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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अच्छे दोस्त डोनाल्ड ट्रम्प चुनाव हार गए हैं। डेमोक्रेट जो बाइडेन 20 जनवरी को अमेरिका के नए राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे शपथ लेंगे। वह भी भारत के लिए नए नहीं हैं। हमने उन्हें प्रेसिडेंट बराक ओबामा के वाइस प्रेसिडेंट के तौर पर कई प्लेटफॉर्म्स पर भारत का पक्ष लेते देखा है। जो बाइडेन ही थे, जिन्होंने अमेरिका की ओर से संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता का अधिकृत समर्थन किया था। जिस गति से ओबामा प्रशासन ने भारत से रिश्तों को आगे बढ़ाया, उसी गति से ट्रम्प उन्हें आगे लेकर गए। एक्सपर्ट कह रहे हैं कि 2000 के बाद से अमेरिका के भारत को लेकर रुख में बहुत ज्यादा बदलाव नहीं आया है। फिर चाहे अमेरिका में रिपब्लिकन प्रेसिडेंट हो या डेमोक्रेट। क्लिंटन से शुरू होकर जॉर्ज बुश के बाद ओबामा और ट्रम्प ने भी रिश्तों को मजबूती देने की कोशिश की है। बाइडेन खेमे में चीन को लेकर सोच अलग है और यह भारत के रिश्तों को प्रभावित कर सकती है।
बाइडेन का अब तक भारत के लिए क्या रुख रहा है?
बराक ओबामा प्रशासन में वाइस-प्रेसिडेंट बनने से पहले से बाइडेन भारत के साथ मजबूत रिश्तों की पैरवी करते रहे हैं। सीनेट की फॉरेन रिलेशंस कमेटी के चेयरमैन और उसके बाद वाइस-प्रेसिडेंट रहने के दौरान उन्होंने भारत के साथ मजबूत स्ट्रैटेजिक भागीदारी बढ़ाने की बात कही है।
2006 में बाइडेन ने कहा था कि 2020 की मेरे सपने की दुनिया में अमेरिका और भारत सबसे नजदीकी देश है। 2008 में भी जब भारत-अमेरिका न्यूक्लियर डील पर सीनेटर ओबामा हिचक रहे थे, तब बाइडेन ने ही अमेरिकी संसद (कांग्रेस) में रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स को इसके लिए राजी किया। बाइडेन ने वाइस-प्रेसिडेंट रहते हुए स्ट्रैटेजिक क्षेत्रों में भारत-अमेरिका के रिश्तों को मजबूती देने की बात हमेशा से की है। उनके ही टेन्योर में अमेरिका ने UN सिक्योरिटी काउंसिल को विस्तार करने और भारत को स्थायी सदस्य बनाने के लिए औपचारिक रूप से समर्थन किया था।
ओबामा-बाइडेन प्रशासन ने ही भारत को मेजर डिफेंस पार्टनर घोषित किया था। अमेरिका ने पहली बार किसी देश को यह स्टेटस दिया और वह भी भारत को। ओबामा प्रशासन के आखिरी दिनों में लॉजिस्टिक एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA) किया, जो मिलिट्री कोऑपरेशन के तीन फाउंडेशनल पैक्ट्स में से एक था। इसके बाद के दो एग्रीमेंट COMCASA और BECA ट्रम्प प्रशासन ने किए।
किस मुद्दे पर क्या रुख रह सकता है बाइडेन प्रशासन का?
