मुस्लिमों को यवन सर्प कहते थे RSS प्रमुख हेडगेवार:भागवत बोले- इस्लाम को देश में खतरा नहीं; क्या मुस्लिमों पर बदला संघ का स्टैंड?

2 महीने पहलेलेखक: अनुराग आनंद
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‘इस्लाम को देश में कोई खतरा नहीं है, लेकिन उसे 'हम बड़े हैं' का भाव छोड़ना पड़ेगा।’

RSS के सरसंघचालक मोहन भागवत ने 11 जनवरी 2023 को ‘ऑर्गेनाइजर’ पत्रिका को दिए एक इंटरव्यू में ये बात कही।

इससे पहले 2 जून 2022 को भागवत ने कहा था कि हमें रोज मस्जिद में शिवलिंग क्यों देखना है? 6 सितंबर 2021 को कहा कि हिंदू और मुस्लिम एक ही वंश के हैं। 4 जुलाई 2021 को कहा- अगर कोई हिंदू कहता है कि मुसलमान यहां नहीं रह सकता, तो वह हिंदू नहीं है। मोहन भागवत के इन बयानों से मुस्लिमों को लेकर RSS के रुख में नरमी की बात पर चर्चा हो रही है।

भास्कर एक्सप्लेनर में जानेंगे कि 1925 में RSS की शुरुआत से लेकर अब तक मुस्लिमों को लेकर सरसंघचालकों ने क्या-क्या कहा? क्या मोहन भागवत के आने के बाद मुस्लिमों को लेकर RSS के स्टैंड में कोई बदलाव हुआ है?

भारत के मुस्लिम यवन सर्प हैंः हेडगेवार
1925 से 1940 तक RSS प्रमुख रहे हेडगेवार के बयान का एक हिस्सा…

‘खिलाफत आंदोलन के दौरान हिंदू-मुस्लिम भाई भाई का नारा भले ही आकाश में गूंज रहा हो, लेकिन हकीकत में इसकी संभावना कम हो रही है। इसकी वजह है कि खिलाफत आंदोलन में भाग लेने वाले मुस्लिमों ने अपनी मातृभूमि से अधिक अपने धर्म के प्रति वफादारी दिखाई है।’

केशवराव बलिराम हेडगेवार की जीवनी लिखने वाले सी.पी. भिषिकर के मुताबिक हेडगेवार मुस्लिमों को यवन सर्प कहते थे। यह शब्द राष्ट्र विरोधी विदेशियों के लिए इस्तेमाल किया जाता था।

मुस्लिम धर्मांतरण के मकसद से भारत आए: गोलवलकर
1940 से 1973 तक RSS प्रमुख रहे गोलवलकर के भाषण का एक हिस्सा…

‘भारत का पिछले 1200 साल का इतिहास धार्मिक युद्ध का इतिहास रहा है, जिसमें हिंदुओं को खत्म करने की कोशिश की गई। 1200 साल पहले जब से मुस्लिमों ने इस धरती पर कदम रखा है, उनका एकमात्र मकसद पूरे देश का धर्मांतरण करना और उसे अपना गुलाम बनाना रहा है।’

माधवराव सदाशिव गोलवलकर के ‘बंच ऑफ थॉट्स ’ किताब में लिखी इन बातों को संघ ने खारिज करते हुए इसे गुरुजी का निजी विचार बताया है।

RSS में मुसलमानों के लिए भी दरवाजा खोलना चाहिएः देवरस
1973 से 1993 तक RSS प्रमुख रहे देवरस के भाषण का एक हिस्सा…

‘सैद्धांतिक रूप से हमने यह स्वीकार किया है कि पूजा-पाठ की पद्धति अलग होने के बावजूद मुसलमान भी राष्ट्र जीवन में समरस हो सकते हैं। हमें नया RSS बनाना चाहिए और मुसलमानों के लिए भी दरवाजे खोलने चाहिए।’

1977 में RSS की प्रतिनिधि सभा में मुसलमानों को संघ में लाने के सवाल पर ये बात तब के सरसंघचालक बाला साहब देवरस ने कही थी। हालांकि यादवराव जोशी, मोरोपंत पिंगले, दत्तोपंत ठेंगड़ी जैसे बहुत से नेताओं ने इसका कड़ा विरोध किया।

मुस्लिमों में पाकिस्तान के लिए कोई सॉफ्ट कॉर्नर न रहेः रज्जू भैय्या
1993 से 2000 तक RSS प्रमुख रहे रज्जू भैय्या के भाषण का एक हिस्सा…

‘भारत में 98% मुसलमान धर्मान्तरित हैं। अगर मुसलमानों की अपनी इबादत है, कुछ खास रीति-रिवाज हैं, तो कोई समस्या नहीं है, लेकिन बंटवारे के बाद भी अगर मुस्लिमों में पाकिस्तान के लिए किसी तरह का सॉफ्ट कॉर्नर है तो इससे शक पैदा होता है। यही वजह है कि मुस्लिमों को लेकर लोगों के मन में यह डर घर कर गया है।’

