कोरोना का सबसे खतरनाक वैरिएंट माना जा रहा ओमिक्रॉन भारत भी पहुंच चुका है। 24 नवंबर को साउथ अफ्रीका में पहला केस सामने आने के महज एक हफ्ते के अंदर ही ओमिक्रॉन भारत समेत 30 देशों में पैर पसार चुका है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने 2 दिसंबर को भारत में कोरोना के पहले दो मामलों की पुष्टि करते हुए बताया कि दोनों केस कर्नाटक में सामने आए हैं।
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) द्वारा वैरिएंट ऑफ कंसर्न घोषित किए जाने के महज एक हफ्ते के अंदर ओमिक्रॉन भारत, अमेरिका, ब्रिटेन समेत दुनिया के 30 देशों में पहुंच चुका है। भारत में ओमिक्रॉन के दो नए केस सामने आने के बाद इस बात पर भी चर्चा शुरू हो गई है कि आखिर कैसे होती है कोरोना टेस्टिंग से नए वैरिएंट की पहचान?
आइए जानते हैं, जीनोम सीक्वेंसिंग क्या होती है? कैसे की जाती है? इससे कैसे नए वैरिएंट का पता लगाया जाता है? जीनोम सीक्वेंसिंग में कहां है भारत? और जीनोम सीक्वेंसिंग से क्या फायदा होता है?
भारत में कम जीनोम सीक्वेंसिंग खतरे की घंटी
कोरोना के किसी भी नए वैरिएंट की पहचान आम कोरोना टेस्ट (RT-PCR टेस्ट, रैपिड एंटीजन) के बजाय जीनोम सीक्वेंसिंग से ही संभव है, लेकिन भारत जीनोम सीक्वेंसिंग जांच के मामले में दुनिया में बहुत पीछे खड़ा है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भारत ने अब तक (नवंबर 2021 तक) अपने कुल कोरोना केसेज का महज 0.2 फीसदी की जीनोम सीक्वेंसिंग कराई है। जीनोम सीक्वेंसिंग के बिना नए वैरिएंट ओमिक्रॉन की पहचान बहुत मुश्किल है। ऐसे में बहुत जरूरी है कि तेजी से फैलने में सक्षम ओमिक्रॉन की पहचान के लिए भारत जीन सीक्वेंसिंग की रफ्तार बढ़ाए, अगर ऐसा नहीं हुआ तो भारत में दूसरी लहर लाने वाले डेल्टा वैरिएंट से भी खतरनाक मान जा रहा ओमिक्रॉन कहर ढा सकता है।
जीनोम सीक्वेंसिंग को समझने के लिए हमें जीनोम और जीन को भी समझना होगा।
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