100 साल बिना हेलमेट बाउंसर झेलते रहे बल्लेबाज:ब्रैडमैन ने बिना हेलमेट जड़े 29 शतक, हेलमेट होने पर भी गई ह्यूज की जान

7 महीने पहलेलेखक: अभिषेक पाण्डेय
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T20 वर्ल्ड कप 2022 में श्रीलंका के खिलाफ मैच में ग्लेन मैक्सवेल 6 गेंदों पर ताबड़तोड़ 22 रन बना चुके थे। तभी श्रीलंका के लाहिरू कुमारा ने उनके खिलाफ शॉर्ट-पिच गेंदों से हमला बोल दिया। 12वें ओवर की पहली गेंद मैक्सवेल के ग्लव्स से लगी। अगली गेंद सीधे मैक्सवेल की गर्दन से जाकर टकराई, जिससे वो मैदान में गिर पड़े।

स्टेडियम में मौजूद फैंस की सांसें अटक गईं। मैक्सवेल लकी रहे कि कोई गंभीर चोट नहीं लगी। हालांकि, मैक्सवेल के गर्दन पर लगी गेंद ने 8 साल पहले हुई उस दुखद घटना की यादें ताजा कर दीं, जिसमें ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज फिल ह्यूज की मौत हो गई थी।

T20 वर्ल्ड कप 2022 में ऑस्ट्रेलिया के ग्लेन मैक्सवेल की गर्दन पर कुछ यूं लगी थी श्रीलंका के लाहिरू की बाउंसर।
T20 वर्ल्ड कप 2022 में ऑस्ट्रेलिया के ग्लेन मैक्सवेल की गर्दन पर कुछ यूं लगी थी श्रीलंका के लाहिरू की बाउंसर।

'क्रिकेट किट के किस्से' सीरीज में आज कहानी क्रिकेट हेलमेट की...

बात 1870 की है। नॉटिंघमशायर के बल्लेबाज जॉर्ज समर्स बैटिंग के दौरान गेंद लगने से घायल हो गए। समर्स को मैदान के बाहर ले जाया गया, लेकिन लोगों को लगा कि वो ठीक हैं, इसलिए उन्हें अस्पताल नहीं ले जाया गया। समर्स ट्रेन से नॉटिंघम वापस लौटे और चोट की वजह से चार दिन बाद उनकी मौत हो गई।

समर्स की मौत को देखकर एक और अंग्रेज क्रिकेटर रिचर्ड डाफ्ट इस कदर खौफजदा हुए कि तेज गेंदबाजों से बचने के लिए कुछ मैचों में वह अपने सिर पर तौलिया लपेटकर खेले।

अगर हेलमेट होता तो शायद समर्स की जान बच जाती, लेकिन उस जमाने में हेलमेट का इस्तेमाल नहीं होता था। भले ही आज हेलमेट क्रिकेट के खेल में बेहद खास बन गया है, लेकिन टेस्ट क्रिकेट की शुरुआत के करीब 100 साल बाद तक क्रिकेट में हेलमेट का इस्तेमाल ही नहीं हुआ था।

100 सालों तक बिना हेलमेट ही खेला गया क्रिकेट

पहला टेस्ट मैच 1877 में खेला गया, लेकिन क्रिकेट में पहली बार हेलमेट का इस्तेमाल 1977-78 यानी करीब 100 साल बाद हुआ। सर डॉन ब्रैडमैन, जैक हॉब्स, हर्बर्ट सटक्लिफ, वॉली हैमंड, गैरी सोबर्स से लेकर विव रिचर्ड्स तक ऐसे कई महान बल्लेबाज हुए, जो बिना हेलमेट के ही रनों का अंबार लगाते रहे। वो भी तब जब बाउंसर को लेकर नियम तय नहीं थे और सबसे घातक तेज गेंदबाजी होती थी।

बिना हेलमेट के खेले डॉन ब्रैडमैन ने 52 टेस्ट में 29 शतकों की मदद से 6996 रन बनाए, टेस्ट में उनके 99.94 औसत का रिकॉर्ड शायद ही कभी टूटे।

