भास्कर एक्सप्लेनरअकाल तख्त का अल्टीमेटम- 24 घंटे में सिखों की रिहाई:400 साल पुरानी सिखों की शीर्ष संस्था, जिससे पूर्व राष्ट्रपति तक को माफी मांगनी पड़ी

2 महीने पहले
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'इस देश में लाखों लोग हैं जो हिंदू राष्ट्र की बात करते हैं। जो लोग हिंदू राष्ट्र की मांग कर रहे हैं, उन सभी पर केस दर्ज होना चाहिए। उन पर भी NSA के तहत कार्रवाई होनी चाहिए। पंजाब के जिन भी नौजवान युवकों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है, उन्हें 24 घंटे में छोड़ा जाए। ऐसा नहीं हुआ तो आगे एक्शन प्लान की तैयारी की जाएगी।'

27 मार्च यानी सोमवार को सिखों की सबसे बड़ी धार्मिक संस्था अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने ये बात कही है। ऑपरेशन अमृतपाल पर ज्ञानी हरप्रीत सिंह के अल्टीमेटम देने के बाद से ही अकाल तख्त को लेकर चर्चा तेज हो गई है।

भास्कर एक्सप्लेनर में जानेंगे कि अकाल तख्त का इतिहास क्या है और ये संस्था कितनी ताकतवर है?

सबसे पहले अकाल तख्त से जुड़ा ये किस्सा पढ़िए…

बात उस वक्त की है, जब पंजाब के शासक महाराजा रणजीत सिंह का दिल 13 साल की एक नाचने वाली लड़की पर आ गया। उस लड़की का नाम था मोहरान। महाराजा उसे अपनी प्रेमिका बनाकर रखना चाहते थे, लेकिन वह इसके लिए तैयार नहीं हुई। मोहरान ने महाराजा से कहा, 'मैं मुसलमान हूं, प्रेमिका बनकर नहीं रह सकती। आप चाहें तो मुझसे शादी कर सकते हैं।'

राजा रणजीत सिंह शादी के लिए तैयार हो गए। इसी बीच मोहरान के पिता ने एक शर्त रख दी। उन्होंने कहा हमारे यहां एक प्रथा है। जो भी होने वाला दामाद होता है, उसे अपने ससुर के घर चूल्हा जलाना होता है।

मोहरान के पिता को लगा कि महाराजा इसके लिए तैयार नहीं होंगे, लेकिन रणजीत सिंह ने बिना पलक झपकाए अपने होने वाले ससुर की शर्त मान ली।

सिखों की धार्मिक संस्था श्री अकाल तख्त ने महाराज के इस फैसले पर नाराजगी जताई। महाराजा को श्री अकाल तख्त के सामने पेश होने का आदेश दिया गया। पहली बार रणजीत सिंह पेश नहीं हुए।

इसके बाद उस वक्त के अकाल तख्त के जत्थेदार अकाली फूला सिंह ने आदेश दिया कि कोई सिख महाराजा को सलाम नहीं करेगा और ना ही स्वर्ण मंदिर में उनका प्रसाद स्वीकार किया जाएगा। लोगों ने महाराजा को सलाम करना बंद कर दिया। उनका चढ़ाया प्रसाद भी लिया जाना बंद हो गया।

आखिरकार रणजीत सिंह श्री अकाल तख्त में पेश हुए। रणजीत सिंह ने कहा कि उनसे गलती हुई है। इसके लिए वे माफी चाहते हैं। उन्हें जो सजा दी जाएगी, वे उसे मानेंगे। रणजीत सिंह को सौ कोड़े मारने की सजा सुनाई गई। इसके लिए उनकी कमीज उतारी गई और एक इमली के पेड़ से बांध दिया गया।

वहां मौजूद लोगों की आंखों में आंसू आ गए। इसी बीच श्री अकाल तख्त के जत्थेदार ने ऐलान किया कि महाराजा ने अपनी गलती मान ली है, इसलिए इनकी सजा माफ की जाती है।

ये तस्वीर अकाल तख्त के उस हिस्से की है, जहां से खड़े होकर मुख्य जत्थेदार किसी को सजा सुनाते हैं।
ये तस्वीर अकाल तख्त के उस हिस्से की है, जहां से खड़े होकर मुख्य जत्थेदार किसी को सजा सुनाते हैं।

गुरु हरगोबिंद सिंह ने 1609 में अकाल तख्त की शुरुआत की

सिख धर्म में 5 बड़े तख्त हैं...

1. अकाल तख्त साहिब (अमृतसर)

2. दमदमा साहिब तख्त (भटिंडा)

3. केशगढ़ साहिब तख्त (श्री आनंदपुर साहिब जी)

4. पटना साहिब तख्त (बिहार)

5. श्री हुजूर साहिब तख्त (नान्देड)

तख्त फारसी भाषा का शब्द है, जिसका मतलब अथॉरिटी के बैठने की जगह या सिंहासन है। अकाल तख्त साहिब पांचों तख्तों में सबसे पुराना है। इसकी शुरुआत सिखों के छठे गुरु हरगोबिंद सिंह ने 1609 में की थी। सिख धर्म की इस सबसे बड़ी संस्था के प्रमुख पद पर बैठे जत्थेदार को सिखों का मुख्य प्रवक्ता माना जाता है।

अकाल तख्त में हर दिन कुछ इस अंदाज में जरनैलों के हथियारों के दर्शन कराए जाते हैं।
अकाल तख्त में हर दिन कुछ इस अंदाज में जरनैलों के हथियारों के दर्शन कराए जाते हैं।