30 अप्रैल 1994 को पत्रकार युवराज घिमिरे ने चौथे सरसंघचालक प्रोफेसर राजेंद्र सिंह से बात की थी। इस दौरान उनका एक सवाल था कि क्या संघ का भाईचारा अल्पसंख्यक समुदायों से देश के प्रति अपनी वफादारी साबित करने को कहता है? इस सवाल के जवाब में ही उन्होंने ये जवाब दिया था।

हम अल्पसंख्यक की अवधारणा स्वीकार नहीं करते: केएस सुदर्शन
2000 से 2009 तक RSS प्रमुख रहे सुदर्शन के भाषण का एक हिस्सा…

‘हम अल्पसंख्यक की अवधारणा को बिल्कुल स्वीकार नहीं करते हैं।’

संघ प्रमुख केएस सुदर्शन ने 20 साल पहले 2002 में मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की शुरुआत की थी। इसकी जिम्मेदारी उन्होंने इन्द्रेश कुमार सौंपी थी। इसके अलावा उन्होंने जमीयत उलेमा-ए-हिंद और मौलाना डॉ. जमील इलियासी से भी मुलाकात की थी। मौलाना जमील इलियासी उस समय इमाम ऑर्गेनाइजेशन के अध्यक्ष थे।

2009 में RSS प्रमुख बने मोहन भागवत के मुस्लिमों को लेकर दिए हालिया बयानों को पढ़िए…

क्या मुस्लिमों के मामले में संघ का रुख नरम पड़ा है?
राज्यसभा सांसद और संघ विचारक राकेश सिन्हा के मुताबिक RSS का मुस्लिमों को लेकर हमेशा एक जैसा रुख रहा है। भागवत ने अपने बयान में हेडगेवार और संघ की मूल भावना की प्रगतिशील व्याख्या की है। राकेश सिन्हा मोहन भागवत के बयानों के दो मायने बताते हैं। पहला- संघ मुस्लिम समाज का विरोध नहीं करता। दूसरा- एक धर्म को मजबूत करने वाले कट्टर लोगों को कठोर जवाब मिला है।

पॉलिटिकल एक्सपर्ट राशिद किदवई कहते हैं कि देश की आजादी के पहले से लेकर अभी तक मुस्लिमों को लेकर RSS का पॉलिटिकल रिस्पॉन्स रहा है। इसी वजह से तरह-तरह से इस धर्म पर सवाल उठाए जाते रहे हैं। मोहन जी के इस बयान से लगता है कि अब इस्लाम धर्म को लेकर पॉलिटिकल रिस्पॉन्स में बदलाव हो रहा है। मुस्लिमों को अपना बताने की कोशिश हो रही है। ये पॉजिटिव और समाज में सौहार्द बढ़ाने वाला है।

संघ से जुड़ी पत्रिका ‘ऑर्गेनाइजर’ के पूर्व संपादक शेषाद्री चारी के मुताबिक मुस्लिम समुदाय में सुधारवादी लोगों की कमी है। जो थोड़े-बहुत उदार लोग हैं, उन्हें कट्टर लोग दबा देते हैं। ऐसे में संघ प्रमुख का मुस्लिम समुदाय के बड़े नेताओं से मुलाकात राष्ट्रीय हित और दोनों समुदायों के बीच अधिक समझ और सहयोग का माहौल तैयार करेगी।

पत्रकार और लेखक विवेक देशपांडे एक आर्टिकल में मुस्लिमों के प्रति मोहन भागवत के रुख के 3 मायने बताते हैं-

1. लक्ष्य वही, लेकिन तरीका बदला है: संघ का लक्ष्य हिंदू राष्ट्र की स्थापना है, लेकिन इसमें सबसे बड़ा संकट 14% से ज्यादा मुस्लिम आबादी है। RSS को पता है कि उसे साधे बिना संघ का मकसद पूरा नहीं होगा।

2. संघ ने पाला तो बदला, लेकिन पटरी नहीं: तीसरे संघ प्रमुख देवरस ने कहा था कि हिंदू माता-पिता से पैदा होने वाले ही हिंदू हैं। अब मोहन भागवत कहते हैं कि भारत में रहने वाला हर व्यक्ति हिंदू है। इस तरह भागवत ने संघ में मुस्लिमों को लेकर जो विवादित संदर्भ थे, उसे बदलने की कोशिश की है।

3. BJP के अति उत्साही कार्यकर्ताओं को शांत करने के लिए: 2014 में BJP की केंद्र में सरकार बनने के बाद मुस्लिम मॉब लिंचिंग की घटना बढ़ी। इससे दुनियाभर में भारत की आलोचना हुई। परेशानी भांपकर भागवत ने उदारवादी मुद्रा अपना ली।

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