विव रिचर्ड्स के बारे में प्रसिद्ध है कि जब वो क्रीज पर होते थे तो वो नहीं बल्कि गेंदबाज दबाव में होते थे। रिचर्ड्स के आंकड़े भी इसकी गवाही देते हैं। अपने 17 साल लंबे करियर में कभी भी हेलमेट पहनकर नहीं खेलने वाले रिचर्ड्स ने 121 टेस्ट में 50 से ज्यादा की औसत और 24 शतकों की मदद से 8,540 रन और 187 वनडे में 11 शतकों और 47 के औसत से 6,721 रन बनाए। 2020 में इंटरव्यू में हेलमेट न पहनने को लेकर विव ने कहा था, उन्होंने हेलमेट नहीं पहना क्योंकि वो क्रिकेट को लेकर जुनूनी थे और इसके लिए मरने को भी तैयार थे।

भारत के महान बल्लेबाज सुनील गावस्कर भी लगभग पूरे करियर में बिना हेलमेट ही वेस्टइंडीज के घातक तेज गेंदबाजों का सामना करते रहे। गावस्कर टेस्ट क्रिकेट में 10 हजार रन बनाने वाले पहले बल्लेबाज थे और उन्होंने 34 शतक जड़े थे।

अब हम क्रिकेट हेलमेट के इवोल्यूशन को कुछ घटनाओं के जरिए जानेंगे...

अंग्रेज क्रिकेटर पैट्सी हेंड्रेन की पत्नी ने बनाई थी खास कैप

क्रिकेट में हेलमेट का सबसे पहले प्रयोग किस क्रिकेटर ने किया था, ये बहस का विषय है। लेकिन हेलमेट जैसे प्रोटेक्टिव गियर के इस्तेमाल के लिए पहला नाम इंग्लैंड के पैट्सी हेंड्रेन का लिया जाता है।

जब 1933 में वेस्टइंडीज की टीम इंग्लैंड दौरे पर पहुंची तो उसने इंग्लैंड को उसके ही अंदाज में जवाब यानी बॉडी लाइन गेंदबाजी से जवाब देने का फैसला किया। इसके पहले इंग्लैंड की टीम ऑस्ट्रेलिया और खास तौर पर महान बल्लेबाज डॉन ब्रैडमैन को रोकने के लिए जानबूझकर बल्लेबाज के शरीर को निशाना बनाने वाली, यानी बॉडी लाइन सीरीज खेल चुकी थी।

इंग्लैंड दौरे पर आई उस विंडीज टीम में जॉर्ज हैडली, जॉर्ज फ्रांसिस, लेरी कॉन्सटेंटाइन, मैनी मार्टिंडेल जैसे घातक तेज गेंदबाज थे। इंग्लैंड के बल्लेबाज पैट्सी हेंड्रेन वेस्टइंडीज के घातक तेज गेंदबाजों का सामना करने को लेकर बहुत चिंतित थे, क्योंकि वो दो साल पहले ही एक मैच में गेंद सिर में लगने से चोटिल हो चुके थे। हेंड्रेन की पत्नी मिनी भी अपनी पति की सेफ्टी को लेकर बेहद परेशान थीं।आखिरकार हेंड्रेन के लिए पत्नी मिनी ने ही एक विशेष 'थ्री-पीक्ड कैप' डिजाइन की।

हेंड्रेन की थ्री-पीक्ड कैप आम कैप से थोड़ी अलग थी। आम कैप में केवल आगे की तरफ पीक या छज्जा होता है, लेकिन हेंड्रेन की कैप में तीन पीक थे। ग्रिल को छोड़ दें तो ये कैप कुछ हद तक हेलमेट की तरह थी। हेंड्रेन जब विंडीज के खिलाफ 1933 में लॉर्ड्स मैदान पर MCC के लिए एक टूर मैच में इस स्पेशल कैप को पहनकर उतरे तो बाकी के क्रिकेटर हैरान रह गए।

1930 के दशक में इंग्लैंड के पैट्सी हेंड्रेन की 'थ्री पीक्ड कैप' ने सुर्खियां बटोरी थीं।
1930 के दशक में इंग्लैंड के पैट्सी हेंड्रेन की 'थ्री पीक्ड कैप' ने सुर्खियां बटोरी थीं।

