सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय कानून में मैरिटल रेप को एंट्री दे दी है। अभी ये एंट्री केवल अबॉर्शन के लिए ही है। फिर भी ये पहली बार है जब सीमित ही सही, लेकिन मैरिटल रेप को मान्यता मिली है। जबकि सरकार का मानना रहा है कि पति, पत्नी का रेप नहीं करते।
भास्कर एक्सप्लेनर में जानते हैं कि आखिर क्या है शादीशुदा महिलाओं के अबॉर्शन में मैरिटल रेप से जुड़ा फैसला, आखिर मैरिटल रेप होता क्या है...
पहले जानिए सुप्रीम कोर्ट ने शादीशुदा महिलाओं के अबॉर्शन और मैरिटल रेप पर क्या कहा
अबॉर्शन से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा- 'शादीशुदा महिलाएं भी रेप पीड़िताओं की श्रेणी में आ सकती हैं। रेप का मतलब है बिना सहमति संबंध बनाना, भले ही ये जबरन संबंध शादीशुदा रिश्ते में बने। महिला अपने पति के जबरन बनाए संबंध की वजह से प्रेग्नेंट हो सकती है। अगर ऐसे जबरन संबंधों की वजह से पत्नी प्रेग्नेंट होती हैं, तो उसे अबॉर्शन का अधिकार है।'
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पति के जबरन संबंध से पत्नी के प्रेग्नेंट होने का मामला मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल यानी MTP के रूल 3B (a) के तहत रेप माना जाएगा। MPT एक्ट के रूल 3B (a) में महिलाओं की उन कैटिगरी का जिक्र है जो 20-24 हफ्तों की प्रेग्नेंसी तक अबॉर्शन करवा सकती हैं।
कोर्ट ने ये फैसला एक अविवाहित महिला को अबॉर्शन की इजाजत देते हुए सुनाया और कहा कि न केवल शादीशुदा बल्कि अविवाहित महिलाओं को 20-24 हफ्तों की प्रेग्नेंसी तक अबॉर्शन कराने अधिकार है। कोर्ट ने ये भी कहा कि महिला को MTP एक्ट के तहत अबॉर्शन कराने के लिए रेप या यौन उत्पीड़न को साबित करने की जरूरत नहीं है।
ये फैसला जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने सुनाया, जिसमें जस्टिस एएस बोपन्ना और जेबी परिदावाला भी शामिल थे।
अबॉर्शन पर फैसले के दौरान मैरिटल रेप को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कई अहम टिप्पणियां कीं...
सरकार का कहना है- मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने से शादी को खतरा
मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने के लिए दाखिल हो चुकीं कई याचिकाएं
भारत में पिछले कुछ सालों के दौरान मैरिटल रेप पर कानून बनाने की मांग तेज हुई है। दिल्ली हाईकोर्ट 2015 से ही इस मामले पर कई याचिकाओं की सुनवाई कर रहा था। मई 2022 में दिल्ली हाईकोर्ट ने मैरिटल रेप को क्रिमिनलाइज करने की याचिका पर बंटा हुआ फैसला देते हुए कहा था कि मामले पर सुप्रीम कोर्ट को विचार करना होगा।
16 सितंबर 2022 को दिल्ली हाई कोर्ट के मैरिटल रेप पर बंटे हुए फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था। सुप्रीम कोर्ट ने मैरिटल रेप से जुड़े सभी पेंडिंग मामलों की एक साथ सुनवाई पर सहमति जताते हुए मामले की अगली सुनवाई की तारीख फरवरी 2023 में रखी है।
उससे पहले मार्च 2022 में कर्नाटक हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था कि रेप रेप है, चाहे 'पति' द्वारा 'पत्नी' पर ही क्यों न किया जाए। अब तक किसी अदालत ने मैरिटल रेप को अपराध घोषित नहीं किया है।
अब ये समझ लेते हैं कि आखिर मैरिटल रेप क्या है और भारत में इस पर क्या कानून है
रेप को दंडनीय अपराध घोषित करने वाली इंडियन पीनल कोड (IPC) की धारा 375 के अपवाद 2 के मुताबिक मैरिटल रेप अपराध नहीं है। इसके मुताबिक कोई पुरुष अपनी पत्नी से संबंध बनाता है और अगर पत्नी की उम्र 15 साल से कम नहीं है, तो इसे रेप नहीं माना जाएगा। मतलब पति अगर जबरन सेक्स संबंध बनाए, तो भी वह अपराध और रेप नहीं माना जाएगा।
एक नजर भारत में मैरिटल रेप झेलने वाली महिलाओं से जुड़े आंकड़ों पर
दुनिया ने 19वीं सदी में माना कि मैरिटल रेप होता है
जोनाथन हेरिंग की किताब फैमिली लॉ (2014) के मुताबिक, ऐतिहासिक रूप से दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में ये धारणा थी कि पति पत्नी का रेप नहीं कर सकता, क्योंकि पत्नी को पति की संपत्ति माना जाता था।
20वीं सदी तक अमेरिका और इंग्लैंड के कानून मानते थे कि शादी के बाद पत्नी के अधिकार पति के अधिकारों में समाहित हो जाते हैं। 19वीं सदी की शुरुआत में नारीवादी आंदोलनों के उदय के साथ ही इस विचार ने भी जन्म लिया कि शादी के बाद पति-पत्नी के सेक्स संबंधों में महिलाओं की सहमति का अधिकार उनका मौलिक अधिकार है।
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