कोविड के फिर से फैलने की आशंका है। चीन में हालात खराब हैं, अस्पतालों में बेड कम पड़ रहे हैं। उधर लैटिन अमेरिकी देशों में महीनेभर में कोरोना केस में 87% इजाफा हो गया है।
विदेश से कोरोना का नया वैरिएंट भारत आ सकता है। इसे देखते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को चिट्ठी लिखी है। मांडविया ने बढ़ते कोरोना के कारण राहुल से 'भारत जोड़ो यात्रा' रोकने को कहा है। जवाब में राहुल बोले- ‘ये सब मेरी यात्रा रोकने के बहाने हैं।’
मांडविया की चिट्ठी की असली मंशा क्या है, उनकी चिंता सच में कोरोना है या मकसद राजनीतिक है... हमने पड़ताल की तो संभावनाएं चार दिख रही हैं-
पहली संभावना: चिट्ठी में जाहिर चिंता जायज, मंशा कोरोना रोकना ही है
नहीं, ऐसा नहीं है, तीन फैक्ट
1. जिस चीन का डर दिखाया जा रहा है, वहां केस अभी तो घटे हैं। इससे अधिक तो एक महीने पहले बढ़े थे। चीन के नेशनल हेल्थ कमीशन के मुताबिक सबसे अधिक 29 नवंबर को 71,310 मामले सामने आए थे। 20 दिसंबर को तो सिर्फ 1,801 केस मिले।
2. मांडविया ने 20 दिसंबर को चिट्ठी लिखी। हमने 10 से 20 दिसंबर के बीच हेल्थ मिनिस्ट्री का ट्विटर हैंडल खंगाला। इसमें कोरोना पर कोई नई एडवाइजरी नहीं है। जबकि टीबी से रोकथाम, मोतियाबिंद से छुटकारा, जनऔषधि केंद्र और आयुष्मान योजना के बारे में जानकारी दी गई है। 20 दिसंबर को ही हेल्थ सेक्रेटरी ने राज्यों को कोरोना पर चेताया और जीनोम सीक्वेंसिंग कराने को कहा।
3. मांडविया की चिट्ठी से ठीक 2 दिन पहले, यानी 18 दिसंबर को प्रधानमंत्री ने त्रिपुरा और मेघालय में रैली की। उसमें भारी भीड़ उमड़ी। इस दौरान की तस्वीरों और वीडियो में न तो कोई मास्क पहने दिख रहा है और न ही सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हो रहा है।
एक्सपर्ट वर्जन
स्वास्थ्य मंत्री की चिट्ठी तो राजनीति ही लग रही
पॉलिटिकल एक्सपर्ट राशिद किदवई कहते हैं कि स्वास्थ्य मंत्री अगर किसी पार्टी से कुछ कह रहे हैं, तो मजबूत तर्क होना चाहिए। ताकि कोई उनकी बात माने। इस मामले में ऐसा तो नहीं दिख रहा।
एक्सपर्ट वर्जन
कोरोना पर एडिशनल स्टेप उठाने की जरूरत नहीं
महामारी विशेषज्ञ डॉ. चंद्रकांत लहारिया से हमने पूछा कि कोरोना रोकने के लिए स्वास्थ्य मंत्री की ओर से राहुल गांधी को पत्र लिखना कितना सही है। उनका कहना है कि मेरी नजर में किसी तरह के एडिशनल स्टेप उठाने की जरूरत नहीं है।
कंक्लूजनः मांडविया की चिट्ठी की मंशा सिर्फ कोरोना की रोकथाम नहीं है। प्रधानमंत्री की रैली और भारत जोड़ो यात्रा के लिए अलग-अलग कोविड प्रोटोकॉल तो नहीं हो सकता ना।
संभावना-2: चिट्ठी की भाषा में कोरोना फैलने से ज्यादा सियासत की चिंता
हां, ये संभावना मजबूत है, 3 फैक्ट
एक्सपर्ट वर्जन
ठोस लॉजिक देने की जरूरत
किदवई कहते हैं कि स्वास्थ्य मंत्रालय में काम करने लिए लंबी चौड़ी ब्यूरोक्रेसी है। उनको राज्य की जमीनी स्थिति का पूरा अंदाजा होता है। ऐसे में स्वास्थ्य मंत्री अपने अधिकारियों की बजाय सांसदों की सलाह निर्भर दिखते हैं। ये अपने आप में ही गंभीर बात है।
एक्सपर्ट वर्जन