ब्रिटिश पत्रकार ज्योफ्री मूलहाउस ने हेंड्रेन के उस कैप के बारे में लिखा था, 'हेलमेट एक 'थ्री पीक' वाला कैप था, इनमें से दो उनके कान और एक माथे को ढंक रहा था, इसमें रबड़ का फोम लगा था।' हालांकि हेंड्रेन इस हेलमेट में ज्यादा देर खेल नहीं सके और 7 रन बनाकर कॉन्सटेंटाइन की गेंद पर आउट हो गए।

पैट्सी हेंड्रेन की इस अनोखी कैप या हेलमेट से मिलती-जुलती कैप को बहुत अच्छी प्रतिक्रिया नहीं मिली और उनकी काफी आलोचना हुई। हेंड्रेन ने फिर कभी इसका इस्तेमाल नहीं किया।
पैट्सी हेंड्रेन की इस अनोखी कैप या हेलमेट से मिलती-जुलती कैप को बहुत अच्छी प्रतिक्रिया नहीं मिली और उनकी काफी आलोचना हुई। हेंड्रेन ने फिर कभी इसका इस्तेमाल नहीं किया।

अंग्रेज क्रिकेटर डेनिस ऐमिस ने किया था हेलमेट का पहला इस्तेमाल

क्रिकेट में हेलमेट के इस्तेमाल का दूसरा जिक्र 1970 के दशक में मिलता है। इंग्लैंड के क्रिकेटर डेनिस एमिस ने तेज गेंदबाजी से बचने के लिए 1977 में हुई वर्ल्ड क्रिकेट सीरीज के दौरान हेलमेट का इस्तेमाल किया था। एमिस का ये हेलमेट फाइबरग्लास से बने मोटरसाइकिल हेलमेट को कस्टमाइज्ड करके बनाया गया था।

वर्ल्ड क्रिकेट सीरीज इंटरनेशनल क्रिकेट नहीं बल्कि एक कमर्शियल प्रोफेशनल क्रिकेट कॉम्पिटिशन था, जिसका आयोजन 1977-1979 के बीच कैरी पैकर ने किया था। इसमें ऑस्ट्रेलिया इलेवन, कैवेलियर्स इलेवन, रेस्ट ऑफ द वर्ल्ड इलेवन और वेस्टइंडीज इलेवन की टीमों ने हिस्सा लिया था।

1978 की वर्ल्ड क्रिकेट सीरीज में इस्तेमाल दोनों हेलमेट के साथ इंग्लैंड के डेनिस एमिस।
1978 की वर्ल्ड क्रिकेट सीरीज में इस्तेमाल दोनों हेलमेट के साथ इंग्लैंड के डेनिस एमिस।

एमिस के हेलमेट की खास बात उसका वाइजर या हेलमेट का आगे निकला हुआ सिरा था, जिससे तेज गेंदबाजों के एमिस की ओर खतरनाक गेंद फेंकने के इरादे पर पानी फिर गया था। एमिस ने इस सीरीज के दौरान वेस्टइंडीज के तेज गेंदबाजों की घातक गेंदों से बचने के लिए हेलमेट का इस्तेमाल किया था। एमिस की ये कोशिश हेलमेट के रूप में क्रिकेट में एक नया क्रांतिकारी बदलाव लेकर आई।

1978 में मेलबर्न में वर्ल्ड सुपर सीरीज के सुपरटेस्ट से पहले नेट्स में हेलमेट में प्रैक्टिस करते इंग्लैंड के डेनिस एमिस।
1978 में मेलबर्न में वर्ल्ड सुपर सीरीज के सुपरटेस्ट से पहले नेट्स में हेलमेट में प्रैक्टिस करते इंग्लैंड के डेनिस एमिस।

ग्राहम येलेप ने किया था इंटरनेशनल क्रिकेट में सबसे पहले हेलमेट का इस्तेमाल

14 मार्च 1978 को वेस्टइंडीज के खिलाफ बारबाडोस टेस्ट मैच के दौरान ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज ग्राहम येलेप जब बैटिंग के लिए उतरे तो लोग हैरान रह गए, उन्हें लगा जैसे कोई अंतरिक्ष यात्री पिच पर पहुंच गया है। थोड़ी देर बाद लोगों को अहसास हुए कि ये ग्राहम येलेप थे, जो हेलमेट पहनकर पहुंचे थे। इसके साथ ही येलेप इंटरनेशनल क्रिकेट में पहली बार हेलमेट का इस्तेमाल करने वाले बल्लेबाज बन गए।

