- Hindi News
- Db original
- Explainer
- Coronavirus Vaccination In India: Is It Enough To Have One Dose Of Vaccine If You Are A Covid 19 Survivor | US Vaccination Study | Antibody Response From Covid 19 Vaccines | Study Over Antibody Response From Covid 19 Vaccines
भास्कर एक्सप्लेनर:स्टडी में दावा- जिसने कोरोना को हराया, उसके लिए वैक्सीन का एक डोज ही काफी; जानिए क्या हैं इसके मायने
2 वर्ष पहलेलेखक: रवींद्र भजनी
पश्चिमी देशों में हुई स्टडी में दावा किया गया है कि जिसने एक बार कोरोना वायरस को हरा दिया यानी जो इन्फेक्शन से रिकवर कर गया, उसे वैक्सीन का एक डोज काफी है। यह एक बड़ी बात है क्योंकि इससे कई देशों की वैक्सीनेशन स्ट्रैटजी बदल सकती है। निश्चित तौर पर दूसरी लहर से लड़ रहे भारत के लिए यह स्टडी वरदान साबित हो सकती है, जो इस समय वैक्सीन डोज की कमी का सामना भी कर रहा है।
आइए, समझते हैं कि इस तरह की स्टडी का उद्देश्य क्या है? इनके नतीजे क्या हैं और इससे क्या बदल जाएगा?
यह स्टडी क्यों हो रही है?
- इस समय पूरी दुनिया जानती है कि वैक्सीन डोज की कमी है, वहीं अब तक वायरस के खिलाफ शरीर की लड़ाई का एक खास गुण वैज्ञानिकों और रिसर्चर्स की नजर में आया है। जब इंसान का शरीर किसी भी वायरस से लड़ने में कामयाब हो जाता है तो एंटीबॉडी बनती है। यह एंटीबॉडी दो तरह की होती हैं। एक होती है T किलर सेल्स जो वायरस को खत्म करते हैं। वहीं एक एंटीबॉडी होती है मेमोरी B सेल्स। इनका काम यह होता है कि अगर भविष्य में वायरस ने दोबारा हमला किया तो उसे पहचानना और इम्यून सिस्टम को अलर्ट करना ताकि वह वायरस को खत्म करने के लिए किलर सेल्स बनाना शुरू कर दें।
- जब से कोरोना महामारी फैली है, तब से ही इसकी जांच हो रही है कि इससे रिकवर हो चुके लोगों के शरीर में एंटीबॉडी कितने समय तक कायम रहती है। यह जानना जरूरी है क्योंकि इससे पता चलेगा कि किसी व्यक्ति के रीइन्फेक्ट होने की संभावना कितनी रह जाती है। कुछ लोगों में सालभर तो कुछ लोगों में कुछ महीने तक एंटीबॉडी मिली भी है। जब वैक्सीन लगनी शुरू हुई तो अमेरिका में स्टडी शुरू हुई। इसमें यह देखा गया कि जिन्हें कोरोना इन्फेक्शन हुआ है और जिन्हें नहीं हुआ है, उन पर वैक्सीन के पहले और दूसरे डोज का क्या असर रहा है।
क्या कहते हैं नई स्टडी के नतीजे?
- सबसे पहले, पिछले हफ्ते साइंस इम्युनोलॉजी में छपी पेन इंस्टीट्यूट ऑफ इम्युनोलॉजी की स्टडी की बात करते हैं। इसके मुताबिक अमेरिका में कोरोना को हरा चुके लोगों में mRNA वैक्सीन के पहले डोज के बाद एंटीबॉडी रिस्पॉन्स बहुत अच्छा दिखा। पर दूसरे डोज के बाद इम्यून रिस्पॉन्स उतना नहीं था। रिसर्चर्स का दावा है कि जिन्हें कोरोना इन्फेक्शन नहीं हुआ था, उनमें एंटीबॉडी रिस्पॉन्स दूसरा डोज मिलने के कुछ दिन तक नहीं दिखा।
- यूनिवर्सिटी ऑफ पेनसिल्वेनिया की ओर से जारी बयान में पेन इंस्टीट्यूट ऑफ इम्युनोलॉजी के सीनियर लेखक ई जॉन वेरी ने कहा कि स्टडी के यह नतीजे शॉर्ट और लॉन्ग टर्म वैक्सीन एफिकेसी के लिए प्रोत्साहित करने वाले हैं। यह मेमोरी B सेल्स के एनालिसिस के जरिए mRNA वैक्सीन इम्यून रिस्पॉन्स को समझने में भी मदद करती है।
क्या यह इस तरह की पहली स्टडी है?