आतंकवाद पर : ओबामा और बाइडेन ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत का साथ दिया। बाइडेन के कैम्पेन ने पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकवाद पर कुछ नहीं बोला, लेकिन भारत को उम्मीद है कि US सीमापार आतंकवाद के खिलाफ अपने परंपरागत नजरिए को ही आगे बढ़ाएगा।
चीन के मुद्दे पर : अमेरिका में इस बात पर सहमति है कि चीन स्ट्रैटेजिक राइवल और एक चेतावनी है। ट्रम्प प्रशासन इस मुद्दे पर खुलकर बोलता था, हो सकता है कि बाइडेन उतने वोकल न दिखाई दें। भारत उम्मीद कर सकता है कि बाइडेन प्रशासन नियम-आधारित और स्थिर इंडो-पेसिफिक पर काम करेगा।
H-1B वीजा परः ट्रम्प प्रशासन इस मुद्दे पर बेहद सख्त था। बाइडेन प्रशासन से उम्मीद है कि वह थोड़ा नरमी बरतेगा। इससे अमेरिका जाकर पढ़ाई, काम और रहने की सोच रखने वाले भारतीयों के लिए नरमी बरती जा सकती है। वैसे, कोरोना ने सॉफ्टवेयर कंपनियों को रिमोट से काम करना सीखा दिया है। लिहाजा, कम संख्या में कर्मचारियों के साथ भी काम हो सकता है।
इंडो-पैसिफिक स्ट्रैटजीः बाइडेन कैम्पेन ने इंडो-पैसिफिक स्ट्रैटजी पर तस्वीर साफ नहीं की है। भारतीय विदेश नीति का केंद्रीय फोकस इसी क्षेत्र पर है। इस क्षेत्र पर लगता है कि बाइडेन नियम-आधारित और व्यवस्था के अनुकूल फैसले लेगा, जो भारत को केंद्र में रखकर लिए जाएंगे।
मानवाधिकार उल्लंघन परः प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रम्प ने सिर्फ अपने देश के बारे में सोचा, बाहर ज्यादा परवाह नहीं की। लेकिन, बाइडेन ऐसा नहीं करने वाले। मानवाधिकार उल्लंघनों पर अमेरिका से सख्त बयान आ सकते हैं। खासकर, जम्मू-कश्मीर को लेकर अनुच्छेद 370 खत्म करने, नए नागरिकता कानून (CAA), असम में NRC लाने जैसे कदमों की आलोचना भी हो सकती है। खासकर, कमला हैरिस मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों की तीखी आलोचना के लिए पहचानी जाती है। ऐसे में उनकी सख्त और तीखी टिप्पणियां आ सकती हैं।
कुल मिलाकर भारत-अमेरिका रिश्तों में क्या बदलाव आएगा?
पिछले 20 साल में अमेरिका के प्रत्येक प्रेसिडेंट -बिल क्लिंटन, जॉर्ज डब्ल्यू बुश, बराक ओबामा और डोनाल्ड ट्रम्प के साथ कई मुद्दों पर भारत के मतभेद रहे, लेकिन इसके बाद भी दोनों देशों के संबंधों में मजबूती आई है। वह भारत से रिश्तों को मजबूती पर फोकस करता रहा है।
इसका मतलब है कि भारत के साथ रिश्तों को लेकर अमेरिका में किसी एक पार्टी की सोच हावी नहीं होती। दोनों पार्टियां भारत से संबंधों मजबूती चाहती हैं। ऐसे में उम्मीद कर सकते हैं कि बाइडेन भी उसी जगह से रिश्ते आगे बढ़ाएंगे, जहां ट्रम्प ने उन्हें छोड़ा था।
कमला हैरिस का वाइस प्रेसिडेंट होना फायदेमंद या नुकसानदायक?
बाइडेन के साथ भारतीय मूल की कमला हैरिस पहली महिला वाइस प्रेसिडेंट बनने वाली हैं। पॉलिसी मेकिंग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी। बाइडेन पहले ही कह चुके हैं कि वे एक टर्म के प्रेसिडेंट है। निश्चित तौर पर 2024 में कमला हैरिस प्रेसिडेंट कैंडिडेट बन सकती हैं।
कमला हैरिस भारत को करीब से समझती है, यह बात फायदेमंद भी है और नुकसानदायक भी। मानकर चलते हैं कि भारतीयों के लिए उनके मन में सॉफ्ट कॉर्नर होगा। इस मुद्दे पर वह आव्रजन संबंधी कानूनों में शिथिलता लाकर भारतीयों के लिए अमेरिका में पढ़ना, नौकरी करना और बसना आसान कर सकती हैं।
लेकिन, हैरिस मानवाधिकार उल्लंघनों की प्रखर आलोचक रही हैं। जिस तरह के हालात भारत में बन रहे हैं और हिंदू बहुसंख्यक के मुद्दों को आगे बढ़ाया जा रहा है, हैरिस के आलोचनात्मक बयान आने में देर नहीं लगेगी। इसी तरह अनुच्छेद 370 रद्द करना, नया नागरिकता कानून लाना या असम में NRC लागू करना उनकी आंखों में किरकिरी बन सकता है। लिहाजा, इस समय कुछ भी कह पाना एक्सपर्ट्स के लिए मुश्किल हो रहा है।
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