23 दिसंबर को चीन के एक बड़े अधिकारी ‘वांग शिन’ की मुलाकात नेपाल की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी सीपीएन (UML) के प्रमुख केपी ओली और माओवाद सेंट्रल के प्रमुख पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ से हुई। इस मुलाकात के 24 घंटे बाद ही नेपाल में नई सरकार बन गई। इस सरकार के प्रधानमंत्री बने- पुष्प कमल दहल प्रचंड। वही प्रचंड जिसने 2008 में पहली बार प्रधानमंत्री बनने के साथ ही पशुपति मंदिर से भारतीय पुजारियों को निकलवा दिया था। इसके बाद भारत और नेपाल के रिश्ते में दरार आ गई थी।
भास्कर एक्सप्लेनर में जानेंगे कि नेपाल में सरकार बनने से पहले कैसे भारत और चीन के अधिकारियों के बीच शह और मात का खेल हुआ, ये भारत के लिए खतरे की घंटी क्यों है और आगे भारत की क्या स्ट्रेटजी होनी चाहिए?
सबसे पहले ग्राफिक्स से जानिए नेपाल में कितनी बड़ी पार्टियां हैं और इन दलों को कितनी सीटें मिली हैं…
ओली की पार्टी को बहुमत नहीं मिलने से परेशान चीन ने बदला राजदूत
चुनाव परिणाम आने के बाद शेर बहादुर देउबा की नेपाली कांग्रेस पार्टी यहां की सबसे बड़ी पार्टी बन गई। वहीं, केपी ओली की पार्टी दूसरे और प्रचंड की पार्टी तीसरे नंबर पर थी।
ट्रिब्यून ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया है कि चुनाव में प्रचंड और केपी ओली की पार्टी को बहुमत हासिल करने में सफलता नहीं मिलने से चीनी दूतावास को गहरा सदमा लगा था।
इस बात को और ज्यादा मजबूती तब मिली जब टेन्योर खत्म होने के बाद चीन ने पिछले 4 साल से नेपाल में तैनात राजदूत होऊ यांगशी को हटाकर नया राजदूत नियुक्त किया।
यही वजह है कि रिपोर्ट में यांगशी को हटाने के पीछे चीन के ‘मिशन नेपाल’ में झटका लगने को मुख्य वजह बताया जा रहा है।
सरकार बनाने के लिए 4 सप्ताह तक चीन-भारत में चला शह-मात का खेल
काठमांडू पोस्ट ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया है कि 28 नवंबर के बाद से ही चीन के बड़े अधिकारी नेपाल में पसंद की सरकार बनाना चाहते थे।
इसके लिए चीन के चार्ज ऑफ द अफेयर्स वांग शिन ने 3 बड़े दलों के नेता से मुलाकात की थी। हालांकि, खबर सामने आते ही चीन ने ऐसी किसी मुलाकात से इनकार किया।
नेपाल में नई सरकार बनने के खेल पर भारत के बड़े अधिकारी की भी नजर थी। रिपोर्ट के मुताबिक भारत के नए राजदूत नवीन श्रीवास्तव एक सप्ताह में दो बार नेपाली कांग्रेस के प्रमुख शेर बहादुर देउबा से मिले थे।
नवंबर के आखिरी सप्ताह में नेपाली कांग्रेस के प्रमुख देउबा से मुलाकात में श्रीवास्तव ने उनसे नई सरकार बनाने को लेकर बात की थी। उन्होंने सबसे बड़ी पार्टी बनने पर देउबा को बधाई भी दी थी।
इसके बाद ही ये माना जाने लगा कि नेपाल में नई सरकार बनाने के लिए भारत और चीन के बीच शह-मात का खेल चला।
नेपाल में प्रचंड की सरकार बनना भारत के लिए खतरे की घंटी: एक्सपर्ट
फॉरेन पॉलिसी एक्सपर्ट शैलेंद्र देवलंकर ने कहा कि- ‘नेपाल में नई सरकार बनवाने में चीन ने खास भूमिका निभाई है। यह भारत के लिए खतरे की घंटी है।’ देवलंकर ने नई सरकार को खतरे की घंटी मानने के पीछे 4 वजहें बताई हैं…
1. 4 साल पहले 2018 में भी चीन ने दो पुराने कम्युनिस्ट नेता प्रचंड और ओली को मिलवाकर वहां सरकार बनवाई थी। इसके बाद ही भारत और नेपाल के रिश्ते खराब हो गए थे। अब एक बार फिर से दोनों के मिलकर सरकार में आने से नेपाल का झुकाव भारत के बजाय चीन की तरफ ज्यादा हो सकता है।
2.चीन अगर साउथ ईस्ट एशिया से जुड़ना चाहता है तो नेपाल इस क्षेत्र से लिंक के लिए एक माध्यम हो सकता है। इसी वजह से नेपाल को अपने कंट्रोल में रखने के लिए चीन ने वहां कम्युनिस्ट सरकार बनाने में मदद की है। नेपाल में प्रो-चीन सरकार होने की वजह से ये भारत के लिए खतरे की घंटी है।
3. चीन ने पिछले साल नेपाल में 14 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा पैसा इन्वेस्ट किया है। चीन यहां लगातार अपनी इन्वेस्टमेंट बढ़ा रहा है। यही वजह है कि चीन अपने हित को साधने के लिए चाहता है कि यहां कम्युनिस्ट सरकार बने रहे। ऐसा हुआ तो इसका परिणाम भारत के हितों के खिलाफ होगा।
4. बीते दिनों हमारी सुरक्षा एजेंसियों को ये इनपुट मिला था कि चीन भारत को लद्दाख, नॉर्थ ईस्ट और नेपाल तीनों तरफ से घेरना चाहता है। ऐसे में चीन के समर्थन से नेपाल में सरकार बनने के बाद बॉर्डर क्षेत्र में कंस्ट्रक्शन में तेजी आ सकती है। इससे सीमा सुरक्षा को लेकर भारत की चिंता बढ़ सकती है।
नेपाल में सरकार बनने के बाद भारत की आगे क्या रणनीति होनी चाहिए?