- नहीं। ऐसे दावे लगातार हो रहे हैं। इटली, इजरायल और कई अन्य देशों में भी इस तरह की स्टडी हुई है। सिएटल में फ्रेड हचिसन कैंसर रिसर्च इंस्टीट्यूट के इम्युनोलॉजिस्ट एंड्रयू मैकगुइरे ने ऐसी ही स्टडी की। सिएटल कोविड कोहर्ट स्टडी में 10 वॉलंटियर पर यह स्टडी की। वैक्सीनेशन के दो से तीन हफ्ते बाद ब्लड सैम्पल लेने पर एंटीबॉडी के स्तर में उछाल देखा गया। दूसरे डोज के बाद उनमें एंटीबॉडी के स्तर में इतना बदलाव नहीं दिखा था।
- रिसर्चर्स का कहना है कि जो इम्यून सेल वायरस को याद रखते हैं और लड़ते हैं, उनकी संख्या बढ़ी हुई मिली है। मैकगुइरे के मुताबिक यह साफ है कि वैक्सीन का पहला डोज शरीर में पहले से मौजूद इम्युनिटी को बढ़ावा देता है।
- न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी में एक और स्टडी हुई। ज्यादातर लोग आठ या नौ महीने पहले कोरोना से इन्फेक्ट हुए थे। वैक्सीन का पहला डोज दिया तो उनके शरीर में एंटीबॉडी सैकड़ों-हजारों गुना बढ़ गई। दूसरे डोज के बाद एंटीबॉडी लेवल ऐसे नहीं बढ़ा। इस स्टडी के मुख्य लेखक N.Y.U. लैंगोन वैक्सीन सेंटर के डायरेक्टर डॉ. मार्क जे. मलीगन कहते हैं कि यह स्टडी इम्युनोलॉजिकल मेमोरी की ताकत बताती है, जो पहला डोज मिलने पर कई गुना बढ़ जाती है।
- ऐसी ही एक स्टडी न्यूयॉर्क के माउंट सिनाई में इकान स्कूल ऑफ मेडिसिन में इम्युनोलॉजिस्ट फ्लोरियन क्रैमर ने भी की। उनका कहना है कि जिन लोगों को कोरोना हो चुका था, उनमें वैक्सीन के एक डोज के बाद साइड इफेक्ट्स दिखे हैं। पर उनमें उन लोगों से ज्यादा एंटीबॉडी मिले, जिन्हें इन्फेक्शन नहीं हुआ था। डॉ. क्रैमर के मुताबिक अगर आप बाकी रिसर्च साथ रखेंगे तो आपको पता चलेगा कि जिन्हें इन्फेक्शन हो चुका है, उन्हें एक डोज काफी होगा।
- क्रैमर और अन्य रिसर्चर्स ने अपनी स्टडी के साथ अमेरिका में सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन से भी संपर्क किया। ताकि जो लोग कोरोना से रिकवर हो चुके हैं, उन्हें सिर्फ एक डोज दिया जाए और ज्यादा से ज्यादा लोगों तक वैक्सीन पहुंच सके। पर अमेरिका में डेटा की कमी कहते हुए इस दलील को फिलहाल खारिज कर दिया गया है।
क्या इस तरह की स्टडी से कहीं कुछ बदला है?
- हां। बहुत कुछ बदला है। ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक फरवरी से फ्रांस, स्पेन, इटली और जर्मनी जैसे कुछ यूरोपीय देशों ने कोरोना को हरा चुके लोगों को वैक्सीन के दो के बजाय एक डोज देने की स्ट्रैटजी बनाई है। वैक्सीनेशन में वर्ल्ड लीडर बन चुके इजरायल ने भी फरवरी में ही तय किया कि जो लोग कोरोना को हरा चुके हैं, उन्हें एक ही डोज देंगे।
- इटली की रिसर्च तो इससे आगे बढ़कर बात करती है। न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में छपी यह रिसर्च बताती है कि अगर आपको इन्फेक्शन हुआ है और आपने वैक्सीन का एक डोज ले लिया है तो एंटीबॉडी का स्तर उन लोगों से भी ज्यादा होगा, जिन्हें इन्फेक्शन नहीं हुआ था और उन्होंने दो डोज ले लिए हैं।
- मैरीलैंड स्कूल ऑफ मेडिसिन के इम्युनोलॉजिस्ट मोहम्मद सजादी और उनके साथियों ने कैल्कुलेट कर बताया है कि अगर इन्फेक्टेड लोगों को सिर्फ एक वैक्सीन डोज दिया जाता है तो आपको mRNA वैक्सीन के ही कम से कम 11 करोड़ डोज अतिरिक्त मिल जाएंगे। सजादी ने भी स्टडी की है और वह भी इसी दिशा में नतीजे दे रही है।
भारत में क्या इस पर कहीं कोई बात हुई है?
- भारत में 16 जनवरी को वैक्सीनेशन शुरू हुआ था। पर अब तक इस संबंध में कोई स्टडी नहीं हुई है कि क्या कोरोना से रिकवर हो चुके लोगों को वैक्सीन का एक डोज काफी है? स्टडी के अभाव में वैज्ञानिक भी कुछ दावा करने से बच रहे हैं। इसी वजह से दो डोज वाली वैक्सीन के दोनों डोज सभी के लिए अनिवार्य किए गए हैं, भले ही कोरोना इन्फेक्शन हुआ हो या न हुआ हो।
- कुछ एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस संबंध में भारत में बड़े स्तर पर स्टडी की जरूरत है। हमारे यहां लाखों लोग कोरोना से रिकवर हो चुके हैं। अगर स्टडी के जरिए स्वास्थ्य मंत्रालय या इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च इस दिशा में कोई कदम उठाए तो जल्द ही ज्यादा से ज्यादा लोग वैक्सीन के दायरे में आ सकेंगे।