खालिस्तान समर्थक अमृतपाल को पंजाब पुलिस पिछले 13 दिनों से खोज रही है, लेकिन वो वीडियो बनाकर खुला चैलेंज दे रहा है। बुधवार को जारी वीडियो में अमृतपाल ने कहा कि पुलिस उसका बाल भी बांका नहीं कर सकी। इसके साथ ही उसने बैसाखी पर सरबत खालसा बुलाने की मांग भी रख दी है।
भास्कर एक्सप्लेनर में जानेंगे कि क्या है सरबत खालसा, इसका क्या महत्व है और इसे बुलाने की मांग के पीछे क्या अमृतपाल की कोई चाल है?
अमृतपाल ने अपने लेटेस्ट वीडियो में क्या-क्या बोला है...
दरअसल, श्री अकाल तख्त के जत्थेदार ने पंजाब सरकार को अल्टीमेटम दिया था कि ऑपरेशन अमृतपाल के दौरान 10 दिनों में पकड़े गए युवकों को 24 घंटों में रिहा किया जाए। हालांकि, सरकार ने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया है।
अमृतपाल सिंह ने अपने वीडियो में अकाल तख्त से सरबत खालसा बुलाने की मांग की है और देश-दुनिया के सभी सिखों को इसमें शामिल होने का आवाहन किया है। इससे साफ पता चलता है कि अमृतपाल अपनी निजी एजेंडे को सिख कम्युनिटी की लड़ाई बनाना चाहता है।
सरबत खालसा क्या है, जिसकी मांग अमृतपाल ने की
सरबत माने सभी और खालसा माने सिख। सरबत खालसा का मतलब है सभी सिखों की एक सभा।
16वीं शताब्दी में सिखों के चौथे गुरु रामदास के समय एक प्रथा शुरू हुई। इसमें साल में दो बार सिख समुदाय एक जगह पर जुटता था। यह जुटान वैशाखी और दीवाली पर होती थी। समुदाय के सभी लोग गुरु के साथ इकट्ठा होते और मिलते-जुलते। समय के साथ सिखों का यह मिलना अपने आस-पास समाज और राजनीति में हो रहे बदलावों के लिए चर्चा का केंद्र बनने लगा।
1716 की बात है। बंदा सिंह बहादुर के शहीद होने के बाद खालसा बिखर से गए। उन्होंने अपने सेनानायक को खो दिया था। दूसरी तरफ सिखों पर मुगल सेना कहर बरपा रही थी। इस नरसंहार से मोर्चा लेने के लिए ‘दल खालसा’ बना। यह दल खालसा आगे चलकर तरुण और बुड्ढा दल बना और यही सिख मिसल यानी सिखों की मिलिट्री यूनिट्स का आधार बना।
18वीं शताब्दी में 10वें गुरु गुरु गोबिंद सिंह के निधन के बाद सिख मिसलें यानी मिलिट्री यूनिट्स ने समुदाय के लिए अधिक महत्व के राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक मुद्दों पर चर्चा के लिए सरबत खालसा को बुलाना शुरू किया। सिख मिसलें युद्ध की रणनीति पर बातचीत के लिए अकाल तख्त में मिलते थे।
19वीं सदी में सिख साम्राज्य के संस्थापक महाराजा रणजीत सिंह ने सरबत खालसा बुलाने की प्रथा को समाप्त कर दिया था।
तकरीबन 200 साल बाद पहली बार 26 जनवरी 1986 में खुलेतौर पर सरबत खालसा को बुलाया गया था। स्वर्ण मंदिर में हुए इसी सरबत खालसा में भारत सरकार के खर्च पर अकाल तख्त के निर्माण के प्रस्ताव को ठुकरा दिया गया। लाखों सिखों की मौजूदगी में फैसला लिया गया कि ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान क्षतिग्रस्त अकाल तख्त को कार सेवा के जरिए ही बनाया जाएगा। सरबत खालसा ने सिख स्वशासन के लिए संघर्ष करने का भी फैसला किया।
तब केंद्र में इंदिरा गांधी की सरकार थी और सुरजीत सिंह बरनाला पंजाब के मुख्यमंत्री थे। दोनों ही सरकारों ने पहले प्रस्ताव को सिखों के आत्मसम्मान से जुड़ा मुद्दा माना, लेकिन दूसरे प्रस्ताव को खालिस्तान की अलगाववादी मांग को भड़काने की कोशिश।
इन दो बड़े फैसलों के अलावा 1986 के सरबत खालसा ने अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी कृपाल सिंह को हटा दिया। उनकी जगह जनरैल सिंह भिंडरांवाला के भतीजे जसबीर सिंह रोडे को जत्थेदार बना दिया। तकरीबन सभी दीवारों, एंट्रेंस गेट और मंच पर भिंडरांवाला, उनके साथी शाहबेग सिंह, अमरीक सिंह सोधी के पोस्टर लगाए गए थे। पूरी दुनिया से सिख संगठनों के लोग सरबत खालसा में पहुंचे। इसके बाद से सिख पंथ से संबंधित मुद्दों पर फैसले लेने के लिए कई बार सरबत खालसा बुलाया गया। सरबत खालसा में देश और दुनिया से सिख समुदाय के संगठनों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं।
कौन बुला सकता है सरबत खालसा
सरबत खालसा को लेकर विवाद होता रहा है कि कौन इसका आयोजन कर सकता है। जानकार कहते हैं कि सिर्फ अकाल तख्त को ही सरबत खालसा बुलाने का अधिकार है, क्योंकि अकाल तख्त सिखों की सर्वोच्च धार्मिक संस्था है।
अकाल तख्त के मुखिया को जत्थेदार कहते हैं। वो अन्य प्रमुख सिख प्रतिनिधियों के साथ धर्म और मर्यादा से जुड़े फैसले लेते हैं। सरबत खालसा में जो भी फैसला होता है तख्त साहिब के जत्थेदार कौम को उसका पालन करने के लिए आदेश देते हैं। हालांकि, 2015 में सरबत खालसा को शिरोमणी अकाली दल (अमृतसर) के नेता सिमरनजीत सिंह मान और यूनाइटेड अकाली दल के नेता मोहकाम सिंह ने बुलाया था।
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