चीन में तानाशाही के खिलाफ सड़क पर उतरे युवा:‘जिनपिंग पद छोड़ो, हमें आजादी चाहिए’ के नारे लगे; आसान नहीं है चीन में विरोध करना

4 महीने पहलेलेखक: नीरज सिंह/ अनुराग आनंद
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सबसे पहले ये वीडियो देखिए…

'शी जिनपिंग पद छोड़ो', 'हमें तानाशाही नहीं आजादी' चाहिए। दरअसल वीडियो में चीन के उरुमकी रोड पर लोग यही नारे लगा रहे हैं।

इसी साल अक्टूबर में शी जिनपिंग तीसरी बार चीन के राष्ट्रपति बने हैं। ऐसे में इस तरह का विरोध प्रदर्शन उनके लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। चीन के लोग जिनपिंग की नीतियों से बेहद गुस्से में हैं। ऐसा लग रहा है जैसे जीरो कोविड नीति के चलते चीन के हर हिस्से में गुस्से की लहर फैल गई हो।

सख्त लॉकडाउन से 66 लाख लोग घरों में कैद हैं। ये लोग खाने के सामान के लिए भी बाहर नहीं निकल सकते। रोज होने वाले कोविड टेस्ट ने भी उन्हें परेशान कर दिया है। कुछ वक्त पहले तक ऐसी कल्पना करना भी मुश्किल लगता था, लेकिन एक अपार्टमेंट में लगी आग की चिनगारी ने हजारों लोगों को सड़क पर उतरने को मजबूर कर दिया है। प्रदर्शनकारी जीरो कोविड नीति के चलते लगी पाबंदियों को तोड़ रहे हैं।

भास्कर एक्सप्लेनर में हम बताएंगे कि चीन में आखिर विरोध प्रदर्शन होने की वजह क्या है? जिनपिंग पर इसका कितना असर होगा?

एक अपार्टमेंट में लगी आग ने भड़काई जिनपिंग के खिलाफ विरोध की चिनगारी

24 नवंबर 2022 का दिन था। जगह थी चीन के शिनजियांग प्रांत की राजधानी उरुमकी। यहां पर रात 7:54 बजे एक अपार्टमेंट के 15वें फ्लोर पर आग लगती है। देखते ही देखते आग कई और फ्लोर में फैल जाती है। आग से बचने के लिए लोग बाहर की तरफ भागते हैं, लेकिन उन्हें रोक दिया जाता है, यानी मरने के लिए छोड़ दिया जाता है। वजह थी कोविड लॉकडाउन।

दूसरी ओर सख्त जीरो कोविड नीति की वजह से दमकलकर्मियों के आने में भी देरी होती है। 5 घंटे तक आग पर काबू करने के लिए कोई इंतजाम नहीं होता है। इससे 10 लोगों की झुलसने और धुएं में दम घुटने से मौत हो जाती है।

उरुमकी में आग की घटना का मामला चीन के सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। लोग इसकी तुलना व्हिसलब्लोअर डॉक्टर ली वेनलियांग से कर रहे हैं। दरअसल, डॉक्टर वेनलियांग ने 2020 में सबसे पहले अपने एक दोस्त को कोरोना वायरस के आने की चेतावनी थी। इसके बाद चीन की पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया था। बाद में वेनलियांग की कोरोना से ही मौत हो गई थी।

चीनी लोग सोशल मीडिया पर कह रहे हैं कि हमें गर्मियों में बंद रखा गया। सर्दियों में भी नहीं निकलने दिया जा रहा है। अब यह पाबंदी झेली नहीं जा रही है। उरुमकी की घटना से लोगों के मन में डर पैदा हुआ है। लोगों का कहना है कि कल को अगर हमारे घर में आग लग गई तो हम भी अपने घर के अंदर बंद होकर ऐसे ही मारे जा सकते हैं। इसके बाद से ही चीन के शंघाई समेत कई शहरों में जिनपिंग के खिलाफ प्रदर्शन तेज हो गया।

चीन के शंघाई में पुलिस के सामने राष्ट्रपति जिनपिंग के खिलाफ नारे लगाते प्रदर्शनकारी।
चीन के शंघाई में पुलिस के सामने राष्ट्रपति जिनपिंग के खिलाफ नारे लगाते प्रदर्शनकारी।

