वो ऐतिहासिक भाषण, जिसने पाकिस्तान के 2 टुकड़े किए:भारत-पाक जंग हुई, 13 दिन में 90 हजार सैनिकों ने घुटने टेके और बांग्लादेश बना

3 महीने पहले
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52 साल पहले की बात है। जगह थी ढाका का रेसकोर्स मैदान। 10 लाख लोगों की भीड़ जुटी थी। सबके हाथ में बांस के डंडे थे, जो पाक सेना से बचाव के लिए नहीं बल्कि प्रतिरोध का प्रतीक थे। भीड़ आजादी के पक्ष में नारे लगा रही थी।

पाकिस्तानी सेना के हेलिकॉप्टर भीड़ का जायजा लेने के लिए चक्कर लगा रहे थे। तभी मंच पर आवामी लीग के नेता शेख मुजीब-उर-रहमान आते हैं। अपने भाषण में वो पाकिस्तान से आजादी का आह्वान करते हैं।

दरअसल, यह ऐतिहासिक भाषण आज ही के दिन यानी 7 मार्च 1971 को दिया गया था। इसी भाषण के साथ पाकिस्तान के 2 टुकड़े होने की नींव रखी गई।

आज हम बताएंगे कि उस वक्त पाकिस्तान में क्या माहौल था और कैसे बांग्लादेश आजाद हुआ?

साल 1947 में भारत से अलग होकर पाकिस्तान बनता है। पाकिस्तान में उस वक्त दो प्रमुख क्षेत्र- पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान शामिल थे। पूर्वी पाकिस्तान में देश की 56% आबादी रहती थी, जो बांग्ला भाषा बोलती थी।

वहीं पश्चिमी पाकिस्तान में पंजाबी, सिंधी, बलूची, पश्तो और अन्य स्थानीय भाषाओं के बोलने वाले थे। साथ ही भारत से पलायन करने वाले मुसलमान भी थे, जो उर्दू बोलते थे। पाकिस्तान की आबादी में उनका ​हिस्सा सिर्फ 3% था।

फरवरी 1948 में पाकिस्तान की असेंबली में एक बंगाली सदस्य प्रस्ताव पेश करते हैं। वो कहते हैं कि असेंबली में उर्दू के साथ-साथ बांग्ला का भी इस्तेमाल हो।

इस पर PM लियाकत अली खान ने कहा कि पाकिस्तान उपमहाद्वीप के करोड़ों मुसलमानों की मांग पर बना है और मुसलमानों की भाषा उर्दू है।

अगले ही महीने यानी मार्च 1948 में पाकिस्तान के संस्थापक कायदे आजम मोहम्मद अली जिन्ना ने जब ढाका का दौरा किया, तो उन्होंने भी वहां दो टूक कहा कि मैं यह साफ कर देना चाहता हूं कि पाकिस्तान की राजकीय भाषा केवल उर्दू होगी।

मुद्दा सिर्फ भाषा का नहीं था। पश्चिमी पाकिस्तान में मौजूद सरकार पूर्वी हिस्से की हर तरह से अनदेखी करती थी, चाहें वो आर्थिक मामला हो या उनकी राजनीतिक मांगें।

पूर्वी पाकिस्तान में ये नाराजगी बढ़ती ही रही और फिर एक नेता शेख मुजीब-उर-रहमान ने अवामी लीग नाम की पार्टी बनाई और पाकिस्तान के अंदर स्वायत्तता की मांग कर दी।

1969 में उधर जनरल याह्या खान ने फील्ड मार्शल अयूब खान से पाकिस्तान की बागडोर अपने हाथ में ली थी और अगले साल चुनाव का ऐलान किया गया।

साल 1952 में भाषा आंदोलन के दौरान पूर्वी पाकिस्तान अब बांग्लादेश की लड़कियां।
साल 1952 में भाषा आंदोलन के दौरान पूर्वी पाकिस्तान अब बांग्लादेश की लड़कियां।

शेख मुजीब-उर-रहमान को पाकिस्तान का पहला लोकतांत्रिक प्रधानमंत्री बनना था

पाकिस्तान की आजादी के 23 साल बाद पहली बार साल 1970 में आम चुनाव हुआ। कुल 313 सीटों में से 167 सीटों पर आवामी लीग जीत गई।

