भारतीय सैटेलाइट्स पाकिस्तान के 87% इलाके पर नजर रख सकते हैं। यानी कराची की किसी गली से पेशावर के किसी जंगल तक की हलचल भारत देख सकता है। स्पेस टेक्नोलॉजी में भारत की इस बादशाहत को अब चीन अपनी एक चाल से चुनौती देने में लगा है। भारतीय सैटेलाइट्स पर नजर रखने के लिए चीन अब पाकिस्तान को अपना सबसे ताकतवर और एडवांस रडार SLC-18 देने जा रहा है।
भास्कर एक्सप्लेनर में जानेंगे कि क्या हैं SLC-18 रडार और ये भारत के लिए मुसीबत कैसे बन सकता है…
द न्यूज वीक की रिपोर्ट के मुताबिक, चीन ने पाकिस्तान को अपना ताकतवर स्पेस सर्विलांस रडार SLC-18 देने का फैसला किया है। इस रडार को चीन की सरकारी कंपनी चाइना इलेक्ट्रॉनिक्स टेक्नोलॉजी ग्रुप कॉर्पोरेशन यानी CETC ने बनाया है। CETC इससे पहले भी चीनी सेना के लिए कई मिसाइलें, रडार और इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज बना चुकी है।
CETC के डिप्टी जनरल सुन लेई का कहना है, 'इस रडार से मित्र देशों को स्पेस में रॉकेट को लोकेट करने में मदद मिलेगी। मित्र देशों की मदद के लिए ये (रडार) स्पेस टारगेट्स की अपेक्षाकृत सस्ते में निगरानी की सुविधा देता है… इससे लो-ऑर्बिटिंग सैटेलाइट्स की स्थिति की जानकारी मिलती है। ये युद्ध के दौरान पावर बैलेंस में अहम भूमिका निभाएगा।'
लो अर्थ ऑर्बिट यानी LEO सैटेलाइट्स धरती से 200 किलोमीटर से 2000 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित होते हैं। LEO सैटेलाइट्स का इस्तेमाल मुख्य रूप से डेटा कलेक्शन और मिलिट्री निगरानी में किया जाता है। LEO सैटेलाइट्स अपने छोटे साइज और फ्लेक्सिबल ऑर्बिट की वजह से सभी अहम ठिकानों की 360-डिग्री निगरानी कर सकते हैं।
SLC-18 रडार क्या काम करता है?
चीन का SLC-18 रडार बेहद पावरफुल और एडवांस रडार है। इस रडार का इस्तेमाल स्पेस के टारगेट खासतौर पर सैटेलाइट्स डिटेक्ट करने में होता है...
भारत के खिलाफ पाकिस्तान की मदद कैसे करेगा SLC-18?
डिफेंस एक्सपर्ट और भारतीय सेना के रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल जसिंदर सिंह सोढ़ी के मुताबिक, 'चीन का पाकिस्तान को SLC-18 खुफिया रडार बेचना भारत के लिए बड़ी चिंता का विषय है, क्योंकि ये रडार मिलिट्री और खुफिया डेटा कलेक्शन में इस्तेमाल होते हैं। ये रडार धरती की सतह से 2 हजार किलोमीटर ऊपर यानी लो अर्थ ऑर्बिट में स्थित सैटेलाइट्स को ट्रैक करने में सक्षम है। इसका मतलब है कि इस रडार की मदद से पाकिस्तान भारत के मिलिट्री उद्देश्यों समेत सभी सैटेलाइट्स को ट्रैक कर पाएगा।'
आधुनिक युग में दुश्मन देश की सेना और हथियारों की लोकेशन को ट्रैक करने में खुफिया सैटेलाइट्स अहम भूमिका निभाते हैं। सोढ़ी का कहना है, 'ये चीनी रडार इतना एडवांस है कि ये सैटेलाइट का डेटा धरती पर स्थित कमांड सेंटर को भेजता है, जिससे वो तुरंत फैसला ले सके, जो कि युद्ध की स्थिति में निर्णायक साबित हो सकता है।'
अब तक पाकिस्तान जैसे विकासशील देश सैटेलाइट डेटा हासिल करने के लिए चीन जैसे देश का सहारा लेते रहे हैं, लेकिन ये डेटा कई बार सटीक नहीं होता और बहुत महंगा भी होता है। ऐसे में सोढ़ी ने कहा, 'पाकिस्तान की अब तक कोई स्पेस रिसर्च नहीं है और इस मामले में वह पूरी तरह चीन पर निर्भर है। चीन स्पेस रिसर्च के मामले में दुनिया का लीडर बनकर उभरा है और 2045 तक इस सेक्टर में उसके अमेरिका से भी आगे निकल जाने की संभावना है।'
