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सरकार ने इस बजट में दो पब्लिक सेक्टर (PSU) बैंकों के प्राइवेटाइजेशन का ऐलान किया। लेकिन 15 दिन के भीतर चार बैंकों के नाम सामने आए, जिनका प्राइवेटाइजेशन हो सकता है। हालांकि, सरकार की ओर से अभी तक बैंकों को शॉर्टलिस्ट करने के बारे में कुछ नहीं कहा गया है।
आखिर सरकार बैंकों का प्राइवेटाइजेशन क्यों चाहती है? जिन बैंकों का प्राइवेटाइजेशन होना है, उनकी सेहत कैसी है? जिन बैंकों का नाम इसके लिए शॉर्टलिस्ट हुआ है, उनके शेयर्स के दाम क्यों बढ़ रहे हैं? प्राइवेटाइजेशन होने पर इन बैंकों के कर्मचारियों और कस्टमर्स पर क्या असर पड़ेगा? आइये समझते हैं..
बजट में सरकार ने बैंकों के प्राइवेटाइजेशन को लेकर क्या कहा था?
एक फरवरी को पेश हुए बजट में सरकार ने कम से कम दो सरकारी बैंकों के निजीकरण का ऐलान किया। हालांकि बैंकों के नाम नहीं बताए। इसके पहले सरकार ने 2019 में LIC में अपनी हिस्सेदारी बेचकर IDBI बैंक का निजीकरण कर दिया था। पिछले चार साल में 14 पब्लिक सेक्टर बैंकों का मर्जर हो चुका है।
2014 में जब पहली बार मोदी सरकार सत्ता में आई तो देश में 27 सरकारी बैंक थे। ये घटकर 12 रह गए हैं। अब अगर दो बैंकों का प्राइवेटाइजेशन होता है तो ये संख्या घटकर 10 हो जाएगी। वहीं, बजट में ऐलान के बाद सरकार ने 4 बैंकों को प्राइवेटाइजेशन के लिए शॉर्टलिस्ट किया है। अगर चारों बैंकों का प्राइवेटाइजेशन होता है तो देश में सरकारी बैंकों की संख्या घटकर आठ रह जाएगी।
अब चार बैंकों के नाम प्राइवेटाइजेशन के लिए क्यों सामने आ रहे हैं?
केंद्र ने 4 सरकारी बैंकों को प्राइवेटाइजेशन के लिए शॉर्टलिस्ट किया है। इनमें बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ महाराष्ट्र, इंडियन ओवरसीज बैंक और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया शामिल हैं। कहा जा रहा है कि 2021-22 में इन 4 में से 2 बैंकों का प्राइवेटाइजेशन हो सकता है। हालांकि सरकार ने अभी तक प्राइवेट होने वाले बैंकों के नाम का ऐलान नहीं किया है।
सरकार बैंकों का प्राइवेटाइजेशन करना ही क्यों चाहती है?
सिर्फ बैंक ही नहीं, सरकार भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड, एअर इंडिया, शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया, कंटेनर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया, IDBI बैंक, BEML, पवन हंस, नीलांचल इस्पात निगम लिमिटेड और अन्य कई सरकारी उपक्रमों (PSU) को भी बेचने की तैयारी में है। सरकारी क्षेत्र की सबसे बड़ी बीमा कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) का IPO भी लॉन्च होगा। सरकार को इस फाइनेंशियल ईयर में सरकारी फर्मों के डिसइन्वेस्टमेंट से 1.75 लाख करोड़ रुपए जुटने की उम्मीद है।
एक्सपर्ट्स कहते हैं कि बैंकिंग सेक्टर में प्राइवेटाइजेशन की बड़ी वजह इनका NPA है। कोरोना के दौरान जो बैड लोन बढ़े हैं, उन्हें भी कैटेगराइज किया गया तो बैंकों के NPA का आंकड़ा और बढ़ सकता है। कई सरकारी बैंक फाइनेंशियल क्राइसिस से जूझ रहे हैं। सरकार ऐसे बैंकों को बेचकर रेवेन्यू बढ़ाना चाहती है। बैंकों के प्राइवेटाइजेशन से मिले पैसों का इस्तेमाल सरकार सरकारी योजनाओं में करना चाहती है।
जिन बैंकों का प्राइवेटाइजेशन होना है, उनकी सेहत कैसी है?
इन बैंकों पर कितना NPA है?
चारों बैंक सालों से घाटे में चल रहे थे? अब पिछले तीन क्वॉर्टर से इनमें से तीन बैंक मुनाफे में कैसे आ गए?
कॉर्पोरेट लेखक प्रकाश बियाणी कहते हैं कि बैंकों के घाटे की वजह उनका NPA है। भारी भरकम NPA के कारण ये बैंक लगातार घाटे में चल रहे हैं। पिछले कुछ समय में इन बैंकों के NPA में कुछ कमी आई है। प्राइवेटाइजेशन के लिए इन बैंकों का नाम आने के बाद से इनके शेयरों में भी तेजी देखी जा रही है।
BSE के मुताबिक चारों बैंकों का NPA घटा है। पिछले क्वॉर्टर में बैंक ऑफ इंडिया और इंडियन ओवरसीज बैंक का प्रॉफिट 200% से ज्यादा बढ़ा। वहीं, बैंक ऑफ महाराष्ट्र की नेट इंट्रेस्ट इनकम बढ़ी है।
बैंकों के प्राइवेटाइजेशन से इसके ग्राहकों पर क्या असर पड़ेगा?
अकाउंट होल्डर्स का जो भी पैसा इन 4 बैंकों में जमा है, उस पर कोई खतरा नहीं है। खाता रखने वालों को फायदा ये होगा कि प्राइवेटाइजेशन के बाद उन्हें डिपॉजिट्स, लोन जैसी बैंकिंग सर्विसेज पहले के मुकाबले बेहतर तरीके से मिल सकेंगीं। एक जोखिम यह रहेगा कि कुछ मामलों में उन्हें ज्यादा चार्ज देना होगा। उदाहरण के लिए सरकारी बैंकों के बचत खातों में अभी एक हजार रुपए का मिनिमम बैलेंस रखना होता है। कुछ प्राइवेट बैंकों में मिनिमम बैलेंस की जरूरी रकम बढ़कर 10 हजार रुपए हो जाती है।
कर्मचारियों का क्या होगा?
सत्ता में आने वाले राजनीतिक दल सरकारी बैंकों को निजी बैंक बनाने से बचते रहे हैं, क्योंकि इससे लाखों कर्मचारियों की नौकरियों पर भी खतरा रहता है। हालांकि, मौजूदा सरकार पहले ही कह चुकी है कि बैंकों को मर्ज करने या प्राइवेटाइजेशन की स्थिति में कर्मचारियों की नौकरी नहीं जाएगी। बैंक ऑफ इंडिया के पास 50 हजार कर्मचारी हैं, जबकि सेंट्रल बैंक में 33 हजार कर्मचारी हैं। इंडियन ओवरसीज बैंक में 26 हजार और बैंक ऑफ महाराष्ट्र में 13 हजार कर्मचारी हैं। इस तरह कुल मिलाकर एक लाख से ज्यादा कर्मचारी इन चारों सरकारी बैंकों में हैं।
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