जब येलेप हेलमेट पहनकर खेलने उतरे तो दर्शकों ने उनका मजाक उड़ाया, लेकिन येलेप की यही कोशिश आगे चलकर सभी क्रिकेटरों की प्रमुख जरूरत यानी हेलमेट के रूप में सामने आई।

1978 में ब्रिजटाउन टेस्ट में वेस्टइंडीज के खिलाफ हेलमेट में नजर आ रहे ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज ग्राहम येलेप।
1978 में ब्रिजटाउन टेस्ट में वेस्टइंडीज के खिलाफ हेलमेट में नजर आ रहे ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज ग्राहम येलेप।

माइक ब्रेयरली और सुनील गावस्कर कुछ मैचों में खास स्कल कैप पहनकर खेले

इंग्लैंड के कप्तान माइक ब्रेयरली हेलमेट तो नहीं लेकिन तेज गेंदबाजों से सेफ्टी के लिए 1977 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ नॉटिंघम टेस्ट में खास तौर पर डिजाइन स्कल कैप पहनकर खेले थे।

सुनील गावस्कर अपने लगभग पूरे करियर में बिना हेलमेट के ही खेले। 1983 में विंडीज के तेज गेंदबाज मैल्कम मार्शल की गेंद सिर पर लगने के बाद वह अगले 2-3 सालों तक एक खास स्कल कैप पहनकर खेले थे। हालांकि, गावस्कर इस स्कल कैप में खुद को सहज महसूस नहीं कर रहे थे और जल्द ही इसे छोड़कर फिर से आम कैप ही पहनकर खेलने लगे थे।

अपने लगभग पूरे करियर में बिना हेलमेट के खेले सुनील गावस्कर 1980 के दशक में कुछ मैचों में स्कल कैप में खेले थे।
अपने लगभग पूरे करियर में बिना हेलमेट के खेले सुनील गावस्कर 1980 के दशक में कुछ मैचों में स्कल कैप में खेले थे।

मोहिंदर अमरनाथ खास ‘सोला टोपी’ पहनकर खेले

1983 वर्ल्ड कप विजेता भारतीय टीम के अहम सदस्य रहे मोहिंदर अमरनाथ ने तेज गेंदों से सुरक्षा के लिए हेलमेट तो नहीं पहना, लेकिन 1980 के दशक में कुछ मैचों में खास तरह की कैप पहनकर खेले थे, जिसे ‘सोला टोपी’ कहते हैं। मोहिंदर अमरनाथ के पिता और भारत के लिए पहला टेस्ट शतक जड़ने वाले लाला अमरनाथ 1940 के दशक में इस टोपी को पहनकर खेल चुके थे। ये कैप गर्मी से बचने के लिए इस्तेमाल होनी वाली पिथ हेलमेट थी, जिसका इस्तेमाल अमरनाथ सीनियर और जूनियर ने गेंदों से सेफ्टी के लिए किया था।

मोहिंदर अमरनाथ कुछ टेस्ट मैचों में तेज गेंदों से बचने के लिए सोला टोपी पहनकर खेले थे।
मोहिंदर अमरनाथ कुछ टेस्ट मैचों में तेज गेंदों से बचने के लिए सोला टोपी पहनकर खेले थे।

1980 के दशक के बाद क्रिकेटरों की जरूरत बन गया हेलमेट

1980 के बाद और 1990 का दशक आते-आते हेलमेट क्रिकेटरों के लिए प्रमुख क्रिकेट गियर बन गया। एमिस और येलेप जैसे क्रिकेटरों के इस्तेमाल के बाद दुनिया के बाकी क्रिकेटरों ने भी हेलमेट की अहमियत को समझा और ये तेजी से लोकप्रिय हुआ। न केवल बल्लेबाज, बल्कि विकेटकीपरों और नजदीकी फील्डर्स भी हेलमेट का इस्तेमाल करने लगे।

ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज मैथ्यू हेडेन ने हेलमेट को लेकर एक बार कहा था, ‘हेलमेट किसी क्रिकेटर की सबसे कीमती संपत्ति में से एक है।'