क्या भारत इससे निपटने में सक्षम है? जसिंदर सिंह सोढ़ी ने कहा, 'भारत स्पेस प्रोग्राम और हथियारों के मामले में पाकिस्तान से आगे है, लेकिन इस रडार के मिलने के बाद इसे काउंटर करने के लिए भारत को प्रभावशाली जरूरी कदम उठाने होंगे।'
अभी भारत के सैटेलाइट्स पाकिस्तान के हर कदम पर नजर रख सकते हैं, लेकिन पाकिस्तान के पास अभी ऐसी क्षमता नहीं है। चीन का SLC-18 रडार मिलने पर अब पाकिस्तान भारत की खुफिया सैटेलाइट्स पर नजर रखने में सक्षम हो जाएगा।
एक्सपर्ट का मानना है कि चीनी रडार मिलने पर पाकिस्तान उन्हें अलग-अलग जगहों पर तैनात करके भारतीय सैटेलाइट्स की मूवमेंट पर नजर रख पाएगा और भारतीय सैटेलाइट्स को अपनी खुफिया जानकारी लेने से भी रोक पाएगा।
रडार से सैटेलाइट्स को लेकर मिली जानकारी के अनुसार पाकिस्तान अपनी सेना के मूवमेंट यानी योजना में बदलाव कर पाएगा। कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारतीय सैटेलाइट्स से निपटने के लिए चीन आने वाले समय में पाकिस्तान को एंटी-सैटेलाइट वेपंस भी दे सकता है।
पाकिस्तान को रडार देकर भारत की निगरानी है चीन का मकसद
एयरोस्पेस एंड डिफेंस एनालिस्ट गिरीश लिंगन्ना ने एक इंटरव्यू में कहा, 'SLC-18 रडार की कई टारगेट को ट्रैक करने, बड़ी सर्च रेंज और हर मौसम और 24 घंटे काम करने की क्षमता इसे खास बनाती है। SLC-18 रडार खुफिया सैटेलाइट्स को ट्रैक करने के साथ ही ड्रोन, जहाज और मिसाइलों के डेटा भी दे सकता है।'
लिंगन्ना का कहना है कि इस चीनी रडार को एलन मस्क के स्टारलिंक खुफिया सैटेलाइट्स का काउंटर भी माना जा रहा है। मस्क के खुफिया सैटेलाइट्स ने रूस के खिलाफ यूक्रेन को जानकारी और इंटरनेट उपलब्ध कराने में अहम भूमिका निभाई है।
लिंगन्ना का कहना है, 'अगर पाकिस्तान को ये रडार मिलता है, तो उसके लिए भारतीय सैटेलाइट्स को ट्रैक करना बहुत आसान हो जाएगा। ये पावरफुल रडार लगभग पूरा भारत कवर कर सकता है। इस रडार के जरिए पाकिस्तान के जरिए चीन भारत से जुड़े डेटा हासिल कर सकता है। इससे चीन को महंगी मिसाइल ट्रैकिंग शिप की टेक्नीक से छुटकारा मिल जाएगा, जिसका इस्तेमाल वो भारतीय सेना की संपत्तियों के आसपास की निगरानी के लिए करता है।'
एक्सपर्ट के मुताबिक, सैटेलाइट्स और मिसाइलों के लिए एक और खतरा बनकर उभरे हैं डायरेक्टर एनर्जी वेपंस यानी DEW, जिन्हें एंटी-सैटेलाइट या एंटी-मिसाइल वेपन भी कहा जाता है। अगर इन हथियारों को इस रडार सिस्टम में लगाया गया तो इससे न केवल सैटेलाइट्स की ट्रैकिंग बल्कि उन्हें नष्ट भी किया जा सकता है।
पाकिस्तान को मिसाइलें, फाइटर प्लेन देता रहा है चीन
चीन पाकिस्तान को SLC-18 रडार ही नहीं दे रहा है, बल्कि वह सालों से पाकिस्तान का सबसे बड़ा वेपन सप्लायर रहा है। स्वीडिश थिंकटैंक SIPRI की रिपोर्ट के मुताबिक, 2017 से 2021 के दौरान पाकिस्तान ने अपने कुल हथियारों में से करीब 72% हथियार चीन से खरीदे हैं। इस दौरान चीन के कुल हथियारों में से करीब 47% हथियार पाकिस्तान ने खरीदे।
पिछले साल चीन ने पाकिस्तान को HQ 9/P HIMADS यानी हाई टु मीडियम एयर डिफेंस सिस्टम दिया था, जिसे अक्टूबर 2021 में पाकिस्तान आर्मी ने अुने एयर डिफेंस सिस्टम में शामिल किया था। HQ9 ऐसा एयर डिफेंस सिस्टम है, जो 100 किलोमीटर की रेंज में आने वाले फाइटर प्लेन, क्रूज मिसाइलों और हथियारों समेत कई एयर टारगेट को इंटरसेप्ट कर सकता है।
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