महाराष्ट्र के साथ 67 साल पुराना बेलगावी सीमा विवाद कर्नाटक को काफी महंगा पड़ रहा है। कर्नाटक अपने 865 गांवों को बचाने के लिए हर रोज वकीलों पर 60 लाख रुपए खर्च कर रहा है। इसमें होटल में ठहरने और हवाई यात्रा का खर्च शामिल नहीं है। मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही है।
भास्कर एक्सप्लेनर में जानेंगे कि कर्नाटक की पैरवी करने वाले इतने महंगे वकील कौन हैं? साथ ही विवाद की पूरी कहानी, जिसे दोनों राज्यों में BJP सरकार होने के बावजूद नहीं सुलझाया जा सका।
18 जनवरी को कर्नाटक सरकार की ओर से जारी आदेश के मुताबिक, सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी के नेतृत्व वाली कानूनी टीम को सुप्रीम कोर्ट में पेश होने के लिए 60 लाख रुपए मिलेंगे। लीगल टीम में एडवोकेट श्याम दीवान, उदय होल्ला, मारुति बी जिराली, वीएन रघुपति और राज्य के एडवोकेट जनरल प्रभुलिंग नवदगी शामिल हैं।
हालांकि, इस फीस में एडवोकेट के स्टार होटलों में रुकने और बिजनेस और एग्जिक्यूटिव क्लास में हवाई यात्रा करने का खर्च शामिल नहीं है। आदेश में कहा गया है कि होटल और हवाई यात्रा की व्यवस्था सरकार खुद करेगी या फिर बाद में इनका भुगतान करेगी।
महाराष्ट्र सरकार ने बेलगावी और कर्नाटक के लगभग 865 गांवों पर दावा करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। कोर्ट पहले यह देखेगा कि यह मामला सुनवाई के लायक है या नहीं। इसके लिए कर्नाटक पहले से ही अपना मजबूत डिफेंस तैयार कर रहा है।
अब जानते हैं कि महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच सीमा को लेकर विवाद क्या है? इसकी शुरुआत भारत की आजादी से भी पहले होती है…
1947 से पहले महाराष्ट्र और कर्नाटक अलग राज्य नहीं थे। उस वक्त बॉम्बे प्रेसिडेंसी और मैसूर स्टेट था। आज के कर्नाटक के कई इलाके उस वक्त बॉम्बे प्रेसिडेंसी का हिस्सा थे। जैसे आज का बीजापुर, बेलगावी पहले बेलगाम, धारवाड़ और उत्तर कन्नड़ जिले बॉम्बे प्रेसिडेंसी का हिस्सा थे।
1956 में बीजापुर, धारवाड़, गुलबर्गा, बीदर के साथ बेलगाम जिले को तत्कालीन मैसूर राज्य की सीमाओं को बढ़ाने के लिए मैसूर राज्य में शामिल किया गया था। बॉम्बे प्रेसिडेंसी में मराठी, गुजराती और कन्नड़ भाषाएं बोलने वाले लोग रहा करते थे।
आजादी के बाद राज्यों का बंटवारा शुरू हुआ। बेलगाम में मराठी बोलने वालों की ज्यादा आबादी थी। बेलगाम नगरीय निकाय ने 1948 में मांग की कि इसे मराठी बहुल होने के चलते प्रस्तावित महाराष्ट्र राज्य का हिस्सा बनाया जाए।
उसी समय बेलगाम को महाराष्ट्र में मिलाने की मांग के साथ महाराष्ट्र इंटीग्रेशन कमेटी यानी महाराष्ट्र एकीकरण कमेटी नाम का समूह बना। कमेटी की मांग थी कि कर्नाटक में आने वाले लगभग 865 मराठी भाषी गांवों को महाराष्ट्र का हिस्सा बनाया जाए। इनमें से अधिकतर गांव बेलगाम जिले का हिस्सा थे।
बेलगाम शहर में भी मराठी भाषी ज्यादा हैं इसलिए बेलगाम को भी महाराष्ट्र में मिलाने की मांग उठी। इस फैसले का सीमावर्ती इलाकों में कन्नड़ भाषियों ने कड़ा विरोध हुआ। तभी से सीमा मुद्दे को लेकर मराठी भाषी लोगों का संघर्ष जारी है।
