1971 की बात है। पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश में गृहयुद्ध छिड़ा हुआ था। तभी अक्टूबर में इंडियन नेवी के चीफ एडमिरल एसएम नंदा प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिलने गए थे। प्रधानमंत्री से मिलते ही नंदा ने पूछा, ‘ यदि हम कराची बंदरगाह पर हमला करें, तो क्या इससे सरकार कोई आपत्ति होगी?’
प्रधानमंत्री ने कहा कि आप ऐसा सवाल क्यों पूछ रहे हैं। नंदा ने कहा, ‘1965 में नेवी से खासतौर से कहा गया था कि वो भारतीय समुद्री सीमा से बाहर कोई कार्रवाई न करे।’ इस पर इंदिरा गांधी ने कहा, ‘इफ देयर इज अ वॉर, देयर इज अ वॉर।’ यानी अगर लड़ाई है, तो लड़ाई है।
इसके बाद कराची बंदरगाह पर हमले की योजना बनाई जाती है। 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान की एयरफोर्स भारत में हवाई हमले करता है। 4 दिसंबर 1971 की रात इंडियन नेवी कराची बंदरगाह पर सर्जिकल स्ट्राइक कर उसे तबाह कर देती है। इसे पूरे अभियान को ‘ऑपरेशन ट्राइडेंट’ नाम दिया गया। भास्कर एक्सप्लेनर में हम इसी ऑपरेशन ट्राइडेंट की कहानी बताएंगे, जिसमें पूरा कराची बंदरगाह तबाह हो गया था...
1965 के बाद इंडियन नेवी द्वारका का बदला लेने के लिए उतावली थी
1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध की बात है। पाकिस्तान कश्मीर और पंजाब में बुरी तरह मात खा रहा था। तभी पाकिस्तान की नेवी अपने युद्धपोत PNS खैबर से गुजरात के द्वारका में मिसाइल दागती है। पाकिस्तान का टारगेट था द्वारका में लगा रडार और लाइट हाउस। लेकिन ज्यादातर मिसाइलें या बम मंदिर और रेलवे स्टेशन के बीच की तीन किलोमीटर की समुद्री रेत पर गिरे और बहुत से फटे ही नहीं। हमले में सिर्फ रेलवे गेस्ट हाउस, एक सीमेंट फैक्ट्री और कुछ इमारतों को नुकसान पहुंचा।
इंडियन नेवी उस वक्त पाकिस्तान के हमले का जवाब देना चाहती थी। लेकिन सरकार ने रणनीतिक वजहों से उस वक्त नेवी को डिफेंसिव मोड में ही रहने कहा। 1965 के बाद डिफेंस मिनिस्ट्री को एहसास हुआ कि अब नेवी को मजबूत बनाने का वक्त आ चुका है। इसके बाद भारत सरकार ब्रिटेन से मॉडर्न पनडुब्बियां खरीदने के लिए बात करती है। लेकिन ब्रिटेन मॉडर्न पनडुब्बियों के बजाय बेकार पड़ी 20 साल पुरानी पनडुब्बियों को देने की पेशकश करता है। ब्रिटेन के रुख से उस वक्त के रक्षा मंत्री यशवंत राव चव्हाण काफी नाराज हो जाते हैं।
भारत रूस से मिसाइल बोट्स खरीदता है
इसके बाद यशवंत राव चव्हाण एक डेलिगेशन के साथ सोवियत रूस पहुंच जाते है। मॉस्को में भारतीय डेलिगेशन का खुले दिल से स्वागत हाेता है। सोवियत रूस, भारत को पनडुब्बियों के साथ फ्रिगेट, लैंडिंग शिप्स, और मिसाइल बोट्स देने पर राजी हो जाता है। समझौते की रूप-रेखा रूस के नेवी चीफ एडमिरल गोर्शकोव तैयार करते हैं। समझौते के अनुसार, भारत को ये पनडुब्बियां और फ्रिगेट अगले 3 साल में मिलने थे। इसके बाद 5 जुलाई 1967 को सोवियत रूस से पहले पनडुब्बी INS कलवरी विशाखापट्टनम पहुंचती है।
