पनडुब्बी से परमाणु बम दागने वाली मिसाइल से डरा चीन:निगरानी के लिए जासूसी जहाज भेजा; 1,000 किमी दूर की बातचीत सुन सकता है वांग-6

5 महीने पहलेलेखक: नीरज सिंह
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भारत ने 2 नवंबर 2022 को बंगाल की खाड़ी में एक इंटरसेप्टर मिसाइल की टेस्टिंग की। 11-12 नवंबर को लॉन्ग रेंज की बैलिस्टिक मिसाइल की टेस्टिंग की जानी थी। इसके लिए NOTAM (नोटिस टू एयरमेन) भी जारी कर दिया गया। यानी टेस्टिंग के दौरान नो-फ्लाई जोन की चेतावनी। यह पनडुब्बी से दागी जाने वाली बैलिस्टिक मिसाइल है जिसकी रेंज 3,200 किलोमीटर है यानी पूरा चीन जद में होगा।

इससे डरे चीन ने अपने मिसाइल ट्रैकिंग जहाज युआन वांग-6 को निगरानी के लिए हिंद महासागर क्षेत्र में दौड़ा दिया। अब एक्सपर्ट कह रहे हैं कि भारत को अपना मिसाइल टेस्ट रोकना पड़ सकता है। चीन ने ऐसा ही खुफिया जहाज 3 महीने पहले श्रीलंका के हंबनटोटा भेजा था। उस वक्त भी भारत ने विरोध किया था।

भास्कर एक्सप्लेनर में जानेंगे कि चीन का खुफिया जहाज करता क्या है, जिसकी वजह से भारत का मिसाइल टेस्ट तक टालना पड़ेगा…

भारत की मिसाइल टेस्टिंग का पता था, फिर भी आया वांग-6

भारत ने 11 से 12 नवंबर तक लॉन्ग रेंज की बैलिस्टिक मिसाइल टेस्ट के लिए बंगाल की खाड़ी से हिंद महासागर तक नो फ्लाई जोन बनाए जाने की घोषणा की है। यानी इस बीच भारत ओडिशा के अब्दुल कलाम द्वीप से मिसाइल टेस्ट करता। इस बीच चीन का जासूसी जहाज इंडोनेशिया के बाली तट पर आ धमका। ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस एक्सपर्ट डेमियन साइमन ने इसकी टाइमिंग पर सवाल उठाए हैं।

भारत ने इसीलिए वेस्ट में श्रीलंका और ईस्ट में इंडोनेशिया के बीच उस एरिया को ब्लॉक कर दिया गया है, जो मिसाइल की टेस्टिंग रेंज में है। 4 नवंबर को चीनी जासूसी शिप युआन वांग-6 ने इंडोनेशिया के लोम्बोक जलडमरूमध्य से इंडियन ओसियन रीजन में प्रवेश किया है। जब से चीनी सेना का ये जासूसी शिप इंडोनेशिया के रास्ते हिंद महासागर में आया है, भारतीय नेवी इस पर करीब से नजर रखे हुए है।

चीन के जासूसी जहाज के आने से भारत बैलिस्टिक मिसाइल का यूजर-ट्रायल टाल सकता है। एक्सपर्ट का मानना है कि चीन ने ऐसे समय में अपने जासूसी जहाज को हिंद महासागर क्षेत्र में भेजा है, जिससे वह मिसाइल की खुफिया जानकारी जैसे उसकी स्पीड, एक्यूरेसी और रेंज को चुराने की कोशिश करता है।

इंटेलिजेंस एक्सपर्ट डेमियन साइमन का कहना है कि इस जासूसी शिप की तैनाती चीन के सैटलाइट लॉन्चिंग डेट से भी मैच करती है। यह सैटेलाइट 15 से 20 नवंबर के बीच बंगाल की खाड़ी के ऊपर उड़ान भरेगा।

इससे पहले चीन ने 2022 में जब लॉन्ग मार्च 5B रॉकेट लॉन्च किया था, तब युआन वांग-5 शिप निगरानी मिशन पर निकला था। हाल ही में यह चीन के तियांगोंग अंतरिक्ष स्टेशन के पहले लैब मॉड्यूल की लॉन्चिंग की समुद्री निगरानी में भी शामिल था।

K-4 के सफल परीक्षण से भारत चीन के किसी भी शहर पर हमला करने में सक्षम हो जाएगा

डिफेंस एक्सपर्ट लेफ्टिनेंट कर्नल (रिटायर) जेएस सोढी कहते हैं कि भारत 11-12 नवंबर 2022 को बंगाल की खाड़ी में अपना बैलिस्टिक मिसाइल परीक्षण करने वाला है। सभी संभावनाओं में परीक्षण K-4 सबमरीन बैलिस्टिक मिसाइल का होगा। हालांकि आधिकारिक तौर पर परीक्षण की जाने वाली मिसाइल के नाम की पुष्टि अभी तक नहीं हुई है।