आवामी लीग का दबदबा पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश में था। शेख मुजीब-उर-रहमान को पाकिस्तान का पहला लोकतांत्रिक प्रधानमंत्री बनना था, लेकिन जुल्फिकार अली भुट्‌टो की मदद से सेना ने सत्ता देने से इनकार कर दिया।

मार्च 1971 तक आवामी लीग का काडर सड़कों पर था, प्रदर्शन हो रहे थे, हड़तालें चल रही थीं। पाकिस्तान की सेना खुलेआम बर्बरता कर रही थी।

इसी बीच 7 मार्च को 1971 को ढाका के रेसकोर्स मैदान से शेख मुजीब ऐतिहासिक भाषण पाकिस्तान से आजादी का आह्वान करते हैं।

शेख मुजीब कहते हैं कि इस बार का संघर्ष, हमारी स्वतंत्रता के लिए संघर्ष है। शेख मुजीब के भाषण का एक-एक शब्द पाकिस्तान के खिलाफ ललकार थी।

बाद में इस भाषण को भारतीय उपमहाद्वीप में दिए गए सभी राजनीतिक भाषणों में सबसे ऊंची पायदान पर रखा गया।

2017 में UNESCO ने शेख मुजीब के 7 मार्च 1971 के भाषण को विश्व के दस्तावेजी विरासत के रूप में मान्यता दी।
2017 में UNESCO ने शेख मुजीब के 7 मार्च 1971 के भाषण को विश्व के दस्तावेजी विरासत के रूप में मान्यता दी।

पाकिस्तान ने ऑपरेशन सर्चलाइट चलाकर शेख मुजीब को जेल भेज दिया

दरअसल, इस भाषण के बाद पाकिस्तान के राष्ट्रपति याह्या खान ढाका पहुंचे थे। 23 मार्च को जब शेख उनसे मिलने पहुंचे तो उनकी कार में बांग्लादेश का झंडा लगा था।

इसके दो दिन बाद 25 मार्च को ऐसा लगा कि पूरे शहर पर पाक सेना ने हमला बोल दिया हो, यह ऑपरेशन सर्चलाइट था।

‘फ्रॉम रेबेल टु फाउंडिंग फादर’ में सैयद बदरुल अहसन लिखते हैं कि शेख की सबसे बड़ी बेटी हसीना ने उन्हें बताया कि जैसे ही गोलियों की आवाज सुनाई दी, शेख मुजीब ने वायरलेस संदेश भेज बांग्लादेश की आजादी की घोषणा कर दी।

रात को 1 बजे पाकिस्तानी सेना का शेख मुजीब के घर पहुंचती है। सेना का एक अफसर लाउडस्पीकर से शेख को सरेंडर करने के लिए कहता है।

शेख खुद घर से बाहर निकलते हैं। इसके बाद पाकिस्तानी सैनिक बंदूकों के बट से धक्का देते हुए मुजीब को जीप में बैठाया और वहां से निकल गए।

इसके बाद वायरलेस पर एक संदेश भेजा गया,'बिग बर्ड इन केज, स्मॉल बर्ड्स हैव फ्लोन।' यानी बड़ी चिड़िया पिंजड़े में हैं, छोटी चिड़िया उड़ गई हैं। पाकिस्तान में उन्हें मियावाली जेल में एक कालकोठरी में रखा गया।

पाकिस्तानी सैनिक के अत्याचार से निपटने को बांग्लादेश मुक्ति वाहिनी नाम की सेना बनाई

सेना के अत्याचार से स्थानीयों में रोष व्याप्त हुआ और उन्होंने अपनी बांग्लादेश मुक्ति वाहिनी नाम की सेना बना ली। पाकिस्तान में गृह युद्ध छिड़ गया।

मुक्तिवाहिनी दरअसल पाकिस्तान से बांग्लादेश को आजाद कराने वाली पूर्वी पाकिस्तान की सेना थी। मुक्तिवाहिनी में पूर्वी पाकिस्तान के सैनिक और हजारों नागरिक शामिल थे।

गिरफ्तारी और टॉर्चर से बचने के लिए बड़ी संख्या में अवामी लीग के सदस्य भागकर भारत आ गए। शुरू में पाकिस्तानी सेना की चार इन्फैंट्री ब्रिगेड अभियान में शामिल थी लेकिन बाद में उसकी संख्या बढ़ती चली गई।