भारत में पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी जैसी बात ही नहीं
चंद्रकांत लहारिया कहते हैं कि पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी ग्लोबल लेवल पर है। भारत के लिए इसका फिलहाल कोई मतलब नही हैं। देखा जाए तो मंकीपॉक्स को लेकर पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी है तो हम उसके लिए क्या कर रहे हैं? महामारी में दिखावा करने का कोई मतलब नहीं है। फिलहाल मास्क की कोई भूमिका नहीं है। मास्क निजी तौर पर जरूरी हो सकता है, लेकिन कोई भी एडिशनल चीजें करने की जरूरत नहीं है।
कंक्लूजनः स्वास्थ्य मंत्रालय ने सिर्फ सांसदों के पत्र लिखने पर राहुल को पत्र लिख दिया। जबकि किसी रिपोर्ट या सर्वे में देश में कोरोना के केस बढ़ने की बात नहीं आई है। पत्र में हेल्थ इमरजेंसी की बात कही गई है। महामारी एक्सपर्ट ने इसे भी खारिज किया है।
संभावना-3: मांडविया की चिट्ठी का मकसद राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ को कश्मीर जाने से रोकना
एक्सपर्ट वर्जन
यात्रा को रोकना राजनीतिक रूप से गलत होगा
राशिद किदवई कहते हैं कि एक तरफ तो हम बात कर रहे हैं कि कश्मीर में राजनीतिक प्रक्रिया शुरू होनी चाहिए। कश्मीर में कभी भी चुनाव हो सकता है। दूसरी तरफ ऐसा दल जिसकी कश्मीर में थोड़ी बहुत जमीनी पकड़ है, अगर उसकी यात्रा रोकी जाती है तो बेमानी होगा। कश्मीर में जब भी चुनाव होंगे, उसमें कांग्रेस और उनके सहयोगी नेशनल कांफ्रेंस की अहम भूमिका होगी।
कंक्लूजनः मांडविया की चिट्ठी का मकसद राहुल को जम्मू-कश्मीर जाने से रोकना है, ये तो साफ नहीं है, लेकिन अगर राहुल कश्मीर नहीं जा पाते, तो इसका फायदा BJP को मिल सकता है।
संभावना-4: अगर कोविड की नई लहर आती है, तो सरकार दोष मढ़ने का टूल खोज रही है। जैसे- पहली लहर में तब्लीगी जमात पर सवाल उठ रहे थे।
एक दूर की संभावना ये भी…
कोरोना महामारी की शुरुआत में यानी मार्च-अप्रैल 2020 में भारत में कोरोना को तब्लीगी जमात से जोड़ा गया। जमात पर कोरोना संक्रमण फैलाने के आरोप भी लगाए गए। इसी सिलसिले में देशभर में कई जगह तब्लीगी जमात के खिलाफ मुकदमे दर्ज किए गए।
अगस्त 2020 में बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज में तब्लीगी जमात मामले में देश और विदेश के जमातियों के खिलाफ दर्ज FIR को रद्द कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि इस मामले में तब्लीगी जमात को बलि का बकरा बनाया गया। कोर्ट ने साथ ही मीडिया को फटकार लगाते हुए कहा था कि इन लोगों को ही संक्रमण का जिम्मेदार बताने का प्रोपेगेंडा चलाया गया।
एक्सपर्ट वर्जन
राशिद किदवई कहते हैं कि पिछली बार जब कोरोना फैला था, तब तब्लीगी जमात को लेकर राजनीति हुई थी। कोरोना महामारी के दौरान एक समुदाय, राजनीतिक दल और वर्ग विशेष को टारगेट किया गया, इससे ज्यादा हास्यास्पद बात क्या होगी?
कोरोना जैसी महामारी किसी धर्म, राजनीतिक दल या क्षेत्र को नहीं देखती है। इसलिए इन मामलों को बहुत ही संजीदगी से देखने की जरूरत है। सरकार पर बड़ा दायित्व होता है।
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