K-4 मिसाइल की मारक क्षमता 3500 किलोमीटर है और इसे भारत की अकेली परमाणु पनडुब्बी INS अरिहंत पर लोड किया जाएगा। यह परीक्षण अत्यधिक महत्व रखता है क्योंकि वर्तमान में आईएनएस अरिहंत के -12 पनडुब्बी बैलिस्टिक मिसाइल से भरा हुआ है, जो 750 किलोमीटर की दूरी पर है।

K-4 के सफल परीक्षण से भारत चीन के किसी भी शहर पर हमला करने में सक्षम हो जाएगा। इससे चीन चिंतित है और इसलिए उसने भारत द्वारा मिसाइल परीक्षण की निगरानी के लिए हिंद महासागर में अपना जासूसी जहाज युआन वांग 6 भेजा है। भारत चीन द्वारा उत्पन्न इस स्थिति से निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार है और उसे अपना मिसाइल परीक्षण जारी रखना चाहिए।

युआन वांग-6 शिप को चीन की सेना ऑपरेट करती है

चीन के पास इस तरह के 7 जासूसी शिप हैं, जो पूरे प्रशांत, अटलांटिक और हिंद महासागर में काम करने में सक्षम हैं। ये शिप जासूसी कर बीजिंग के लैंड बेस्ड ट्रैकिंग स्टेशनों को पूरी जानकारी भेजते हैं। चीन युआन वांग क्लास शिप के जरिए सैटेलाइट, रॉकेट और इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल की लॉन्चिंग को ट्रैक करता है।

अमेरिकी रक्षा विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक, इस शिप को चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी यानी PLA की स्ट्रैटजिक सपोर्ट फोर्स यानी SSF ऑपरेट करती है। SSF थिएटर कमांड लेवल का आर्गेनाइजेशन है। यह PLA को स्पेस, साइबर, इलेक्ट्रॉनिक, इंफॉर्मेशन, कम्युनिकेशन और साइकोलॉजिकल वारफेयर मिशन में मदद करती है।

चीन का जासूसी शिप युआन वांग-6।
चीन का जासूसी शिप युआन वांग-6।

एयर डिफेंस सिस्टम की रेंज में आने से पहले मिसाइल की जानकारी

युआन वांग-6 मिलिट्री नहीं बल्कि पावरफुल ट्रैकिंग शिप है। ये शिप अपनी आवाजाही तब शुरू करते हैं, जब चीन या कोई अन्य देश मिसाइल टेस्ट कर रहा होता है। शिप में हाई-टेक ईव्सड्रॉपिंग इक्विपमेंट (छिपकर सुनने वाले उपकरण) लगे हैं। इससे यह 1 हजार दूर हो रही बातचीत को सुन सकता है।

मिसाइल ट्रैकिंग शिप में रडार और एंटीना से बना इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम लगा होता है। ये सिस्टम अपनी रेंज में आने वाली मिसाइल को ट्रैक कर लेता है और उसकी जानकारी एयर डिफेंस सिस्टम को भेज देता है। यानी, एयर डिफेंस सिस्टम की रेंज में आने से पहले ही मिसाइल की जानकारी मिल जाती है और हमले को नाकाम किया जा सकता है।

अगस्त में श्रीलंका में रुका था चीन का जासूसी जहाज

इस साल अगस्त में युआन वांग क्लास का जहाज युआन वांग-5 साउथ चाइना सी लौटने से पहले श्रीलंकाई के हंबनटोटा बंदरगाह पर रुका था। अगस्त की शुरुआत में भारत ने इस स्पाई शिप को लेकर श्रीलंका के सामने विरोध दर्ज कराया था।

इसपर श्रीलंका के रक्षा मंत्रालय ने पहले चीनी शिप के हंबनटोटा आने की खबरों को खारिज कर दिया था। लेकिन बाद में श्रीलंका ने इसे हंबनटोटा पोर्ट पर 16 से 22 अगस्त तक रुकने की अनुमति दे दी थी। भारत के साथ ही अमेरिका ने भी हंबनटोटा में चीनी जासूसी जहाज की मौजूदगी पर चिंता जताई थी।

उस वक्त एक्सपर्ट ने कहा था कि हंबनटोटा पोर्ट पर पहुंचने के बाद इस शिप की पहुंच दक्षिण भारत के प्रमुख सैन्य और परमाणु ठिकाने जैसे कलपक्कम, कुडनकुलम तक होगी। साथ ही केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के कई पोर्ट यानी बंदरगाह चीन के रडार पर होंगे। कुछ एक्सपर्ट ने कहा था कि चीन भारत के मुख्य नौसैना बेस और परमाणु संयंत्रों की जासूसी के लिए इस जहाज को श्रीलंका भेज रहा है।

16 अगस्त 2022 को श्रीलंका के हंबनटोटा पोर्ट पर रुका चीन का जासूसी शिप युआन वांग-5।
16 अगस्त 2022 को श्रीलंका के हंबनटोटा पोर्ट पर रुका चीन का जासूसी शिप युआन वांग-5।