भारत में शरणार्थी संकट बढ़ने लगा। एक साल से भी कम समय के अंदर बांग्लादेश से करीब 1 करोड़ शरणार्थियों ने भागकर भारत के पश्चिम बंगाल में शरण ली।

इससे भारत पर पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई करने का दबाव बढ़ गया। पाकिस्तानी सेना द्वारा लगभग दो लाख महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया था। करीब 20 से 30 लाख लोग मारे गए थे।

बांग्लादेश युद्ध में जीत का इजहार करते मुक्ति वाहिनी के सैनिक।
बांग्लादेश युद्ध में जीत का इजहार करते मुक्ति वाहिनी के सैनिक।

मार्च 1971 में इंदिरा गांधी ने पूर्वी बंगाल के लोगों की मदद की बात कही

माना जाता है कि मार्च 1971 के अंत में भारत सरकार ने मुक्तिवाहिनी की मदद करने का फैसला लिया। 31 मार्च 1971 को इंदिरा गांधी ने भारतीय सांसद में भाषण देते हुए पूर्वी बंगाल के लोगों की मदद की बात कही थी।

29 जुलाई 1971 को भारतीय सांसद में सार्वजनिक रूप से पूर्वी बंगाल के लड़कों की मदद करने की घोषणा की गई। भारतीय सेना ने अपनी तरफ से तैयारी शुरू कर दी। इस तैयारी में मुक्तिवाहिनी के लड़ाकों को प्रशिक्षण देना भी शामिल था।

पूर्वी पाकिस्तान संकट विस्फोटक स्थिति तक पहुंच गया। पश्चिमी पाकिस्तान में बड़े-बड़े मार्च हुए और भारत के खिलाफ सैन्य कार्रवाई की मांग की गई।

दूसरी तरफ भारतीय सैनिक पूर्वी पाकिस्तान की सीमा पर चौकसी बरते हुए थे। 23 नवंबर, 1971 को पाकिस्तान के राष्ट्रपति याह्या खान ने पाकिस्तानियों से युद्ध के लिए तैयार रहने को कहा।

पाकिस्तान को भारत पर हमला करना भारी पड़ा

3 दिसंबर की शाम का वक्त था। पाकिस्तान ने भारत के आधा दर्जन से ज्यादा एयरपोर्ट्स पर अचानक बमबारी शुरू कर दी। फिर क्या था भारतीय सेना ने भी एक साथ दो तरफ से धावा बोला।

सबसे पहले कराची के नेवी बेस को उड़ाया और बांग्लादेश में दाखिल हो गई। युद्ध हुआ और पाकिस्तान को इसका अंदाजा भी नहीं था कि 15 दिसंबर तक मात्र 13 दिन के भीतर भारतीय सैनिक बांग्लादेश की राजधानी ढ़ाका तक आ जाएंगे।

हालांकि, जब भारतीय सैनिकों की टुकड़ी ढाका के पास पहुंची तो उसमें मात्र 3000 सैनिक थे। इसी वक्त ढाका को घेर कर खड़े पाकिस्तानी सैनिकों की संख्या थी 26 हजार 400।

व्यावहारिक तौर पर देखा जाए तो स्थिति थोड़ी चिंताजनक थी, लेकिन सेना के सूझबूझ से जीत संभव हो गई। 13 दिन में भारत ने पाकिस्तान को घुटनों के बल ला दिया।

भारत के सामने पाकिस्तान के 90 हजार सैनिकों के सरेंडर का दिन…

पाकिस्तानी मेजर जनरल फरमान अली (पहली लाइन में पहला शख्स) अन्य आर्मी ऑफिसर्स के साथ हथियार डालते हुए।
पाकिस्तानी मेजर जनरल फरमान अली (पहली लाइन में पहला शख्स) अन्य आर्मी ऑफिसर्स के साथ हथियार डालते हुए।

16 दिसंबर 1971। सुबह 9 बजकर 15 मिनट। जनरल जैकब को दिल्ली से जनरल मानेक शॉ का मैसेज मिला। मैसेज था आत्मसमर्पण की तैयारी कराने ढाका जाओ।