फॉरेन पॉलिसी एक्सपर्ट शैलेंद्र देवलंकर ने कहा कि- ‘हमें ये समझना होगा कि नेपाल की कम्युनिस्ट सरकार से भारत का रिश्ता बिगड़ सकता है लेकिन नेपाल से नहीं।’ ऐसे में नेपाल को लेकर भारत सरकार की आगे की रणनीति कुछ इस तरह से होनी चाहिए…
1. स्पलेंडिड आइसोलेशन यानी भारत को नेपाल के आंतरिक मामलों में आगे भी दखल देने से बचना चाहिए। इस नीति के तहत भारत को तब तक आंतरिक मामलों में दखल नहीं देना चाहिए, जब तक की जरूरत नहीं हो। 2015 के मधेशी मुद्दे को भारत ने इसी तरह से सुलझाया था।
2. वेट एंड वॉच यानी भारत को नेपाल की नई सरकार के एक्शन लेने का इंतजार करना चाहिए। साथ ही नेपाल में चीन के प्रयासों पर भी करीब से नजर बनाए रखने की जरूरत है। उनके एक्शन के आधार पर ही भारत को फैसला लेना चाहिए।
3. भारत को पहले की तरह ही लगातार नेपाल को आर्थिक मदद करते रहना चाहिए। इससे नेपाल के लोगों में भारत के लिए पॉजिटिव छवि बने रहेगी।
भारत और नेपाल को एक-दूसरे की जरूरत क्यों है?
नेपाल से भारत का रोटी-बेटी का संबंध है। सदियों से नेपाल के साथ भारत का भौगोलिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक व आर्थिक संबंध रहा है। ऐसे में भारत और नेपाल को एक-दूसरे की जरूरत की कई वजहें हैं। जैसे-
1. भारत के साथ नेपाल 1751 किमी बॉर्डर शेयर करता है। भारत के कुल पांच राज्य - उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और सिक्किम नेपाल सीमा से लगे हुए हैं।
नेपाल के कुल 75 जिलों में से 23 जिले भारत की सीमा से लगते हैं। बिहार के साथ नेपाल के 12 जिले, UP के साथ 8, पश्चिम बंगाल के साथ 2 (जिसमें एक बिहार के साथ भी शामिल), उत्तराखंड के साथ चार ( दो पश्चिम बंगाल , एक सिक्किम व एक UP के साथ भी) लगते हैं। ऐसे में सीमा सुरक्षा के ख्याल से नेपाल से दोस्ती भारत की जरूरत है।
2. नेपाल की कुल आबादी लगभग 3 करोड़ है। भारत सरकार के 2019 के एक डेटा के मुताबिक, नेपाल के लगभग 60 लाख लोग भारत में रहते हैं और यहीं पर काम भी करते हैं। यानी नेपाल की करीब 20 फीसदी आबादी भारत में रहती है और भारत पर ही उनकी जीविका निर्भर है।
इसके साथ ही भारतीय सेना में भी नेपाल के लोगों की भर्ती होती है। वर्तमान में 32,000 गोरखा सैनिक भारतीय सेना में तैनात हैं और करीब 3,000 करोड़ रुपए पेंशन के तौर पर हर साल करीब सवा लाख पूर्व गोरखा सैनिकों को दी जाती है।
विदेशों में काम कर रहे नागरिकों में सबसे ज्यादा लोग भारत में ही हैं, क्योंकि दोनों देशों की सीमाएं एक-दूसरे के लिए खुली हुई हैं। जहां किसी तीसरे देश में काम करने के लिए नेपालियों को लेबर परमिट के लिए आवेदन करना पड़ता है, वहीं भारत में काम करने के लिए ऐसे किसी परमिट की जरूरत भी नहीं पड़ती है।
भारत सरकार की 2019 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, नेपाल में भारत के करीब 6 लाख लोग रहते हैं। इनमें से ज्यादातर लोग बिजनेस के लिए नेपाल जाते हैं। सीमा से सटे इलाकों के कई ऐसे लोग भी हैं जो रहते तो भारत में हैं लेकिन उनकी जीविका नेपाल से चलती हैं।
3. भारत की कई प्राइवेट और सरकारी कंपनियां भी नेपाल में काम करती हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, नेपाल के FDI में 30 फीसदी हिस्सा भारत से आता है।
भारत अपने 6 पड़ोसी देश चीन, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, भूटान और अफगानिस्तान के साथ कुल 90 हजार करोड़ रुपए का सीमा व्यापार करता है। जो भारत के कुल व्यापार का 1.56 फीसदी है। भारत जिन 6 पड़ोसी देशों से व्यापार करता है, उनमें नेपाल टॉप पर है।
अब आखिर में एक ग्राफिक में भारत-नेपाल के संबंधों को जानिए…
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