20 मार्च, सोमवार को केरल हाईकोर्ट ने दलित हिंदू से धर्म बदलकर ईसाई बने CPM विधायक ए राजा की विधायकी रद्द कर दी। ए राजा पर आरोप था कि- दलित होने का फर्जी सर्टिफिकेट बनवाकर वो चुनाव लड़े थे।
ऐसे में आज भास्कर एक्सप्लेनर में जानते हैं कि हिंदू से धर्म बदलकर ईसाई और मुस्लिम बनने वाले दलितों को आरक्षण का लाभ क्यों नहीं मिलता है, केंद्र सरकार के आयोग बनाने का मकसद क्या है?
सबसे पहले पूरे मामले को समझते हैं…
2021 में केरल विधानसभा चुनाव में देवीकुलम एक आरक्षित सीट थी। इस सीट से CPM की तरफ से ए राजा और कांग्रेस की ओर से डी कुमार चुनाव लड़े थे। ए राजा ने 7,848 मतों से डी कुमार को चुनाव हरा दिया था।
इसके बाद केरल हाईकोर्ट में याचिका दायर करके कांग्रेस नेता डी कुमार ने आरोप लगाया कि MLA ए राजा दलित हिंदू से धर्म बदलकर ईसाई बन गए हैं। ऐसे में आरक्षित विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने के लिए उन्होंने फर्जी सर्टिफिकेट बनवाया था।
इस मामले में सुनवाई के बाद जस्टिस पी सोमराजन ने कहा, ‘ए राजा केरल के दलित हिंदू परायण समुदाय से ताल्लुक नहीं रखते हैं। वह धर्म बदलकर ईसाई बन गए हैं। ऐसे में ए राजा आरक्षित देवीकुलम सीट से विधायक चुने जाने के योग्य नहीं हैं।’
हाईकोर्ट ने साथ ही कहा है कि ए राजा सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने के लिए स्वतंत्र हैं। इस तरह केरल हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद ए राजा अब विधानसभा सत्र में हिस्सा नहीं ले पाएंगे। इससे केरल विधानसभा में वाम लोकतांत्रिक मोर्चे की ताकत 140 सदस्यीय विधानसभा में 99 विधायक से घटकर 98 रह गई है।
धर्म बदलकर मुस्लिम-ईसाई बनने वालों को आरक्षण नहीं मिले: केंद्र
7 दिसंबर 2022 को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि धर्म बदलकर मुस्लिम और ईसाई बनने वाले दलितों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए। साथ ही सरकार ने धर्म बदलने वाले सभी दलितों को रिजर्वेशन की सलाह देने वाले रंगनाथ मिश्रा कमीशन की रिपोर्ट को भी मानने से इनकार कर दिया है।
धर्म बदलकर मुस्लिम और ईसाई बनने वाले दलितों को रिजर्वेशन मिलना चाहिए या नहीं इसकी जांच के लिए केंद्र सरकार ने एक आयोग बनाया है। ऐसे में जानते हैं कि…
सवाल 1: केंद्र सरकार ने ये आयोग कब और किस मकसद से बनाया है?
जवाब: 6 अक्टूबर 2022 को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन की अध्यक्षता में एक आयोग गठित किया है। इस आयोग में कुल 3 सदस्य हैं…
इस आयोग को बनाने के पीछे केंद्र सरकार का मकसद ये है कि अब अपनी रिपोर्ट में ये आयोग सरकार को सुझाव देगा कि धर्मांतरण के बाद दलित मुस्लिम और ईसाईयों को अनुसूचित जाति के तौर पर आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए या नहीं मिलना चाहिए।
सवाल 2: मुस्लिम और ईसाई को आरक्षण का लाभ क्यों नहीं मिल रहा है?
जवाब: सेंटर फॉर पब्लिक इन्ट्रेस्ट लिटिगेशन ने सुप्रीम कोर्ट में ईसाई या मुस्लिम बन चुके दलितों को आरक्षण नहीं दिए जाने के खिलाफ याचिका दायर की है। 2004 से ये मामला कोर्ट में है।
संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत राष्ट्रपति के आदेश पर 1950 में हिंदुओं में अछूत माने जाने वाले कई जातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा मिला था, जिन्हें आज दलित कहते हैं। 1956 में राष्ट्रपति के इस आदेश में संशोधन करके इसमें सिख दलितों को भी जोड़ दिया गया।
1990 में वीपी सिंह की सरकार ने एक बार फिर से इस आदेश को बदलकर बौद्ध को इसमें शामिल कर लिया। इस सरकारी आदेश में लिखा है कि हिंदू, सिख और बौद्ध को छोड़कर दूसरे धर्म को अपने वालों को अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जाएगा।
यही वो सरकारी आदेश है जिसकी वजह से देश में धर्म बदलकर मुस्लिम और ईसाई बनने वालों को अनुसूचित जाति का दर्जा नहीं मिल पाता है। इसकी वजह से वे आरक्षण का लाभ भी नहीं ले पाते हैं।
सवाल 3: धर्म बदलकर मुस्लिम और ईसाई बनने वालों को रिजर्वेशन देने पर सरकार का क्या मानना है?