भारत के लिए श्रीलंका का हंबनटोटा पोर्ट चिंता का सबब बना

भारत के लिए सबसे बड़ी रणनीतिक चिंता यह है कि चीन श्रीलंका के हंबनटोटा पोर्ट का उपयोग तेजी से ऐसी जासूसी गतिविधियों के लिए कर रहा है। श्रीलंका ने कर्ज न चुका पाने के बाद साल 2017 में साउथ में स्थित हंबनटोटा पोर्ट को 99 साल की लीज पर चीन को सौंप दिया था।

ये पोर्ट एशिया से यूरोप के बीच मुख्य समुद्री व्यापार मार्ग के पास स्थित है। जो चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव प्रोजेक्ट के लिए काफी महत्वपूर्ण है। भारत और अमेरिका ने हमेशा ये चिंता जाहिर की है कि 1.5 अरब डॉलर की लागत से तैयार हुआ ये बंदरगाह चीन का नौसेना बेस बन सकता है।

भारत के सिक्योरिटी एक्सपर्ट ने कई बार इसकी आर्थिक व्यवहार्यता (इकोनॉमिक फीजिबिलिटी) पर सवाल उठाया है। साथ ही कहा है कि यह चीन की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स स्ट्रैटजी में सही बैठता है। इसके तहत चीन जमीन के साथ ही समुद्र से भी हिंद महासागर के जरिए भारत को घेर सकता है।

हंबनटोटा पोर्ट का निर्माण 2008 में शुरू हुआ था, जिसके लिए चीन ने श्रीलंका को 1.5 अरब डॉलर का कर्ज दिया था।
हंबनटोटा पोर्ट का निर्माण 2008 में शुरू हुआ था, जिसके लिए चीन ने श्रीलंका को 1.5 अरब डॉलर का कर्ज दिया था।

भारत समेत इन 5 देशों के पास हैं मिसाइल ट्रैकिंग शिप

ध्रुव को DRDO, नेशनल टेक्निकल रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन और भारतीय नेवी ने मिलकर बनाया है। इंटर कॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल को ट्रैक करने के लिए ये शिप बेहद अहम है
ध्रुव को DRDO, नेशनल टेक्निकल रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन और भारतीय नेवी ने मिलकर बनाया है। इंटर कॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल को ट्रैक करने के लिए ये शिप बेहद अहम है

मिसाइल ट्रैकिंग शिप भारत समेत सिर्फ इन 5 देशों चीन, फ्रांस, रूस और अमेरिका के पास है। ट्रैकिंग शिप बनाने का कॉन्सेप्ट सबसे पहले अमेरिका ने शुरू किया था। अमेरिका ने अपने मिसाइल प्रोग्राम को सपोर्ट करने के लिए दूसरे विश्वयुद्ध के बाद बचे हुए जहाजों को ट्रैकिंग शिप का रूप दे दिया था। अमेरिका ने उसके बाद से ही 25 से ज्यादा ट्रैकिंग शिप बनाए।

भारत ने 10 सितंबर 2021 को अपना पहला मिसाइल ट्रैकिंग शिप ‘ध्रुव’ लॉन्च किया था। ध्रुव एक्टिव इलेक्ट्रॉनिक स्‍कैन्‍ड अरे रडार्स (AESA) से लैस है। AESA को रडार टेक्‍नोलॉजी की सबसे उन्नत तकनीक माना जाता है। यह रडार अलग-अलग ऑब्‍जेक्‍ट्स का पता लगाने के साथ ही दुश्‍मन की सैटेलाइट्स पर भी नजर रखता है। AESA तकनीक की मदद से किसी मिसाइल की क्षमता और उसकी रेंज का भी पता लगाया जा सकता है।

ध्रुव परमाणु मिसाइल को ट्रैक करने के साथ-साथ बैलिस्टिक मिसाइल और लैंड बेस्ड सैटेलाइट्स को भी ट्रैक कर सकता है। ये समुद्र में 2 हजार किलोमीटर तक 360 डिग्री नजर रख सकता है। शिप में कई रडार का कॉम्बिनेशन सिस्टम लगा है जो एक साथ मल्टिपल टारगेट पर नजर रख सकता है।

ध्रुव कमांड, कंट्रोल और कम्युनिकेशन सिस्टम (C3) और इलेक्ट्रॉनिक सपोर्ट मेजर एंटीना (ESM) तकनीक से लैस है। ये तकनीक दूसरे जहाजों से निकलने वाले इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन को कैच कर उनकी लोकेशन का पता लगा सकती है।

ध्रुव के रडार डोम में X- बैंड रडार भी लगे हुए हैं, जो सटीक स्कैनिंग का काम कर सकते हैं। साथ ही लॉन्ग रेंज के लिए S-बैंड रडार है। ये हाई रिजॉल्यूशन, जैमिंग रेसिस्टेंस और लॉन्ग रेंज स्कैनिंग के लिए सबसे आधुनिक तकनीक है। ध्रुव से चेतक और इसी तरह के मल्टीरोल हेलिकॉप्टर को भी ऑपरेट किया जा सकता है।

अब चलिए इस पोल में हिस्सा लेते हैं...

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