16 की दोपहर तक मेजर जनरल जैकब सेरेंडर के एग्रीमेंट का ड्राफ्ट लेकर ढाका पहुंचे। एयरपोर्ट पर UN के प्रतिनिधि मौजूद थे। जैकब उन्हें नजर अंदाज करके आगे बढ़ गए।

जैकब जब पाकिस्तानी सेना के लीडर जनरल नियाजी के सामने पहुंचे तब नियाजी कुछ अधिकारियों के साथ सोफे पर बैठे थे और वहां भद्दे चुटकुलों पर हंसी मजाक चल रहा था। जनरल जैकब ने घुसते ही माहौल अपने पक्ष में किया।

वहां बैठे एक अन्य भारतीय मेजर जनरल नागरा को लगभग निर्देश देते हुए कहा कि वो एक मेज और दो कुर्सियों की व्यवस्था करें, अब सरेंडर का समय आ गया है। जनरल जैकब ने नियाजी के सामने सरेंडर एग्रीमेंट पढ़ दिया।

ये सुनते ही जनरल नियाजी ने कहा, 'किसने कहा कि मैं सरेंडर कर रहा हूं? आप तो यहां बस सीजफायर की शर्तों और सेना वापसी पर बात करने आए हैं।'

नियाजी ने साइन किया, वर्दी पर लगे बिल्ले हटाए और रिवाल्वर निकालकर जनरल अरोड़ा को सौंप दी

जनरल एए खान नियाजी ढाका में सरेंडर के दस्तावेजों पर साइन करते हुए।
जनरल एए खान नियाजी ढाका में सरेंडर के दस्तावेजों पर साइन करते हुए।

रेसकोर्स के मैदान में अरोड़ा ने पहले गार्ड ऑफ ऑनर लिया उसके बाद अरोड़ा और नियाजी मेज पर बैठ कर आत्मसमर्पण के दस्तावेजों की 5 प्रतियों पर साइन किया।

कमाल तो ये कि नियाजी के पास कलम भी नहीं थी। उन्हें एक भारतीय अफसर ने अपनी कलम दी। नियाजी ने साइन किया। वर्दी पर लगे बिल्ले हटाए और अपनी रिवाल्वर निकालकर जनरल अरोड़ा को सौंप दी।

ये समारोह 15 मिनट में खत्म हो गया। इसी के साथ पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों ने अपने हथियार रख दिए। उस वक्त घड़ी में 4:55 मिनट हो रहे थे।

इसके बाद जनरल अरोड़ा ने सूचना भिजवाई और मानेक शॉ ने देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को सूचना दी। ये उसी ‘विजय दिवस’ की सूचना थी जो इंदिरा गांधी को एक इंटरव्यू के बीच में मिली थी।

इसके बाद जनरल जैकब ने नियाजी को किनारे ले जाकर समझाया। कहा, ‘अगर समर्पण नहीं करते तो मैं तुम्हारे परिजनों की सुरक्षा की जिम्मेदारी नहीं ले सकता।

हथियार डालने पर ही मैं सुनिश्चित कर पाऊंगा कि उन्हें कोई नुकसान न पहुंचे। मैं तीस मिनट का समय दे रहा हूं। नहीं मानें तो मैं ढाका पर बमबारी का आदेश दे दूंगा।’

आज भी भारत में 16 दिसंबर को विजय दिवस के तौर पर मनाया जाता है। शेख मुजीब पाकिस्तान से लंदन के रास्ते दिल्ली आए। उन्होंने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मुलाकात की।

इस दौरान इंदिरा गांधी के साथ ही राष्ट्रपति वीवी गिरि, केंद्रीय मंत्री, सेना के तीनों अंगों के प्रमुख और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री सिद्धार्थशंकर राय दिल्ली के हवाई अड्डे पर मौजूद थे।

मुजीब ने सेना के कैंटोनमेंट मैदान पर जनसभा में बांग्लादेश के स्वाधीनता संग्राम में मदद करने के लिए भारत की जनता को धन्यवाद दिया।

दिल्ली में दो घंटे रुकने के बाद जब शेख ढाका पहुंचे तो दस लाख लोग उनके स्वागत में ढाका हवाई अड्डे पर मौजूद थे।

इंदिरा गांधी के साथ शेख मुजीब-उर-रहमान।
इंदिरा गांधी के साथ शेख मुजीब-उर-रहमान।
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