दुनिया के 100 से ज्यादा देश ओमिक्रॉन वैरिएंट के चलते कराह रहे हैं। इससे संक्रमित व्यक्ति में भले ही गंभीर लक्षण नहीं दिख रहे हैं, लेकिन आगे चलकर यह आप के लिए घातक हो सकता है। खासकर बुजुर्गों और कोमॉर्बिडिटी से जूझ रहे लोगों के लिए हॉस्पिटलाइजेशन और मौत का खतरा ज्यादा है।
रिसर्चर्स भी कहते हैं कि ओमिक्रॉन को हल्के में लेने की गलती नहीं करें, क्योंकि अभी तक यह नहीं पता चल सका है कि ओमिक्रॉन होने के बाद इससे होने वाली दिक्कतें कितने महीने या सालों तक रह सकती हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि ओमिक्रॉन से संक्रमित होने वाले बच्चों में भी तेजी से बढ़ोतरी हो रही है जो कि चिंताजनक है।
आइए जानते हैं कि ओमिक्रॉन से जुड़े खतरे कितने गंभीर हैं और उनसे बचने के लिए क्या किया जा सकता है?
1. ओमिक्रॉन से ठीक हो भी गए तो बाद में क्या होगा, पता नहीं
2. सबसे जानी-मानी तीन दवाओं में से दो असर नहीं कर रहीं
3. ओमिक्रॉन जितना फैलेगा, उसके उतने ही वैरिएंट सामने आएंगे
4. डेल्टा से उलट आपके बच्चों को शिकार बना रहा ओमिक्रॉन
5. इतना ज्यादा फैलेगा ओमिक्रॉन कि अस्पतालों में जगह नहीं बचेगी
अनवैक्सीनेटेड लोगों के हॉस्पिटलाइजेशन और मौत का खतरा बढ़ा
रिसर्चर्स का कहना है कि ओमिक्रॉन में अन्य वैरिएंट के मुकाबले एसिम्प्टोमेटिक होने की आशंका ज्यादा होती है। वहीं जिन व्यक्तियों में लक्षण नजर आते हैं, उनकी बीमारी का स्तर काफी हल्का होता है। साथ ही उनमें गले में खराश और नाक बहने जैसी समस्या होती है, लेकिन डेल्टा वैरिएंट की तरह ओमिक्रॉन से संक्रमित व्यक्ति को सांस लेने में समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है। अगर आप अनवैक्सीनेटेड हैं, तो आपके हॉस्पिटलाइजेशन और मौत का खतरा बढ़ने की आशंका है।
इटली और जर्मनी के उदाहरण से जानें इसकी गंभीरता
कई देशों में ओमिक्रॉन से गंभीर रूप से बीमार होने के मामले भी सामने आ रहे हैं। इटली और जर्मनी के हाल के डेटा बताते हैं कि जिन लोगों का वैक्सीनेशन नहीं हुआ है, उनके हॉस्पिटलाइजेशन, ICU में जाने और मौतों में काफी बढ़ोतरी देखने को मिली है।
रॉकफेलर यूनिवर्सिटी के मिशेल न्यूसेनज्विंग कहते हैं कि थोड़ा पहले या बाद में सभी को संक्रमित होना है, लेकिन बाद में संक्रमित होना ज्यादा अच्छा है, क्योंकि बाद में हमारे पास अच्छी और ज्यादा मात्रा में मेडिसिन और वैक्सीन होंगी।
डेल्टा की तुलना में बच्चों में ओमिक्रॉन संक्रमण के मामले बढ़े
विशेषज्ञों का कहना है कि डेल्टा की तुलना में एसिम्प्टोमेटिक बच्चों की संख्या में चिंताजनक वृद्धि हुई है। वॉकहार्ट अस्पताल में बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर फजल नबी कहते हैं कि बच्चों में कोरोना के मामले बढ़ते जा रहे हैं। जबकि पहले की दो लहर के दौरान उनमें बहुत कम मामले देखने को मिल रहे थे।
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