सबसे पहले तीन फैक्ट जान लीजिए…
पहलाः भारत में हर साल भीषण गर्मी की वजह से 83 हजार लोगों की मौत होती है।
दूसराः भारत में विकराल ठंड से हर साल 6.50 लाख लोगों की मौत होती है।
तीसराः आपदा और क्लाइमेट चेंज की वजह से भारत में हर साल 50 लाख लोगों को पलायन करना पड़ता है।
एक्सट्रीम वेदर की मार झेल रहे भारत के लोगों का इसमें कोई दोष नहीं है। भारत ने जर्मनी के बोन शहर में हुई क्लाइमेट चेंज कॉन्फ्रेंस में इन सबके लिए अमीर देशों को जिम्मेदार ठहराया है और इसके लिए होने वाले खर्च की भरपाई करने को कहा है।
अमेरिकी जैसे अमीर देशों के सामने भारत का स्टैंड है कि ‘आपकी वजह से दुनिया में गर्मी बढ़ी है। बाढ़ और सूखे के लिए भी आप जिम्मेदार हैं। इसलिए अब आपको इसकी भरपाई भी करनी होगी।’
आज के भास्कर एक्सप्लेनर में जानते हैं कि अमेरिका जैसे अमीर देशों के किए धरे को भारत के लोग कैसे भुगत रहे हैं?
दुनिया की 10% आबादी 52% कार्बन छोड़ती है
दुनिया के ताकतवर देश क्लाइमेट चेंज का हवाला देकर भारत पर कम कोयला इस्तेमाल के लिए दबाव बनाते रहे हैं, लेकिन 6 जून से 16 जून तक जर्मनी के बोन शहर में आयोजित क्लाइमेट चेंज कांफ्रेंस में भारत ने अमीर देशों को आइना दिखाया है।
भारत ने कहा कि दुनिया की 10% आबादी 52% कार्बन छोड़ने के लिए जिम्मेदार है। द लैंसेंट के मुताबिक अकेले अमेरिका 40% कार्बन छोड़ता है।
इन्हीं वजहों से दुनिया भर के लोगों को क्लाइमेट चेंज, हीटवेव, बाढ़ और सूखे का सामना करना पड़ रहा है। इन एक्सट्रीम वेदर कंडीशंस से निपटने के लिए भारत में हर साल करीब 7 लाख करोड़ रुपए खर्च होते हैं। भारत ने अमीर देशों से इस खर्च की भरपाई की मांग की है।
भारत ने कहा कि कार्बन की समस्या को खत्म करने के और बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने के लिए विकसित देशों का यह पैसा विकासशील देशों के लिए मददगार साबित होगा।
7.80 लाख करोड़ देने का वादा करके मुकरे अमीर देश
विकसित देशों ने 2009 की कोपनहेगन समिट में भारत जैसे विकासशील देशों को जुर्माना के तौर पर 2020 तक सालाना 7.80 लाख करोड़ रुपए देने का वादा किया था। इस फंड का इस्तेमाल विकासशील देशों के कार्बन उत्सर्जन को कम करने में किया जाना था, लेकिन विकसित देश अपने वादे से मुकर गए, इसलिए ऐसा नहीं हो सका।
द हिंदू की रिपोर्ट में प्रोफेसर नवरोज के. दुबाश ने लिखा- क्लाइमेट फाइनेंस से मशहूर इस फंड से 2022 तक 7 हजार करोड़ डॉलर से अधिक खर्च होने थे, लेकिन 4 हजार करोड़ डॉलर ही खर्च हो पाया, वो भी ठीक तरह से नहीं। भारत को अब तक इस मद में पैसा न के बराबर मिला है।
कोयले पर निर्भरता को खत्म करने के लिए बड़े बदलावों और तकनीकों की जरूरत है। इसमें सबसे बड़ी रुकावट 90% से ज्यादा कार्बन छोड़ने के लिए जिम्मेदार विकसित देशों से जुर्माने के तौर पर फंडिंग न मिलना भी है। यही वजह है कि भारत बिजली बनाने में अब भी कोयले का इस्तेमाल कर रहा है।
ग्राफिक्स में देखें इसका असर कैसे CO2 उत्सर्जन पर भी देखने को मिलता है…
भारत में बने सामानों का विकसीत देशों में 50% खपत
भारत और चीन को कोयला इस्तेमाल करने से रोकने वाले विकसित देश यहां तैयार होने वाले ज्यादातर प्रोडक्ट का इस्तेमाल खुद ही करते हैं। इन समानों के बनाने में विकासशील और गरीब देश कोयला का उपयोग करते हैं।
ऐसे में ग्लोबल नॉर्थ के विकसित देशों को भारत पर दबाव बनाने के साथ ही अपना कंजम्पशन कम करना चाहिए। विकसित देशों में पूरी दुनिया की केवल 24% आबादी रहती है, जबकि वहां चीजों का इस्तेमाल दुनिया की खपत का 50% से 90% है।
अब बात कंजम्पशन की आई है तो ग्राफिक्स में देखिए कि विकसित देशों में लोग कितना ज्यादा चीजों का इस्तेमाल करते हैं...
COP-26 की बैठक में भी ओजोन में छेद के लिए भारत को बताया था जिम्मेदार चीन से जवाब तक मांग लिया था।
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