आसान नहीं है चीन में विरोध प्रदर्शन, ऐसे लोगों का पता नहीं चलता

चीन के सबसे बड़े शहर और ग्लोबल फाइनेंशियल हब शंघाई में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की नीतियों का विरोध हो रहा है। यहां पर प्रदर्शनकारियों ने उरुमकी घटना में मारे गए लोगों की याद में कैंडल भी जलाए। वहीं कई प्रदर्शनकारियों ने जिनपिंग राष्ट्रपति का पद छोड़ो और कम्युनिस्ट पार्टी का पद छोड़ो जैसे नारे लगा रहे थे। वहीं कुछ ने सफेद रंग के खाली बैनर के साथ प्रदर्शन किया। एक प्रदर्शनकारी ने बताया कि मौके पर पुलिस ने उनके एक दोस्त की पिटाई की, जबकि दो अन्य लोगों पर मिर्ची का स्प्रे किया गया।

सोशल मीडिया पर विरोध प्रदर्शन के कई वीडियो वायरल हो रहे हैं। बीजिंग में भी प्रदर्शन हो रहे हैं। यहां एक यूनिवर्सिटी के करीब 100 स्टूडेंट्स सरकार के विरोध में प्रोटेस्ट करने लगे। स्टूडेंट्स ने दीवारों पर 'नो टु लॉकडाउन, यस टु फ्रीडम। नो टु कोविड टेस्ट, यस टु फूड' लिखा। यूनिवर्सिटी के छात्रों, फैक्ट्री मजदूरों से लेकर आम नागरिक तक कोविड नीति को लेकर गुस्से में हैं। हालांकि इस तरह के विरोध प्रदर्शन के दृश्य चीन में आम नहीं हैं। यहां पर सरकार और राष्ट्रपति की आलोचना करना मतलब अपने आप को जोखिम में डालना होता है।

लोगों में जो गुस्सा दबा हुआ था, उसे आग की घटना ने बाहर निकाल दिया

डिफेंस एक्सपर्ट लेफ्टिनेंट कर्नल (रिटायर) जेएस सोढी कहते कि चीन में इतने बड़े स्तर पर प्रदर्शन होना बड़ी बात है। उन्होंने प्रदर्शन होने 2 मुख्य वजहें बताईं। उन्होंने बताया कि चीन ने बहुत सारे देशों को कर्ज दिया है और ज्यादातर पैसा डूब गया है। चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव यानी BRI के तहत कई प्रोजेक्ट कोलैप्स हो चुके हैं।

ऐसे में चीन ने जो करोड़ों रुपए का निवेश किया था, वो डूब गया है। इसकी वजह से आज चीन के बैंकों की हालत खराब है। चीन की रियल एस्टेट इंडस्ट्री बर्बाद हो चुकी है। लोगों के पास अपने घर की EMI देने के लिए पैसा नहीं है। कई लोगों ने बैंकों को EMI देने से इनकार कर दिया है।

वहीं जिनपिंग ने जिस तरह से कोरोना को हैंडल किया है, उससे वहां के लोगों को काफी परेशानी उठानी पड़ रही है। पिछले 3 साल से लोग घरों में कैद हैं। कुछ दिनों पहले ही WHO प्रमुख ने कहा था कि अब दुनिया से कोरोना खत्म होने की कगार पर है। लेकिन चीन में अभी भी कोरोना के केस बढ़ रहे हैं।

चीन ने कोरोना की सबसे अच्छी विदेशी वैक्सीन को अपने देश में नहीं आने दिया। साथ ही उन्होंने जो घरेलू वैक्सीन बनाई वो कारगर नहीं है। इसकी वजह से चीन में अब तक कोरोना थमा नहीं है और बढ़ता ही जा रहा है। यही वजह है लोगों में जो गुस्सा दबा हुआ था, उसे अब एक आग की घटना ने बाहर निकाल दिया है।

शंघाई में एक प्रदर्शनकारी को पकड़कर ले जाती पुलिस। कई मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया कि कई प्रदर्शनकारियों को पुलिस अपनी गाड़ियों जबरदस्ती डाल कर ले जा रही है।
शंघाई में एक प्रदर्शनकारी को पकड़कर ले जाती पुलिस। कई मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया कि कई प्रदर्शनकारियों को पुलिस अपनी गाड़ियों जबरदस्ती डाल कर ले जा रही है।

अब जानिए चीन के किन शहरों में लॉकडाउन लगा है….