18 फरवरी 1986 को किंग्सटन वनडे के दौरान वेस्टइंडीज के मैल्कम मार्शल की गेंद से इंग्लैंड के माइक गैटिंग की नाक टूट गई थी। जब गेंद मार्शल को लौटाई गई तब भी हड्डी का एक टुकड़ा उसमें लगा हुआ था। तब हेलमेट में ग्रिल नहीं होती थी।
18 फरवरी 1986 को किंग्सटन वनडे के दौरान वेस्टइंडीज के मैल्कम मार्शल की गेंद से इंग्लैंड के माइक गैटिंग की नाक टूट गई थी। जब गेंद मार्शल को लौटाई गई तब भी हड्डी का एक टुकड़ा उसमें लगा हुआ था। तब हेलमेट में ग्रिल नहीं होती थी।

अब एक नजर उन दुखद घटनाओं पर डाल लीजिए, जो हेलमेट न होने की वजह से हुईं

नॉरी कॉन्ट्रैक्टर, घातक गेंद से जान बच गई, लेकिन करियर खत्म हो गया

भारत के बेहतरीन बल्लेबाजों में शामिल नारी कॉन्ट्रैक्टर की कप्तानी में भारत इंग्लैंड के खिलाफ 1961-62 की सीरीज जीतकर वेस्टइंडीज पहुंचा था।

मार्च 1962 में बारबाडोस के खिलाफ एक टूर मैच के दौरान जब नारी 2 रन पर खेल रहे थे तो विंडीज तेज गेंदबाज चार्ली ग्रिफिथ का सामना करते हुए उनका ध्यान भटका और गेंद सीधे जाकर उनके सिर के पीछे टकराई, जिससे उनका सिर फट गया। उनके दिमाग में खून का थक्का जम गया और कमर से नीचे के हिस्से में लकवा मार गया।

खून के थक्के को हटाने के लिए दो सर्जरी हुईं। उन्हें विंडीज कप्तान फ्रैंक वॉरेल और भारतीय खिलाड़ियों चंदू बोर्डे, बापू नादकर्णी और पॉली उमरीगर ने खून दिया। नारी कॉन्ट्रैक्टर की जान बच गई, लेकिन 32 साल की उम्र में उनका क्रिकेटर करियर खत्म हो गया। अब नारी 88 साल के हो चुके हैं।

एक इंटरव्यू में नारी कॉन्ट्रैक्टर ने कहा था कि उन्हें एक ही पछतावा है कि वह वेस्टइंडीज के खिलाफ जानलेवा चोट लगने के बाद केवल एक टेस्ट खेलना चाहते थे, लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
एक इंटरव्यू में नारी कॉन्ट्रैक्टर ने कहा था कि उन्हें एक ही पछतावा है कि वह वेस्टइंडीज के खिलाफ जानलेवा चोट लगने के बाद केवल एक टेस्ट खेलना चाहते थे, लेकिन ऐसा नहीं हो सका।

रमन लांबा की फील्डिंग के दौरान गेंद लगने से हुई थी मौत

भारतीय टेस्ट क्रिकेटर रमन लांबा की शॉर्ट लेग पर फील्डिंग के दौरान गेंद लगने से मौत हो गई थी। लांबा बांग्लादेश में होने वाले ढाका प्रीमियर लीग में बहुत चर्चित थे। 23 फरवरी 1998 को ढाका प्रीमियर लीग के एक मैच के दौरान लांबा शॉर्ट लेग पर फील्डिंग कर रहे थे। तभी मेहराब हुसैन का एक तेज शॉट उनके सिर से टकराया और लांबा गिर पड़े। लांबा को अस्पताल ले जाया गया, लेकिन उनकी मौत हो गई।

कहा जाता है कि लांबा के साथी खिलाड़ियों ने उनसे हेलमेट पहनने को कहा था लेकिन जब उन्हें शॉर्ट लेग पर फील्डिंग के लिए बुलाया गया तो ओवर की केवल तीन गेंदें ही बची थीं, इसलिए लांबा ने हेलमेट पहनने से मना कर दिया था।