1956 में राज्य पुनर्गठन कानून लागू हुआ तो बेलगाम को महाराष्ट्र की जगह मैसूर स्टेट का हिस्सा बना दिया गया। महाराष्ट्र सरकार ने 1957 केंद्र से इस पर आपत्ति जताई। इस मांग को लेकर महाराष्ट्र के एक नेता सेनापति बापत भूख हड़ताल पर बैठ गए।
महाराष्ट्र सरकार ने केंद्र से इस मुद्दे पर एक आयोग बनाने की मांग की। 1966 में केंद्र सरकार ने एक रिटायर्ड जज मेहर चंद महाजन की अध्यक्षता में महाजन कमीशन बनाया। इस कमीशन ने 1967 में अपनी रिपोर्ट दी।
इसमें सिफारिश की गई कि उत्तर कन्नड़ जिले में आने वाले कारवाड़ सहित 264 गांव महाराष्ट्र को दे दिए जाएं। साथ ही हलियल और सूपा इलाके के 300 गांव भी महाराष्ट्र को दे दिए जाएं। हालांकि इनमें बेलगाम शहर शामिल नहीं था।
इसके अलावा महाराष्ट्र के शोलापुर समेत 247 गांव कर्नाटक को दिए जाएं। साथ ही केरल का कासरगोड जिला भी कर्नाटक को दे दिया जाए। महाराष्ट्र और केरल ने महाजन आयोग की रिपोर्ट का विरोध किया। विरोध के चलते इस रिपोर्ट को लागू नहीं किया गया।
1986 में हुई हिंसा में 9 लोग मारे गए
इसके बाद 1973 में मैसूर स्टेट का नाम बदलकर कर्नाटक कर दिया गया। 1983 में बेलगाम में पहली बार नगर निकाय के चुनाव हुए। इन चुनावों में महाराष्ट्र एकीकरण कमेटी के प्रभाव वाले उम्मीदवार ज्यादा संख्या में जीतकर आए।
नगर निकाय और 250 से ज्यादा मराठी बहुल गांवों ने राज्य सरकार को प्रस्ताव भेजा कि उन्हें महाराष्ट्र में मिलाया जाए। इसके विरोध में 1986 में कर्नाटक में कई जगह हिंसा हुई, जिनमें 9 लोग मारे गए। बेलगाम के लोगों ने मांग की कि उन्हें सरकारी आदेश मराठी भाषा में दिए जाएं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और विवाद जारी रहा।
दिसंबर 2005 में महाराष्ट्र सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची
2005 में बेलगाम नगर निकाय ने फिर से महाराष्ट्र में मिलने की सिफारिश वाला प्रस्ताव पास कर कर्नाटक सरकार को भेजा। कर्नाटक सरकार ने प्रस्ताव को अंसवैधानिक बताकर रद्द कर दिया। साथ ही बेलगाम नगर निकाय को भंग कर दिया। महाराष्ट्र एकीकरण कमेटी के नेताओं ने इसका विरोध किया और हाईकोर्ट में चुनौती दी। कमेटी ने कर्नाटक सरकार पर मराठियों की आवाज दबाने का आरोप लगाया।
कर्नाटक और महाराष्ट्र दोनों का मानना है कि इस जटिल मुद्दे को राजनीतिक रूप से हल नहीं किया जा सकता है। दिसंबर 2005 में महाराष्ट्र सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची। महाराष्ट्र सरकार ने अपनी याचिका में कर्नाटक के मराठी भाषी 865 गांवों को महाराष्ट्र में शामिल करने की मांग की है।
महाराष्ट्र सरकार ने मांग की कि फैसला आने तक इस इलाके को केंद्र सरकार के अधिकार में ले लिया जाए। हालांकि, ऐसा नहीं हुआ। मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। अगले महीने इस पर सुनवाई होने की उम्मीद है।
केंद्र सरकार का क्या रुख रहा है
केंद्र की एक के बाद एक सरकारों ने भी इस मुद्दे पर सावधानी बरती है। 2010 में केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को सौंपे अपने हलफनामे में कहा था कि तत्कालीन मैसूर स्टेट अब कर्नाटक को कुछ क्षेत्रों का स्थानांतरण न तो मनमाना था और न ही गलत। संसद और केंद्र सरकार ने राज्य पुनर्गठन विधेयक 1956 और बॉम्बे पुनर्गठन विधेयक 1960 पर विचार करते समय सभी रिलेवेंट फैक्टर पर विचार किया था।
