सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन को बिना परखे केवल आर्थिक आधार पर आरक्षण देने को सही करार दिया है। पांच जजों की संवैधानिक पीठ में से 3 जजों ने इसके लिए किए गए 103वें संविधान संशोधन को वैध बताया, वहीं पीठ के अगुवा चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया यानी CJI यूयू ललित और जस्टिस रवींद्र भट्ट ने इसे गैर-बराबरी मानते हुए अवैध करार दिया।
CJI ललित और जस्टिस भट्ट ने प्राइवेट कंपनियों में आरक्षण का रास्ता साफ करते हुए अपने फैसले में लिखा- शिक्षा देने वाले निजी संस्थानों में आरक्षण से इनकार नहीं किया जा सकता। ये अपने मालिकों के निजी उद्देश्यों को आगे बढ़ाने का जरिया नहीं बल्कि शेयरहोल्डर्स की कंपनी जैसी है, जिनमें सरकार का भी खास हित है।
यूं तो सभी जजों को अपना-अपना फैसला लिखना होता है, लेकिन इस मामले में CJI ने अलग से अलग फैसला लिखने के बजाय जस्टिस भट्ट के फैसले पर ही सहमति जताते हुए उस पर अपने हस्ताक्षर किए। यानी अब यही उनका फैसला कहलाएगा।
2019 में इस संविधान संशोधन के जरिए आर्थिक आधार पर सालाना 8 लाख से कम कमाई वाले परिवारों को इकोनॉमिकली वीकर सेक्शन्स (EWS) मानते हुए सरकारी और प्राइवेट शैक्षिक संस्थानों के अलावा सरकारी नौकरी में भी 10% आरक्षण दिया जा रहा है।
आज के भास्कर एक्सप्लेनर में समझते हैं कि 3:2 से हुए इस फैसले में CJI यूयू ललित और जस्टिस रवींद्र भट्ट ने क्या और क्यों कहा? किन आधारों पर EWS आरक्षण को अवैध बताया?
जस्टिस रवींद्र भट्ट ने इन तर्कों पर EWS को आरक्षण को अवैध बताया
1. SC’s, ST’s और OBC’s को बाहर करना गैर बराबरी
जस्टिस रवींद्र भट्ट ने कहा, 'EWS आरक्षण देने के लिए जिस तरह SC’s, ST’s और OBC’s को इससे बाहर किया गया है, उससे भ्रम होता है कि समाज में उनकी स्थिति काफी बेहतर है।
आर्थिक बदहाली या आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर दिए जा रहे इस आरक्षण से SC, ST और OBC जैसे वर्गों को बाहर रखना बराबरी के अधिकार के खिलाफ है, क्याेंकि सबसे ज्यादा गरीब इन्हीं वर्गों में है। इसे मंजूर नहीं किया जा सकता। समानता हमारे संविधान का मूल है।
2006 में सामान्य जातियों में आर्थिक पिछड़ेपन काे स्टडी करने के लिए बनाए गए मेजर सिन्हो कमीशन 2001 की जनगणना के आधार पर बताया कि कुल SC आबादी का 38% और कुल ST आबादी का 48% गरीबी रेखा से नीचे था।'
2. प्राइवेट इंस्टीट्यूशन्स में रिजर्वेशन संविधान का उल्लंघन नहीं
जस्टिस रवींद्र भट्ट ने अपने फैसले में कहा, 'बिना किसी सरकारी सहायता के प्रोफेशनल एजुकेश देने वाली निजी संस्थान देश की मुख्यधारा से बाहर नहीं खड़े। जैसा कि पहले के फैसलों में भी कहा गया है कि निजी संस्थानों में आरक्षण संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन नहीं है। मतलब यह कि निजी संस्थानों में एक अवधारणा के रूप में आरक्षण से इनकार नहीं किया जा सकता। निजी संस्थान जो समाज में जो वैल्यू एड करते हैं, वह स्किल डेवलपमेंट और ज्ञान फैलाने के राष्ट्रीय प्रयास का हिस्सा है। निजी संस्थान समुदाय के भौतिक संसाधन भी हैं। ऐसे संस्थान सिर्फ अपने मालिकों के निजी उद्देश्यों को आगे बढ़़ाने के लिए बनाए गए निकाय नहीं। ये शेयरहोल्डर्स की कंपनी तरह हैं, जिनमें राज्य यानी सरकार के भी खास हित हैं। ऐसे संस्थान देश के शैक्षिक स्तर को ऊपर लाने और भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए राज्य के प्रयास यानी सरकारी कोशिशों का हिस्सा हैं।"
3. आर्थिक आधार पर आरक्षण संविधान के खिलाफ नहीं
जस्टिस रवींद्र भट्ट ने कहा कि अकेले आर्थिक आधार पर किया गया आरक्षण वैध है लेकिन उससे गरीब SC, ST और OBC को बाहर किया जाना संविधान के मूल ढ़ाचे यानी बेसिक स्ट्रक्चर के खिलाफ है।
4. यह संशोधन रिजर्वेशन के लिए तय 50% की अधिकतम सीमा को तोड़ता है
जस्टिस रवींद्र भट्ट कहते हैं कि EWS आरक्षण के लिए किया गया संविधान संशोधन 50% की अधिकतम सीमा को तोड़ता है। यदि ऐसा होता रहा तो देश में समूहवाद को बढ़ता रहेगा और हम समानता की उसी परिभाषा में लौट जाएंगे जैसा कि चंपकम दोरईराजन केस के दौरान हुआ था। यानी रिजर्वेशन का नियम समानता के अधिकार में बदल जाएगा और रिजर्वेशन का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा।
5. EWS आरक्षण केवल भेदभाव और पक्षपात पैदा करता है
जस्टिस रवींद्र भट्ट ने कहा, 'मैं यहां विवेकानंदजी की बात याद दिलाना चाहूंगा कि भाईचारे का मकसद समाज के हर सदस्य की चेतना को जगाना है। ऐसी प्रगति बंटवारे से नहीं, बल्कि एकता से हासिल की जा सकती है। ऐसे में EWS आरक्षण केवल भेदभाव और पक्षपात है। ये समानता की भावना को खत्म करता है। ऐसे में मैं EWS आरक्षण को गलत ठहराता हूं।'
उन्होंने 1893 में शिकागो में स्वामी विवेकानंद के भाषण का एक अंश भी सुनाया, 'इस सबूत के सामने, यदि कोई अपने धर्म के अस्तित्व और दूसरों के विनाश का सपना देखता है, तो मुझे दिल से उस पर दया आती है।'
6. EWS आरक्षण वंचितों के खिलाफ दुश्मनी पैदा करता
जस्टिस रवींद्र भट्ट ने कहा कि SC, ST, OBC को बाहर रखना आर्थिक अभाव पर आधारित है लेकिन भेदभावपूर्ण है और इस तरह संशोधन भेदभाव के अलावा और कुछ नहीं है और समानता को नष्ट करता है और इसलिए EWS संशोधन मनमाना है और सामाजिक रूप से वंचितों के लिए दुश्मनी पैदा करता है।’
और इसलिए में EWS आरक्षण के लिए किए गए संशोधन को रद्द करता हूं-
जस्टिस रविंद्र भट्ट ने ऊपर के आधारों को गिनाते हुए कहा कि इन आधारों पर मैं EWS आरक्षण को रद्द करता हूं।
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