रमन लांबा के साथी खिलाड़ियों के अनुसार वह विकेट के आसपास फील्डिंग के दौरान हेलमेट पहनना नहीं पसंद करते थे। लेकिन यही आदत लांबा के लिए जानलेवा साबित हुई।
रमन लांबा के साथी खिलाड़ियों के अनुसार वह विकेट के आसपास फील्डिंग के दौरान हेलमेट पहनना नहीं पसंद करते थे। लेकिन यही आदत लांबा के लिए जानलेवा साबित हुई।

फिल ह्यूज, जिनकी हेलमेट पहनने के बावजूद चली गई जान

क्रिकेट में हेलमेट न पहनने से कई जानलेवा घटनाएं हुईं। लेकिन एक घटना ऐसी भी हुई, जिसमें बल्लेबाज की जान हेलमेट पहनने के बावजूद चली गई। ये दुखद घटना हुई ऑस्ट्रेलियाई टेस्ट क्रिकेटर फिल ह्यूज के साथ। 25 नवंबर 2014 को सिडनी, ऑस्ट्रेलिया में साउथ ऑस्ट्रेलिया और न्यू साउथ वेल्स की टीमों के बीच शेफील्ड शील्ड का मैच खेला जा रहा था।

साउथ ऑस्ट्रेलिया के लिए खेल रहे फिल ह्यूज ने न्यू साउथ वेल्स के तेज गेंदबाज सीन एबॉट की बाउंसर पर हुक शॉट खेलने का असफल प्रयास किया। ह्यूज ने हेलमेट पहन रखा था लेकिन गेंद उनके बाएं कान के ठीक नीचे गर्दन के पास टकराई। गेंद लगते ही ह्यूज मैदान पर गिर पड़े और उन्हें तुरंत हॉस्पिटल ले जाया गया।

2014 में ऑस्ट्रेलियाई टेस्ट क्रिकेटर फिल ह्यूज की गर्दन में गेंद लगने से मौत हो गई थी।
2014 में ऑस्ट्रेलियाई टेस्ट क्रिकेटर फिल ह्यूज की गर्दन में गेंद लगने से मौत हो गई थी।

गेंद लगने से ह्यूज को ब्रेन हेमरेज हो गया और वो कोमा में पहुंच गए। ह्यूज की सर्जरी की गई, लेकिन अपने 26वें जन्मदिन से 3 दिन पहले 27 नवंबर 2014 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया। क्रिकेट मैदान में किसी इंटरनेशनल क्रिकेटर की मौत की ये एकमात्र घटना है। गर्दन पर गेंद लगने से ह्यूज की मौत को लेकर ऑस्ट्रेलियाई टीम के डॉक्टर पीटर ब्रूकनर ने कहा था, ‘अब तक ऐसे केवल 100 केस हुए हैं और उनमें भी क्रिकेट गेंद से ऐसा होने का ये पहला मामला है।’

ह्यूज की मौत के बाद बल्लेबाजों की गर्दन की सेफ्टी के लिए हेलमेट में नेक गार्ड लगना शुरू हुआ।

धीरे-धीरे बेहतर होते गए क्रिकेट के हेलमेट

1980 के दशक यानी हेलमेट के शुरुआती दौर में लेकर 1990 के दशक तक क्रिकेट के हेलमेट में डिजाइन और प्रोटेक्शन को लेकर कई बदलाव हुए। शुरू में बाइक जैसे हेलमेट से क्रिकेट के हेलमेट बनने में कई साल लगे। शुरुआती दिनों के हेलमेट में वेंटिलेशन यानी सांस लेने और विजन यानी देखने में परेशानी जैसे समस्याएं थीं। धीरे-धीरे इसमें बदलाव होता गया। डेनिस एमिस और ग्राहम येलेप के हेलमेट बाइक के हेलमेट में थोड़ा चेंज करके बनाए गए थे। बाद में क्रिकेटर्स की सेफ्टी के लिए हेलमेट में ग्रिल लगाई गई। इससे बल्लेबाजों की सेफ्टी बढ़ी गई।

