के युवाओं के हितों की रक्षा सबसे जरूरी काम है। बाल ठाकरे ने संगठन बनाने के लिए हिंसा का सहारा लेना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे मुंबई के हर इलाके में स्थानीय दबंग युवा शिवसेना में शामिल होने लगे। एक गॉडफॉदर की तरह बाल ठाकरे हर झगड़े सुलझाने लगे।

धीरे-धीरे मुंबई म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन के चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन बेहतर हो रहा था, लेकिन पार्टी को बड़ी कामयाबी नहीं मिली थी। इसके बाद ठाकरे ने मराठी मानुस के साथ कट्‌टर हिंदुत्व की आइडियोलॉजी अपनाई। 80 और 90 के दशक में शिवसेना को इसका फायदा भी मिला।

मुंबई के विलेपार्ले विधानसभा सीट के लिए दिसंबर 1987 में हुए उप-चुनाव में पहली बार शिवसेना ने हिंदुत्व का आक्रामक प्रचार किया था। पहली बार 'गर्व से कहो हम हिंदू हैं' ये घोषणा चुनावी अखाड़े में की गई थी। इस चुनाव में एक्टर मिथुन चक्रवर्ती और नाना पाटेकर ने शिवसेना के उम्मीदवार का प्रचार किया था। इस चुनाव में हिंदुत्व के नाम पर वोट मांगने के बाद चुनाव आयोग ने ठाकरे से 6 साल के लिए मतदान का अधिकार छीन लिया था।

2006 में शिवसेना के 40वें स्थापना दिवस पर बाल ठाकरे ने मुसलमानों को एंटी नेशनल बताया था। साथ ही सोनिया गांधी के आर्म्ड फोर्सेज में मुस्लिमों के लिए आरक्षण के प्रस्ताव का विरोध किया था। उन्होंने षणमुखानंद हॉल में आयोजित एक समारोह में मुसलमानों को 'हरा जहर' कहा था। बाल ठाकरे के इस भाषण के दौरान शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे के साथ पार्टी के कई सीनियर नेता भी मौजूद थे।

बाल ठाकरे हमेशा सिंहासननुमा कुर्सी पर बैठा करते थे। बताया जाता है कि शिवसेना की मजदूर इकाई भारतीय कामगार सेना ने यह सिंहासन उन्हें उपहार में दिया था। सिंहासन लकड़ी का था और इस पर चांदी की सिर्फ परत चढ़ी थी।
बाल ठाकरे हमेशा सिंहासननुमा कुर्सी पर बैठा करते थे। बताया जाता है कि शिवसेना की मजदूर इकाई भारतीय कामगार सेना ने यह सिंहासन उन्हें उपहार में दिया था। सिंहासन लकड़ी का था और इस पर चांदी की सिर्फ परत चढ़ी थी।

बड़े भाई की भूमिकाः 2009 तक शिवसेना की सहयोगी बनी रही BJP

बाला साहेब के समय में महाराष्ट्र की राजनीति में शिवसेना हरदम बड़े भाई की भूमिका में ही रही। 1989 के लोकसभा चुनाव के पहले पहली बार हिंदुत्व की छाया तले BJP और शिवसेना के बीच गठबंधन हुआ था। 1990 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना 183 सीटों पर लड़ी और 52 पर जीत हासिल की, जबकि BJP 104 सीटों पर लड़कर 42 सीटों पर जीत हासिल की। उस वक्त शिवसेना के मनोहर जोशी विपक्ष के नेता बने।

1995 में BJP-शिवसेना ने मिलकर चुनाव लड़ा। शिवसेना ने 73, तो BJP ने 65 सीटें जीतीं। बाला साहेब ठाकरे ने फॉर्मूला दिया था कि जिस पार्टी के पास ज्यादा सीटें होंगी, मुख्यमंत्री उसका होगा। इसी आधार पर मनोहर जोशी को CM की कुर्सी मिली और BJP के गोपीनाथ मुंडे को डिप्टी CM की।

2004 के चुनाव में शिवसेना को 62 और BJP को 54 सीटों पर जीत मिली। 2009 में दोनों पार्टियों की सीटें कम हुईं, लेकिन BJP को पहली बार शिवसेना से ज्यादा सीटें हासिल हुईं। BJP ने इस दौरान 46 सीटें और शिवसेना ने 45 सीटें जीतीं।

2014 के चुनाव में 1989 के बाद पहली बार दोनों पार्टियों ने अपने रास्ते अलग-अलग कर लिए। बाला साहेब ठाकरे भी अब नहीं थे। सभी 288 सीटों पर चुनाव लड़ने के बाद भी शिवसेना को BJP से आधी सीटें मिलीं। BJP ने 122 सीटों पर जीत हासिल की और शिवसेना ने 63 सीटों पर। हालांकि, बाद में शिवसेना BJP की देवेंद्र फडणवीस सरकार में शामिल हो गई।

1989 के लोकसभा चुनाव के पहले पहली बार महाराष्ट्र में BJP और शिवसेना के बीच गठबंधन हुआ था। 1995 में बाला साहेब ठाकरे ने फॉर्मूला दिया था कि जिस पार्टी के पास ज्यादा सीटें होंगी, मुख्यमंत्री उसका होगा।
1989 के लोकसभा चुनाव के पहले पहली बार महाराष्ट्र में BJP और शिवसेना के बीच गठबंधन हुआ था। 1995 में बाला साहेब ठाकरे ने फॉर्मूला दिया था कि जिस पार्टी के पास ज्यादा सीटें होंगी, मुख्यमंत्री उसका होगा।