अब उन 6 वजहों को जानते हैं, जिसकी वजह से चीन में गुस्साए लोग यहां सड़कों पर उतर गए हैं…

1. कड़ी पाबंदी से 66 लाख लोग घरों में कैद

26 नवंबर यानी शनिवार को चीन में कोरोना वायरस संक्रमण के 34,398 नए मामले सामने आए। ये 2019 के बाद चीन में कोरोना संक्रमण के सबसे ज्यादा दैनिक मामले हैं। यहां हर रोज कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं।

इसी वजह से चीन के कई बड़े प्रांत जैसे- शंघाई, शिंजियांग, वुहान में लॉकडाउन लगाया गया है। इन शहरों सभी तरह के काम-काज पूरी तरह से ठप हो गए हैं। लोगों की आवाजाही पर पूरी तरह से रोक है। इन पाबंदियों की वजह से लोगों की आमदनी कमी है। यही वजह है कि लोग खाने-पीने और घूमने में कम खर्च कर रहे हैं।

चीन के नेशनल ब्यूरो ऑफ स्टैटिस्टिक्स ने इस बात की संभावना जताई थी कि सितंबर 2022 में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर तेजी से ग्रोथ करेगी। इसके पीछे ये तर्क दिया गया था कि शी जिनपिंग सरकार बुनियादी ढांचे पर अधिक खर्च कर रही है।

चीन के लोग हैरान तब रह गए जब एक प्राइवेट कंपनी ने सर्वे रिपोर्ट जारी कर कहा कि सितंबर महीने में मैन्युफैक्चरिंग और कारखाने की गतिविधियों में भारी गिरावट आई है। अमेरिका और यूरोपीय देशों से सामान के डिमांड में कमी और रूस-यूक्रेन जंग की वजह से दुनियाभर में महंगाई बढ़ने का असर यहां भी देखने को मिल रहा है। ऐसे में लोग सरकार के खिलाफ गुस्से में सड़क पर उतर रहे हैं।

2. इकोनॉमी को सुधारने के लिए शी जिनपिंग ने कोई फैसला नहीं लिया

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इस साल अगस्त महीने में इकोनॉमी को रफ्तार देने के लिए 11.38 लाख करोड़ रुपए के पैकेज का ऐलान किया। ये पैसा चीन में छोटे बिजनेस, इंफ्रास्ट्रक्चर और रियल स्टेट सेक्टर में निवेश किया गया। इसके तहत 3 फैसले लिए गए..

  • बुनियादी ढांचे में ज्यादा पैसा निवेश करना।
  • घर खरीदारों और रियल एस्टेट डेवलपर्स के उधार लेने की शर्तों को आसान करना।
  • लोगों को टैक्स में छूट देना।

हालांकि, कोरोना की वजह से चीन की अर्थव्यवस्था को जितना नुकसान हुआ और बेरोजगारी बढ़ी है, उसकी भरपाई के लिए ये पैसा काफी कम है। एस. एंड पी. ग्लोबल रेटिंग्स के प्रमुख और इकोनॉमिस्ट लुइस कुइज ने कहा- ‘इकोनॉमी को रफ्तार देने के लिए सरकार ने जो ऐलान किया है, वह पहले के सालों में लिए गए फैसलों से काफी कम है।’

खबर में आगे बढ़ने से पहले एक ग्राफिक में ये भी जान लीजिए कि पिछले 20 साल में कब सबसे कम रही चीनी इकोनॉमी की रफ्तार…

3. चीन में रियल स्टेट मार्केट संकट में

रियल एस्टेट सेक्टर के कमजोर होने और हाउसिंग सेक्टर से भरोसा कम होने की वजह से चीन की इकोनॉमी स्लो हुई है। चीन की कुल GDP में रियल स्टेट और इससे जुड़े सेक्टर का 30% योगदान है। मतलब ये हुआ कि चीन की कुल GDP 100 रुपए की है तो 30 रुपए तो सिर्फ इसी सेक्टर से आता है।

एक्सपर्ट का कहना है कि चीन के रियल स्टेट सेक्टर में लोगों का भरोसा कम होना यहां की इकोनॉमी की अस्थिरता को दिखाता है। अब खरीदारों ने बन रहे घरों के लिए पहले किस्त देने से इनकार कर दिया है। वहीं, नए घरों के खरीदार नहीं मिल रहे हैं। शहरों में घरों की कीमत 20% तक कम हो गई है।