जवाब: सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने दलित मुसलमान और ईसाइयों को अनुसूचित जाति का दर्जा नहीं देने को लेकर 3 तर्क दिए हैं…
राष्ट्रपति आदेश 1950, 1955 और 1990 मुस्लिम और ईसाई को अनुसूचित जाति मानकर आरक्षण का लाभ देने का इजाजत नहीं देता है।
अनुच्छेद 25 के खंड 2(B) में हिंदू शब्द में सिख, जैन और बौद्ध भी शामिल हैं। इसलिए इन 3 धर्मों के अलावा किसी और धर्म के लोगों को अनुसूचित जाति में शामिल नहीं किया जा सकता है।
मुस्लिम और ईसाईयों में जाति भेद और छुआछूत नहीं है, इसलिए इनको अनुसूचित जाति में शामिल नहीं किया जा सकता है।
हालांकि, सरकार के इन तर्कों के विरोध करने वाले अनुच्छेद 25 के खंड 2(B) में संशोधन करके मुस्लिम और ईसाई धर्म को भी इसमें शामिल करने की मांग कर रहे हैं। साथ ही उन्होंने कहा कि हिंदू शब्द में सिख, जैन और बौद्ध शामिल थे तो…
सवाल 4: सरकार ने जिस रंगनाथ मिश्रा कमेटी का विरोध किया है, उसका क्या कहना था?
जवाब: अक्टूबर 2004 को सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस रंगनाथ मिश्रा के नेतृत्व में सरकार ने एक आयोग बनाया। इस आयोग को देश में भाषा और धर्म के आधार पर अल्पसंख्यकों से संबंधित विभिन्न मुद्दों के जांच की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।
रंगनाथ मिश्रा आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि-
‘1950 में राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 341 के तहत अध्यादेश जारी कर पैरा 3 में दलित मुस्लिमों और ईसाइयों को अनसूचित जाति के दायरे से बाहर किया था, वह असंवैधानिक था। वो खत्म होना चाहिए। इसके लिए किसी संविधान संशोधन की जरूरत नहीं है। ये काम एग्जीक्यूटिव ऑर्डर से भी हो सकता है।’
अब एक ग्राफिक्स में रंगनाथ मिश्रा आयोग से जुड़ी खास बातों को जानते हैं…
सवाल 5: कहीं ये वोट बैंक की राजनीति तो नहीं है?
जवाब: ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के अध्यक्ष और पूर्व सांसद अली अनवर अंसारी ने कहा कि सच्चर कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि मुस्लिमों में जाति भेद है। इस धर्म में भी दलितों के साथ भेदभाव होता है। वहीं, रंगनाथ मिश्रा कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि दलित मुस्लिमों के लिए भी रिजर्वेशन होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि जब ये मामला कोर्ट में पहुंचा तो सरकार को लगा कि सुप्रीम कोर्ट मुस्लिम और ईसाई दलितों के पक्ष में फैसला सुना सकती है। ऐसे में केंद्र ने अलग से एक आयोग बना दिया और कहा कि इस मामले में ये आयोग ही अब आगे फैसला करेगा।
सोचने वाली बात ये है कि एक तरफ सरकार ने इसकी जांच के लिए आयोग बनाया है और दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने ये भी कहा है कि मुस्लिम और ईसाई दलितों को कानूनी तौर पर आरक्षण नहीं मिल सकता है।
ऐसे में लगता है कि आयोग बस बहाना लग रहा है और केंद्र सरकार की मंशा मुस्लिम और ईसाई दलितों को उनका हक दिलाने के पक्ष में नहीं है। इसके आगे अली अनवर कहते हैं कि लगता है कि ये सब सरकार के वोट बैंक की राजनीति है।
सवाल 6: मुस्लिम और ईसाई धर्म में शामिल होने वालों को रिजर्वेशन नहीं देने का तर्क कितना सही है?
जवाब: दिल्ली यूनिवर्सिटी की लॉ प्रोफेसर सीमा सिंह ने कहा कि- कंवर्टेड मुस्लिम और ईसाईयों को रिजर्वेशन नहीं देने का फैसला बिल्कुल सही है। आजादी के बाद सबसे ज्यादा हिंदू दलितों ने धर्म बदला है। ऐसे में इन वजहों से उन्हें रिजर्वेशन नहीं दिया जाना चाहिए…
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