इसी बीच 1971 के युद्ध के लगभग डेढ़ साल पहले कैप्टन केके नैयर की लीडरशिप में नेवी की एक टीम को सोवियत रूस भेजा गया। इस टीम ने व्लादिवोस्तोक में मिसाइल बोटों को चलाने की ट्रेनिंग लेती है। जब ये ट्रेनिंग चल रही थी तब नैयर अपनी टीम से पूछते हैं कि क्या इन मिसाइल बोट का इस्तेमाल डिफेंस की जगह अटैक करने में भी किया जा सकता है। बताया जाता है कि इन बोट्स की स्पीड काफी ज्यादा थी। हालांकि ये ज्यादा दूर तक नहीं जा सकती थी। तेल की खपत ज्यादा होने के चलते ये बोट्स 500 नॉटिकल मील से दूर नहीं जा सकती थी।
पाकिस्तान पर मिसाइल बोट्स से हमला करने का प्लान बनाया जाता है
ट्रेनिंग के दौरान अटैक के लिए मिसाइल बोट्स का इस्तेमाल करने की बात होती है। इसके बाद नेवी कमांडर विजय जयरथ से इस बारे में प्लान बनाने को कहा गया। जनवरी 1971 में इन मिसाइल बोट्स को मुंबई लाया गया। सोवियत रूस से आने वाली इन मिसाइल बोट्स का वजन 180 टन था। जब इन बोट्स को मुंबई के तट पर उतारने की बात आई तो पता चला कि यहां ऐसा कोई क्रेन ही नहीं है, जो इतनी वजनी बोट्स को उतार सके। इसके बाद इन मिसाइल बोट्स को कोलकाता में उतारा गया।
चूंकि ये बोट्स सिर्फ 500 नॉटिकल मील से दूर नहीं जा सकती थी। ऐसे में इन बोट्स को कोलकाता से मुंबई ले जाना एक चुनौती बन रहा था। इसके बाद इन बोट्स को 8 युद्धपोत से टो करके ले जाया गया। इसके बाद इन मिसाइल बोट्स के साथ युद्धाभ्यास किया गया। इस दौरान नेवी अफसर इनकी मिसाइल की सटीकता देखकर दंग रह गए। अगस्त 1971 तक पूर्वी पाकिस्तान में गृहयुद्ध अपने चरम पर पहुंच चुका था। माना जा रहा था कि इसकी वजह से भारत और पाकिस्तान के बीच एक और युद्ध हो सकता है।
ऐसे में नेवी अफसर तय करते हैं कि यदि युद्ध हुआ तो पाकिस्तान पर इन मिसाइल बोट से हमला किया जाएगा। 23 नवंबर 1971 के दिन पाकिस्तान राष्ट्रपति याह्या खान इमरजेंसी का ऐलान करते हैं और युद्ध के लिए तैयार रहने को कहते हैं। पाकिस्तान जैसे ही यह ऐलान करता है, इंडियन नेवी कराची बंदरगाह पर हमले का प्लान बनाने में जुट जाती है।
1 दिसंबर 1971 को कराची पर हमले का आदेश मिलता है
1 दिसंबर 1971 को नेवी के सभी युद्धपोतों को कराची पर हमले का आदेश मिलता है। तय होता है कि कराची पर 3 मोबाइल बोट्स INS निपात, INS वीर और INS निर्घट से अटैक किया जाएगा। इसके बाद 2 दिसंबर 1971 को पूरा वेस्टर्न फ्लीट मुंबई से कराची के लिए निकलता है।
वेस्टर्न नेवल कमांड के फ्लैग ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ रहे एसएन कोहली अपनी किताब 'वी डेयर्ड' में लिखते हैं, ' 23 नवंबर के बाद तीन मिसाइल बोट को गश्त करने के लिए गुजरात के ओखा तट पर रखा गया था। उन्होंने ओखा के आस-पास के क्षेत्र के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी जुटाई। चूंकि बेड़ा कराची से बहुत दूर नहीं था। ऐसे में एक लाइन बनाई गई, ताकि दुश्मन देश की नेवी के साथ कोई टकराव नहीं हो।'
इसी बीच पाकिस्तानी अफसरों ने कराची जाने वाले सभी व्यापारिक जहाजों को सूर्यास्त और भोर के बीच 75 मील के भीतर बंदरगाह तक नहीं आने की चेतावनी दी थी। इसका मतलब यह था कि इस दौरान रडार पर जो भी युद्धपोत आएगा, उसके पाकिस्तानी होने की संभावना होगी।
4 दिसंबर की रात हमले के लिए 3 मिसाइल बोट्स कराची पहुंचती हैं
3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान की वायुसेना भारत के कई सैनिक अड्डों पर बमबारी करती है। इसके बाद भारत युद्ध का ऐलान कर देता है। 4 दिसंबर 1971 की रात 3 मिसाइल बोट्स INS निपात, INS वीर और INS निर्घट कराची पर हमला करने के लिए निकलते हैं। उनको दो फ्रिगेट INS किल्टन और कछाल टो करके ले जा रहे थे।