हेलमेट के प्रमुख हिस्सों में शेल, चेन स्ट्रैप, इनर फोम मटेरियल, आउट इम्पैक्ट रेसिस्टेंट शेल होते हैं। आधुनिक हेलमेट बनाने में ऐसे मेटीरियल्स का इस्तेमाल होता है जो टकराव की स्थिति में चोट से बचाने में काम आते हैं। इनमें मोल्डेड प्लास्टिक या मैन-मेड फाइबर्स, ABS प्लास्टिक, फाइबरग्लास, कार्बन फाइबर, टाइटेनियम, स्टील और हाई डेंसिटी फोम जैसी चीजों का इस्तेमाल होता है।

हेलमेट का मुख्य हिस्सा ग्रिल स्टील,टाइटेनियम या कार्बन फाइबर से बना होता है। हेलमेट का वाइजर स्टील से बना होता है, जो सिर को कानों तक गार्ड करता है। चेन स्ट्रैप इतना मजबूत होता है, जिससे हेलमेट की सिर पर पकड़ ढीली नहीं पड़ती। आधुनिक हेलमेट में वेंटिलेशन और विजन दोनों की समस्याएं दूर हुई हैं।

2017 में ICC ने इंटरनेशनल क्रिकेट में हेलमेट के स्टैंडर्ड तय किए, जिसमें ब्रिटिश स्टैंडर्ड BS7928:2013 वाले हेलमेट न पहनने पर खिलाड़ियों को सस्पेंड करने का नियम है।

फिल ह्यूज की मौत के बाद बढ़ी हेलमेट की सेफ्टी, पर अब भी 100% सेफ नहीं

फिल ह्यूज की मौत के बाद हेलमेट में सबसे बड़ा बदलाव गर्दन की सेफ्टी के लिए हेलमेट में जोड़ा गया नेक गार्ड है। यानी हेलमेट के पिछले इलाके की सेफ्टी थोड़ी बढ़ाई गई थी। इसके बावजूद हेलमेट बल्लेबाज की सेफ्टी की 100% गारंटी नहीं हैं।

सवाल ये है कि क्या ह्यूज को गर्दन में जिस जगह चोट लगी थी, उस पूरे इलाके की हेलमेट से सेफ्टी कर पाना संभव है? तो जवाब है नहीं। ह्यूज को गेंद बाएं कान के नीचे गर्दन के पास लगी थी। इस इलाके को हेलमेट से प्रोटेक्ट कर पाना इसलिए संभव नहीं है क्योंकि कोई भी ऐसा हेलमेट नहीं है जो सर के पूरे पिछले हिस्से को कवर करता हो। इसे कवर कर पाना इसलिए भी मुश्किल है क्योंकि बल्लेबाज को अपने सिर को हिलाने के लिए उस एरिया का खुला रहना जरूरी होता है।

फिल ह्यूज ऑस्ट्रेलियाई स्टैंडर्ड वाले मसूरी हेलमेट पहनकर खेले थे। लेकिन ये हेलमेट ICC से मान्यता प्राप्त मौजूदा ब्रिटिश स्टैंडर्ड वाले हेलमेट जैसे नहीं थे। ह्यूज की मौत के बाद मसूरी के इन हेलमेट को बिक्री से हटा लिया गया था।

ह्यूज की मौत के बाद क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया ने इस घटना की जांच के लिए एक कमेटी बनाई थी। क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया ने अपनी जांच के बाद कहा कि अब के हेलमेट और ह्यूज ने जो हेलमेट पहना था उसमें सबसे बड़ा अंतर ये था कि अब के हेलमेट में फेस की सुरक्षा के लिए लगे ग्रिल को हेलमेट के पिछले हिस्से तक बढ़ा दिया गया है।

क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया की कमेटी ने कहा था कि अगर फिल ह्यूज नया हेलमेट पहनकर भी खेलते, तब भी ये हेलमेट उन्हें सुरक्षा नहीं दे पाते। CA की कमेटी का कहना था कि ह्यूज को गर्दन में जिस जगह गेंद लगी थी, उससे ब्रिटिश स्टैंडर्ड वाले हेलमेट भी कोई सेफ्टी नहीं दे पाते।

इस कमेटी का कहना था कि इस बात के सीमित वैज्ञानिक प्रमाण मौजूद हैं कि हेलमेट के मौजूदा नेक गार्ड्स ह्यूज जैसी घटना होने से रोकने में सक्षम हैं।

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