कर्नाटक सरकार का दावा क्या है
कर्नाटक भाषाई आधार पर राज्यों के गठन और 1967 की महाजन आयोग की रिपोर्ट को ही मानता है। कर्नाटक सरकार 2006 में बेलगावी पर अपना दावा मजबूत करने के लिए विधानसभा का एक पांच दिवसीय विशेष सत्र बेलगावी में बुलाया। साथ ही तय किया कि विधानसभा का शीत सत्र यहीं बुलाया जाएगा।
कर्नाटक सरकार ने 2012 में बेलगावी में सुवर्ण विधानसौदा नाम से एक नई विधानसभा की इमारत का यहां उद्घाटन किया। विधानसभा का शीत सत्र यही पर होता है। एक प्रकार से बेलगावी को कर्नाटक की दूसरी राजधानी बना दिया। नवंबर 2014 में कर्नाटक सरकार ने बेलगाम का नाम बदलकर बेलगावी कर दिया।
2019 ठाकरे के कमेटी बनाते ही मामला फिर गर्माया
2019 में मुख्यमंत्री बनने के बाद उद्धव ठाकरे से महाराष्ट्र एकीकरण कमेटी के नेताओं ने इस मुद्दे पर ध्यान देने की मांग की। ठाकरे ने इस पर दो सदस्यों वाली कमेटी बनाई। इसके विरोध में कर्नाटक नवनिर्माण सेना नाम के समूह ने बेलगावी में उद्धव का पुतला जलाया।
उस वक्त कर्नाटक के सीएम बीएस येदियुरप्पा ने कहा कि कर्नाटक की एक इंच जमीन भी किसी राज्य को देने का सवाल नहीं उठता। विरोध में कोल्हापुर में उनका पुतला जलाया गया। साथ ही सिनेमाघरों से कन्नड़ फिल्मों को हटवा दिया गया। इसके बाद से दोनों राज्यों की सीमा पर पुलिसबल बड़ी संख्या में तैनात हैं।
पिछले साल कर्नाटक CM बोम्मई के बयान से बवाल मचा
22 नवंबर 2022 को कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई कहते हैं कि महाराष्ट्र के सांगली जिले के कुछ गांव कर्नाटक में अपना विलय करना चाहते हैं। 23 नवंबर को महाराष्ट्र के डिप्टी CM देवेंद्र फडणवीस इसके जवाब में कहते हैं कि एक भी गांव कर्नाटक में नहीं जाएगा। महाराष्ट्र कर्नाटक में मराठी भाषी गांवों को वापस लाने के लिए संघर्ष करेगा।
24 मई को बोम्मई कहते हैं कि अक्कलकोट और सोलापुर के कन्नड़ भाषी गांव को कर्नाटक में होना चाहिए। 29 नवंबर को महाराष्ट्र मिनिस्ट्रियल पैनल ने कहा है कि वह सीमा विवाद पर महाराष्ट्र एकीकरण कमेटी के साथ बातचीत करने के लिए 3 दिसंबर को बेलागवी का दौरा करेंगे।
3 दिसंबर को कर्नाटक सरकार ने महाराष्ट्र से सद्भाव बनाए रखने के लिए 6 दिसंबर को बेलागवी में मंत्रियों को नहीं भेजने का आग्रह किया। इसके बाद महाराष्ट्र सरकार ने यात्रा स्थगित कर दी। इसके बावजूद कर्नाटक सरकार ने हायर एंड टेक्निकल एजुकेशन मिनिस्टर चंद्रकांत पाटिल और एक्साइज मिनिस्टर शंभुराजे देसा के बेलगावी में आने से रोकने वाला आदेश जारी किया।
खासियत : बेलगावी में यूरेनियम के भंडार मिले हैं
बेलगावी नॉर्थ कर्नाटक का कमर्शियल हब है। यह सब्जियों, मछली, लकड़ी और खनन संसाधनों का एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र है। इस जिले में बॉक्साइट बहुतायत में पाया जाता है। यही वजह है कि एल्यूमीनियम और कॉपर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी हिंडाल्को की यूनिट भी यहां पर है।
बेलगावी के पास एक छोटे से गांव देसनूर में हाल ही में यूरेनियम के भंडार मिले हैं। कर्नाटक, महाराष्ट्र और गोवा तक आसान पहुंच के चलते जिले में जबरदस्त बिजनेस पोटेंशियल है।
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