हफ्तों से जारी उठापटक के बाद जर्मनी अपने लेपर्ड-2 टैंक्स यूक्रेन को देने पर राजी हो गया है। जर्मनी के चांसलर ने बुधवार को कैबिनेट मीटिंग के बाद 14 लेपर्ड-2 टैंक देने की घोषणा की। यूक्रेन को उम्मीद है कि ये टैंक रूस के खिलाफ जंग में गेमचेंजर साबित होंगे। दूसरी तरफ रूस का कहना है कि ये टैंक्स भी बाकियों की तरह जलकर खाक हो जाएंगे।
भास्कर एक्सप्लेनर में जानेंगे कि लेपर्ड-2 टैंक्स में ऐसा क्या है कि यूक्रेन इसे पाने के लिए इतना बेताब था…
फरवरी 2021 में जंग छिड़ने के बाद रूस सोवियत काल में बने टैंक्स का इस्तेमाल कर रहा है। इसके काउंटर के लिए यूक्रेन भी इन्हीं टैंकों का इस्तेमाल कर रहा है। डिफेंस एक्सपर्ट्स का मानना है कि जर्मनी में बने लेपर्ड-2 टैंक्स की मदद से यूक्रेन अपनी डिफेंस लाइन को कहीं ज्यादा मजबूत बना सकता है। 1970 में बना लेपर्ड-2 टैंक दुनिया के सबसे शक्तिशाली मेन बैटल टैंक्स में से एक है। इसे पाने की बेताबी के पीछे 4 बड़ी वजहें हैं…
सोवियत मॉडल चाहिए थे, इसलिए जर्मनी ने बनाए लेपर्ड-2 टैंक
1965 में लेपर्ड-1 सर्विस में आया। इसने 12 से ज्यादा यूरोपीय देशों के लिए मेन बैटल टैंक्स का काम किया। इन टैंक्स का सबसे ज्यादा इस्तेमाल जर्मनी, इटली और नीदरलैंड्स ने किया। लेपर्ड-1 टैंक्स को उस जमाने में बनाया गया जब हाई एक्स्प्लोसिव एंटी टैंक्स के आने से हैवी वेपनरी का दबदबा लगभग खत्म होने को था।
लेपर्ड-1 टैंक के बेहतरीन डिजाइन की वजह से ये टैंक कहीं ज्यादा डिफेंसिव थे। ये वजनी होने के बाद भी तेज स्पीड से आगे बढ़ सकते थे। स्पीड से इनकी फायर पावर पर भी कोई खास असर नहीं पड़ता था। इस वजह से ये टैंक्स हर मामले में किसी भी मेन बैटल टैंक से कहीं आगे थे। सिर्फ फ्रांस का AMX-30 और स्वीडन का STRV-103 जैसे टैंक्स लेपर्ड-1 का मुकाबला कर सकते थे।
इसके बावजूद जर्मन आर्मी को एक ऐसे टैंक की जरूरत थी जो सोवियत मॉडल के टैंक्स की तरह शक्तिशाली हो। इस वजह से जर्मनी और अमेरिका ने मिलकर 1963 में जॉइंट जर्मन-अमेरिकन मेन बैटल टैंक प्रोग्राम शुरू किया। इसका नाम था MBT-70 टैंक।
MBT-70 टैंक का डिजाइन शानदार था। ये कई आधुनिक तकनीकों से भी लैस था, लेकिन इस पर हो रहे खर्च और और तकनीकी दिक्कतों की वजह से 1967 तक इस टैंक का सर्विस में शामिल होना मुश्किल था। इस वजह से वेस्ट जर्मन सरकार ने पॉर्श कंपनी को लेपर्ड-1 को अपग्रेड कर इसके फ्यूचर वर्जन पर रिसर्च करने के लिए कहा।
1969 में वेस्ट जर्मनी MBT-70 प्रोग्राम से पीछे हट गया। इस प्रोग्राम के लिए बनाई गई टेक्नोलॉजी और डिजाइन का इस्तेमाल जर्मन लेपर्ड-2 और अमेरिका KM 1 अब्राम टैंक में इस्तेमाल किया गया। इसलिए इन टैंक्स के फायर कंट्रोल सिस्टम, वेपनरी और ट्रैक लगभग एक जैसे हैं। आखिकार 1970 में जर्मनी ने लेपर्ड-2 टैंक्स को सर्विस में शामिल कर लिया।
1986 में बीयर टेस्ट पास कर वायरल हुआ था लेपर्ड 2 टैंक
1986 में जर्मनी ने टैंक की काबिलियत जांचने के लिए एक टेस्ट किया था। इस टेस्ट का वीडियो काफी वायरल हुआ। इस वीडियो में सैनिक ने टैंक की गन के ऊपर बीयर से भरा हुआ एक गिलास रखा।
जब टैंक चलना शुरू हुआ तो न ही ये गिलास गिरा और न ही अपनी जगह से हिला। यहां तक कि इसमें भरी बीयर भी नहीं छलकी। टैंक के बेहतरीन डिजाइन की वजह से ये गिलास हिला तक नहीं और टैंक ने अपने टारगेट पर सही निशाना भी साध लिया।
ये वीडियो इतना वायरल हुआ कि 2015 में जापान ने अपने टाइप-10 टैंक को दुनिया के सामने लाने के लिए बीयर टेस्ट में पास होने का वीडियो बनाया।
22 लोगों के ठीक सामने इमरजेंसी ब्रेक लगाए
2014 में एक वीडियो वायरल हुआ। इस वीडियो में करीब 60 टन वजनी लेपर्ड 2 टैंक के सामने सूट पहने आराम से 22 लोग खड़े रहे। टैंक 72 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उनके सामने आया।
टैंक के बिल्कुल पास आने पर भी लोगों के चेहरे पर कोई चिंता नहीं नजर आई। टैंक बड़ी आसानी से कुछ मीटर दूर खड़े लोगों के पास आकर रुक गया। इस वीडियो में टैंक के खास इमरजेंसी ब्रेक सिस्टम को दिखाया गया था।
यूक्रेन को लेपर्ड-2 टैंक्स सौंपने के लिए जर्मनी की हां जरूरी थी
ये टैंक्स जर्मनी में बनाए गए हैं। जर्मनी ने इन टैंक्स को पोलैंड और फिनलैंड जैसे देशों को बेचे हैं। पोलैंड ये टैंक यूक्रेन को भेजना चाहता था, लेकिन इसके लिए जर्मनी की मंजूरी जरूरी थी। बिना जर्मनी की अनुमति के कोई भी देश इन टैंक्स को दोबारा नहीं बेच सकता।
जर्मनी की मीडिया के अनुसार वहां के चांसलर ओलाफ शोल्ज ने यूक्रेन को लेपर्ड-2 टैंक देने की बात पर सहमति जताई है। स्काई न्यूज के अनुसार जर्मन सरकार ने यूक्रेन में 14 लेपर्ड-2 टैंक भेजने का निर्णय लिया है। इसके अलावा जर्मनी की विदेश मंत्री एना बेरबोक ने कहा, 'अगर पोलैंड या कोई भी यूरोपीय देश यूक्रेन को लेपर्ड-2 टैंक देना चाहता है तो दे सकता है। हम उसके रास्ते में बाधा नहीं बनेंगे।’
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