सिखों से जुड़े धार्मिक, राजनीतिक मामलों में फैसला लेता है अकाल तख्त
अपनी स्थापना के बाद से ही अकाल तख्त सिखों के सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक मामलों में फैसला लेने लगा। अकाल तख्त के फैसले दुनियाभर में रहने वाले सिखों पर लागू होते हैं। सिख धर्म के खिलाफ कोई गलत काम करता है तो पांचों तख्तों के प्रधान आपस में मिलकर उसके लिए सजा तय करते हैं। इसके बाद अकाल तख्त के जत्थेदार सजा का ऐलान करते हैं।

ये संस्था गुरु हरगोबिंद के बताए मिरी-पीरी परंपरा को आगे बढ़ाती है। इस परंपरा के मुताबिक एक हाथ में माला और दूसरे हाथ में तलवार लेकर अपने धर्म की रक्षा की जानी चाहिए। अपनी स्थापना के बाद से ही अकाल तख्त ने सिख धर्म के लोगों को संगठित करने में अहम भूमिका निभाई है।

मुगलों का फरमान था 3 फीट से ऊंची गद्दी नहीं बनेगी, हरगोबिंद जी ने 12 फीट ऊंची गद्दी बनाई
17वीं सदी में मुगल बादशाह जहांगीर ने सिखों के पांचवें गुरु अर्जुन देव के साथ लाहौर में बर्बर व्यवहार किया, कठोर यातनाएं दीं। गुरु अर्जुन देव ने वहां से संदेश भेजा कि गुरु हरगोबिंद जी से कह दीजिए कि अब शस्त्र उठाने का वक्त आ गया है। 1606 में गुरु अर्जुन देव की हत्या कर दी गई।

उस वक्त मुगलों का फरमान था कि कोई बाज नहीं रख सकता, चौबारा नहीं डाल सकता, घोड़ा नहीं रख सकता, शिकार नहीं कर सकता और मुगलों के तख्त से ऊंचा तख्त, यानी तीन फीट से ऊंचा नहीं बना सकता। सिखों के छठे गुरु हरगोबिंद जी ने गद्दी संभालते ही कहा- हम तख्त बनाएंगे।

उन्होंने 1609 में श्री अकाल तख्त साहिब बनाया। तब उसकी ऊंचाई 12 फीट थी। साथ ही उन्होंने 4,000 युवाओं की सेना बनाई। बाज रखे, घोड़े पाले और दस्तार भी सजाई। वे हर दिन उसी तख्त पर बैठते थे। वहीं से सारे फैसले लेते थे।

हरगोबिंद जी हर रोज सुबह हरमंदिर साहिब मंदिर जाते। उसके बाद शिकार के लिए जाते थे। फिर दोपहर में तख्त पर बैठते थे और लोगों की समस्याएं सुनते थे। जो लोग न्याय के लिए आते थे, उन्हें न्याय भी दिलाते थे। उनका आदेश सबसे ऊपर होता था। आज भी वही परंपरा निभाई जा रही है।

ये तस्वीर 1984 की है, जब ऑपरेशन ब्लू स्टार और सिख दंगों में अकाल तख्त साहिब पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया था।
ये तस्वीर 1984 की है, जब ऑपरेशन ब्लू स्टार और सिख दंगों में अकाल तख्त साहिब पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया था।

ज्ञानी जैल सिंह से लेकर बूटा सिंह तक को मांगनी पड़ी है माफी
1984 में सिख दंगों के दौरान राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह थे और बूटा सिंह कैबिनेट मंत्री। श्री अकाल तख्त ने ज्ञानी जैल सिंह और बूटा सिंह को संदेश भेजा कि यहां आकर वे अपना पक्ष रखें।

ज्ञानी जैल सिंह राष्ट्रपति थे, ऐसे में उनकी तरफ से उनके एक प्रतिनिधिमंडल ने वहां अपना पक्ष रखा। राष्ट्रपति पद से हटने के बाद जैल सिंह ने वहां जाकर माफी मांगी जिसके बाद उन्हें माफ कर दिया गया था।

इसी तरह बूटा सिंह 1994 में श्री अकाल तख्त के सामने पेश हुए। उन्हें सजा के तहत पांचों तख्तों में एक-एक हफ्ते के लिए लंगर में बर्तन साफ करने, झाड़ू लगाने और जोड़े यानी जूते साफ करने का काम मिला। इस दौरान उनके गले में माफीनामे की तख्त भी लटकाई गई थी।

SGPC के प्रमुख और अकाल तख्त के जत्थेदार कैसे चुने जाते हैं?
SGPC के नियम मुताबिक इसके सदस्यों का चुनाव हर 5 साल में होना जरूरी है, लेकिन ऐसा हो नहीं पाता है। एसजीपीसी में कुल सदस्यों की संख्या 191 है। इसमें 170 सदस्य चुने हुए, 15 मनोनीत, 5 तख्तों के प्रमुख और 1 हेड ग्रंथी श्री दरबार साहिब के होते हैं।

SGPC के कुल मतदाताओं की संख्या 56.50 लाख से ज्यादा है। 2011 में हुए चुनाव के अनुसार सबसे ज्यादा करीब 53 लाख वोटर पंजाब से हैं। इसके अलावा SGPC में हरियाणा के 3.37 लाख, 23,011 हिमाचल प्रदेश और 11,932 वोटर चंडीगढ़ से हैं। SGPC में रजिस्टर्ड वोटर ही इस संस्था के प्रमुख का चुनाव करते हैं।

वहीं, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी यानी SGPC के 160 सदस्य और 15 लोगों की एग्जीक्यूटिव कमेटी मिलकर श्री अकाल तख्त साहेब के जत्थेदार का चुनाव करती है।

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