दबदबे के किस्सेः अमिताभ से बोले- मैं किसी चीज पर दुख प्रकट नहीं करता

मुंबई में दंगों के बाद बाला साहेब ठाकरे की हर ओर चर्चा थी। 1995 में मणिरत्नम ने इस पर ‘बॉम्बे’ नाम की फिल्म बनाई। फिल्म में शिव सैनिकों को मुसलमानों को मारते और लूटते हुए दिखाया था। बॉम्बे फिल्म के अंत में बाल ठाकरे से मिलता एक कैरेक्टर इस हिंसा पर दुख प्रकट करते हुए दिखाई देता है।

बाल ठाकरे ने इस फिल्म का विरोध किया। साथ ही मुंबई में इसे रिलीज नहीं होने देने की बात कही। फिल्म के डिस्ट्रीब्यूटर अमिताभ बच्चन थे। अमिताभ और ठाकरे के बीच अच्छी दोस्ती थी।

फिल्म पर बात करने के लिए अमिताभ ठाकरे के पास गए। अमिताभ ने उनसे पूछा कि क्या शिव सैनिकों को दंगाइयों के रूप में दिखाना उन्हें बुरा लगा। ठाकरे का जवाब था, बिल्कुल भी नहीं। मुझे जो बात बुरी लगी वो था दंगों पर ठाकरे के कैरेक्टर का दुख प्रकट करना। मैं कभी किसी चीज पर दुख नहीं प्रकट करता।

अमिताभ बच्चन के साथ बाला साहेब ठाकरे के उनके रिश्ते बेहद मधुर रहे। फिल्म कुली की शूटिंग के दौरान जब अमिताभ गंभीर रूप से घायल हो गए थे, तब बाल ठाकरे ने ही उन्हें एंबुलेंस मुहैया कराई थी।
अमिताभ बच्चन के साथ बाला साहेब ठाकरे के उनके रिश्ते बेहद मधुर रहे। फिल्म कुली की शूटिंग के दौरान जब अमिताभ गंभीर रूप से घायल हो गए थे, तब बाल ठाकरे ने ही उन्हें एंबुलेंस मुहैया कराई थी।

सचिन भी बन गए थे ठाकरे के गुस्से का शिकार

नवंबर 2009 में क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर को बाल ठाकरे के गुस्सा का शिकार बनना पड़ा था। दरअसल, सचिन ने कह दिया था कि मुंबई पर सभी भारतवासियों का बराबर हक है।

बाल ठाकरे इस पर भड़क गए और सचिन पर निशाना साधते हुए कहा, 'हमें क्रिकेट के मैदान में आपके छक्‍के-चौके पसंद हैं, लेकिन आप अपनी जुबान का इस्‍तेमाल न करें। हम इसे बर्दाश्‍त नहीं करेंगे।'

बिना सरकार के ‘सरकार’ वाली की भूमिका में रहे

1995 में बाल ठाकरे ने ने जब BJP के साथ मिलकर सरकार बनाई तो अपने करीबी नेता मनोहर जोशी को CM बनाया। इस दौरान बाल ठाकरे ने कहा था कि इस सरकार का रिमोट कंट्रोल मेरे हाथ में रहेगा। बाल ठाकरे ने कहा था कि मैं जिस तरह चाहता हूं, उस तरह इस सरकार को चलाऊंगा।

कहा जाता है कि बाला साहेब ठाकरे के समय महाराष्ट्र की राजनीति में वही होता था जो वह कहते थे। यदि सत्ता में बैठा व्यक्ति बाल ठाकरे की बात नहीं भी मानता था तो उनके चाहने वाले इतने लोग थे कि वो अपने तरीके से मनवा लेते थे। इसलिए वो कभी सत्ता में खुद नहीं आए।

आपातकाल में बाल ठाकरे ने सारे विपक्ष को दरकिनार कर इंदिरा गांधी का समर्थन किया। 1978 में जब जनता सरकार ने इंदिरा गांधी को गिरफ्तार किया तो उन्होंने उसके विरोध में बंद का आयोजन किया।
आपातकाल में बाल ठाकरे ने सारे विपक्ष को दरकिनार कर इंदिरा गांधी का समर्थन किया। 1978 में जब जनता सरकार ने इंदिरा गांधी को गिरफ्तार किया तो उन्होंने उसके विरोध में बंद का आयोजन किया।

पहली बड़ी बगावत: भुजबल ने 17 विधायकों के साथ पार्टी छोड़ दी थी

शिवसेना पहली बगावत 1991 में देखने को मिली। जब बाल ठाकरे सबसे करीबी रहे छगन भुजबल ने शिवसेना के 52 में से 17 विधायकों के साथ बगावत कर दी थी। इसके बाद दिसंबर 1991 में भुजबल 17 विधायकों के साथ शरद पवार वाली कांग्रेस में शामिल हो गए थे। पवार ने इस दौरान भुजबल को डिप्टी CM बनाया था।

दूसरी बड़ी बगावतः 2005 राणे ने बगावत की थी

2002 में बाल ठाकरे के बेटे उद्धव की राजनीति में एंट्री होने पर भी शिवसेना के कई नेता खफा हो गए थे। 2005 में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व को जब नारायण राणे चुनौती देने लगे तो शिवसेना ने उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया था। वहीं राणे ने कहा कि वह खुद ही पार्टी छोड़ रहे हैं। इस दौरान राणे के साथ कुछ विधायकों ने भी शिवसेना छोड़ दी थी।

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