यही वजह है कि इस सेक्टर से जुड़े व्यवसायी और दूसरे लोग घबराए हुए हैं। सरकार से उचित मदद नहीं मिलने की वजह से ये गुस्से में हैं।

4. मौसम बदलने की वजह से भी बढ़ी परेशानी

चीन में मौसम बदलने का असर यहां के इंडस्ट्री सेक्टर पर भी देखने को मिल रहा है। इस साल अगस्त में दक्षिण-पश्चिमी प्रांत सिचुआन और सेंट्रल बेल्ट के चोंगकिंग शहर में भीषण गर्मी के बाद सूखा पड़ा।

इसके बाद एयर कंडीशन के इस्तेमाल बढ़ने की वजह से यहां बिजली की मांग बढ़ गई। प्रशासन ने IPhone, फॉक्सकॉन और टेस्ला जैसी बड़ी कंपनियों की बिजली काट दी। इसकी वजह ये कंपनियां कुछ दिनों के लिए बंद हो गईं।

चीन के स्टेटिस्टिक्स ब्यूरो ने कहा है कि पिछले साल की तुलना में 2022 के शुरुआती 7 महीने में लोहा और स्टील इंडस्ट्री की आमदनी में 80% कमी आई है। यही वजह है कि चीन सरकार ने करोड़ों रुपए एनर्जी कंपनी और किसानों को मदद के तौर पर दी है। हालांकि, लोग और ज्यादा सरकार से मदद की उम्मीद कर रहे हैं। कई जगहों पर किसानों ने प्रदर्शन भी किए हैं।

5. निवेशक चीन से भाग रहे, बेरोजगारी बढ़ रही

चीन की इकोनॉमी को आगे बढ़ाने में टेक कंपनियों का योगदान काफी ज्यादा है, लेकिन पिछले 2 साल में चीन की टेक इंडस्ट्री पूरी तरह से तबाह हो गई है। टेंसेंट और अलीबाबा कंपनी की रेवेन्यू लगातार दूसरी तिमाही में गिरी है।

साल की तीसरी तिमाही में टेंसेंट के रेवेन्यू में 50% की गिरावट हुई। वहीं, अलीबाबा कंपनी की नेट इनकम आधी रह गई है। इसका सीधा असर यहां के नौजवानों पर पड़ा है। यहां 16 से 24 साल के हर 5 में से एक नौजवान बेरोजगार हैं।

एक्सपर्ट्स का कहना है कि शी जिनपिंग ने जिस तरह से बड़ी कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई की, इससे निवेशक डर गए। उन्हें लगता है कि सरकार किसी भी बड़ी कंपनी पर कार्रवाई कर सकती है, ऐसे में यहां पैसा लगाना खतरे से खेलने जैसा है। इससे न सिर्फ चीन के बिजनेसमैन बल्कि यहां की सरकार के खिलाफ भी लोगों में गुस्सा है।

6. फैक्ट्रियों में कैदियों जैसा व्यवहार किए जाने से गुस्से में हैं युवा
चीन में कोरोना लॉकडाउन के दौरान कर्मचारियों को फैक्ट्रियों में कैद करके काम करवाया गया था। इनके साथ कैदियों जैसा व्यवहार किया गया। जब कर्मचारियों ने शिकायत की तो प्रशासन ने भी कंपनियों का ही साथ दिया।

सरकार ने कंपनियों के लिए नियमों में छूट दी। इसके चलते युवा अब फैक्ट्री में काम करने से कतरा रहे हैं। कई कंपनियों में कुशल टेक्नीशियन की और युवा स्टाफ की कमी हो गई है।

चीन के नौजवान अब सरकारी नौकरी करना चाहते हैं, लेकिन देश में सरकारी नौकरी की भारी कमी है। इसे इस बात से भी समझ सकते हैं कि पहली बार चीन में 26 लाख युवाओं ने सिविल सर्विस का फॉर्म डाला है। एस. एंड पी. ग्लोबल रेटिंग्स के प्रमुख और इकोनॉमिस्ट लुइस कुइज का मानना है कि बेरोजगारी युवाओं के गुस्से की एक मुख्य वजह है।

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