इंडियन नेवी का दल कराची से 40 किलोमीटर दूर था, तभी रडार पर उसे एक हलचल महसूस होती है। यह हलचल पाकिस्तानी युद्धपोत PNS खैबर की थी, जो उनकी तरफ बढ़ रहा था। PNS खैबर वही युद्धपोत था, जिसने 1965 में द्वारका पर इंडियन नेवी के ठिकाने पर हमला किया था।
पहला हमला रात 10 बजकर 40 मिनट पर किया जाता है
रात ठीक 10 बजकर 40 मिनट पर INS निपात पर मौजूद स्क्वार्डन कमांडर बबरू यादव INS निर्घट को अपना रास्ता बदलने और पाकिस्तानी युद्धपोत पर हमला करने का आदेश देते हैं। जैसे ही PNS खैबर इंडियन नेवी की रेंज में आता है। INS निर्घट उस पर मिसाइल से हमला करता है।
अपनी तरफ आ रही मिसाइल को PNS खैबर ने लड़ाकू विमान समझकर उस पर एंटी एयरक्राफ्ट गन से निशाना साधा। लेकिन मिसाइल नहीं रुकी और सीधे PNS खैबर पर लगी। इससे खैबर हिल गया और बॉयलर रूम में भीषण आग लग गई। उसमें मौजूद जवानों को पता ही नहीं चला कि हमला कहां से हुआ है? तुरंत ही INS निर्घट को खैबर पर एक और मिसाइल दागने का आदेश मिला। खैबर पर मौजूद पाकिस्तानी नौसैनिक के जवान कुछ सोच पाते कि तभी 11 बजकर 20 मिनट पर दूसरी मिसाइल चली और खैबर डूब गया। एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस हमले में पाकिस्तानी नेवी के 222 जवान मारे गए।
रात 11 बजे INS निपात का सामना एक अज्ञात पोत से होता है। निपात ने पलक झपकते ही इस पर मिसाइल दागी। जैसे ही निपात ने दूसरी मिसाइल दागी, उससे पोत में आग लग गई और धुंआ निकलने लगा। बाद में पता चला कि यह पोत MV वीनस चैलेंजर था, जो अमेरिका से हथियार लेकर पाकिस्तान जा रहा था। इसी बीच निपात ने PNS शाहजहां पर भी मिसाइल दागी। इससे शाहजहां को बहुत नुकसान पहुंचा।
आग की लपटों को 60 किमी की दूरी से भी देखा जा सकता था
11:20 मिनट पर INS वीर ने PNS मुहाफिज पर मिसाइल दागी। मुहाफिज तुरंत डूब गई और इसमें मौजूद 33 जवानों की मौत हो गई। इसी बीच INS निपात कराची पोर्ट की तरफ बढ़ता गया। कराची पोर्ट पाकिस्तान के लिहाज से बहुत खास था, क्योंकि इसके एक तरफ पाकिस्तान नेवी का हेडक्वार्टर था और दूसरी तरफ तेल भंडार।
मिसाइल बोट्स को कराची की तरफ ज्यादा से ज्यादा मिसाइल दागने के आदेश दिए गए थे। इसी दौरान INS निपात को रडार में किमारी तेल टैंक दिखाई देता है। INS निपात ने पोर्ट की ओर दो मिसाइल दागी। एक मिसाइल चूक गई, जबकि दूसरी सीधे तेल के टैंक में जाकर लगी। जबरदस्त विस्फोट हुआ। बताते हैं कि विस्फोट इतना जबरदस्त था कि आग की लपटों को 60 किमी की दूरी से भी देखा जा सकता था। बताया जाता है कि कराची पोर्ट 7 दिनों तक झुलसता रहा।
‘ऑपरेशन ट्राइडेंट' की वजह से ही 4 दिसंबर को ‘नेवी डे’ मनाया जाता है
करीब 5 दिन तक ये पूरा ऑपरेशन चला। नेवी ने इसे 'ऑपरेशन ट्राइडेंट' नाम दिया। इस पूरे ऑपरेशन में भारत को कोई नुकसान नहीं पहुंचा, जबकि पाकिस्तान के कई जवान इसमें मारे गए और उसके तेल टैंक तबाह हो गए। 4 दिसंबर को शुरू हुए इस ऑपरेशन की वजह से ही हर साल 4 दिसंबर को ‘नेवी डे’ मनाया जाता है।
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