2019 लोकसभा चुनाव के दौरान कर्नाटक के कोलार में भाषण देते हुए राहुल गांधी ने भगोड़े बिजनेसमैन नीरव मोदी और ललित मोदी का जिक्र करते हुए कहा- सभी चोरों का सरनेम मोदी क्यों है...।
अगले ही दिन पूर्णेश मोदी नाम के शख्स ने राहुल पर सभी मोदी सरनेम वाले लोगों की मानहानि का आरोप लगाते हुए सूरत में शिकायत दर्ज करा दी। पूर्णेश मोदी के मुताबिक राहुल ने अपने राजनीतिक फायदे के लिए 13 करोड़ मोदी सरनेम वाले लोगों को 'चोर' कहा है।
इसी मामले में सूरत की एक अदालत ने राहुल गांधी को मानहानि का दोषी पाते हुए 2 साल कैद की सजा सुनाई है। इसके अगले ही दिन राहुल गांधी की संसद सदस्यता खत्म करने का नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया। इसके खिलाफ कांग्रेस प्रदर्शन कर रही है। BJP का स्टैंड है कि राहुल ने ये बयान देकर OBC यानी पिछड़ी जातियों का अपमान किया है।
भास्कर एक्सप्लेनर में जानेंगे कि आखिर मोदी कौन होते हैं, जिनकी मानहानि की वजह से राहुल की सांसदी चली गई और इतना हंगामा मचा हुआ है...
सामाज विज्ञानी और लेखक अच्युत याग्निक का कहना है कि भारत में ‘मोदी’ सरनेम मुख्यतौर पर दो समुदाय इस्तेमाल करते हैं। तेली और बनिया। कुछ पारसी भी मोदी उपनाम लगाते हैं। गुजरात में इस समुदाय के लोग हिंदू और मुस्लिम दोनों ही धर्मों में होते हैं। लेकिन, मुख्यतौर पर तेली जाति के लोग ही मोदी सरनेम लगाते हैं।
मोदी सरनेम का ऐतिहासिक इवॉल्यूशन
JNU के प्रोफेसर घनश्याम शाह के मुताबिक मोदी समुदाय के ओरिजिन को लेकर कुछ खास जानकारी नहीं है। उनके मुताबिक 15वीं और 16वीं सदी में एक घुमंतू समुदाय गुजरात आकर बस गए। यहां मूंगफली और सीसम का तेल निकालने और उसे बेचने का काम करने लगे। इन्हें अलग-अलग हिस्सों में तेली, घांची या घांचा कहा जाने लगा। धीरे-धीरे ये राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा और झारखंड में भी फैल गए।
गुजरात के मोधेरा इलाके में एक मोधेश्वरी देवी का मंदिर हैं। मोधेश्वरी माता के अनुयायियों को मोध-घांची कहा जाने लगा। भारत सरकार के पूर्व सचिव और नेशनल कमीशन फॉर बैकवर्ड क्लास के मेंबर रहे पीएस कृष्णन का कहना है कि मोध कोई जाति नहीं है। ये समुदाय के उन लोगों के बारे में बताती है, जो मोधेश्वरी को मानते हैं। माना जाता है कि यही मोध-घांची बाद में मोदी सरनेम लगाने लगे।
क्या मोदी सरनेम वाले सभी लोग OBC होते हैं?
नहीं ऐसा नहीं है। लेखक अच्युत याग्निक के मुताबिक मोदी सरनेम के दो उपसमूह हैं, ‘एक बनिया व्यापारी समुदाय था और दूसरा तेली-घांची खानाबदोश समुदाय था। घांची वो थे जिन्हें OBC का दर्जा दिया गया, लेकिन बनिया मोदी की आर्थिक स्थिति के कारण कुछ सामाजिक प्रतिष्ठा थी। वो जनरल कैटेगरी में आते हैं।’
कुछ पारसी भी मोदी उपनाम लगाते हैं। गुजरात में इस समुदाय के लोग हिंदू और मुस्लिम दोनों ही धर्मों में होते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मोध-घांची समुदाय से हैं, जो OBC कैटेगरी में आता है। मोदी सरनेम वाले कई चर्चित लोग हैं, जो अलग-अलग समुदाय के हैं और OBC कैटेगरी में नहीं आते।
जैसे- चर्चित कारोबारी रूसी मोदी और फिल्म पर्सनैलिटी सोहराब मोदी पारसी समुदाय के थे। भगोड़ा कारोबारी नीरव मोदी गुजरात के जामनगर इलाके से है। इनकी जाति के लोग पारंपरिक रूप से हीरे का कारोबार करते थे। इसी तरह पूर्व IPL चेयरमैन ललित मोदी के दादा राय बहादुर गुजर मल मोदी महेंदरगढ़ से मेरठ के करीब जा बसे और उस कस्बे का नाम मोदीनगर पड़ गया।
क्या मोदी सरनेम वाली मोध-घांची लोग पिछड़ी जाति के यानी OBC हैं?
भारत सरकार के पूर्व सचिव और नेशनल कमीशन फॉर बैकवर्ड क्लास के मेंबर रहे पीएस कृष्णन के मुताबिक देश के दक्षिणी राज्यों में तेली या घांची समुदाय को आजादी के पहले भी सरकारी कागजों में पिछड़ा माना गया था।
आजादी के बाद सेंट्रल और नॉर्थ इंडिया के भी कई राज्यों में इस जाति को पिछड़ी जाति की सूची में शामिल किया गया। इस सूची में शामिल करने के लिए तेली जाति के लोकल नाम का इस्तेमाल किया गया था।
देश की आजादी के बाद 1955 में प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री और पत्रकार काका कालेकर के नेतृत्व में पहला पिछड़ा आयोग बना। इस आयोग ने गुजरात और इसके आसपास रहने वाले तेली या घांची समुदाय को पिछड़ा वर्ग में शामिल करने सिफारिश की थी।
इसके 24 साल बाद 1979 में बने दूसरे पिछड़े आयोग ने एक बार फिर गुजरात में रहने वाले तेली और मोध घांची को बैकवर्ड क्लास की लिस्ट में शामिल किया। मोदी सरनेम वाले तेली समुदाय को गुजरात में मोध घांची कहते हैं। उत्तर पूर्वी गुजरात के मोढेरा इलाके में इनकी आबादी ज्यादा है। वहीं, दूसरे राज्यों में इन्हें साहू या तेली के नाम से भी जाना जाता है।
JNU के प्रोफेसर घनश्याम शाह के मुताबिक 1994 में मोदी सरनेम वाले मोध घांची को गुजरात में ओबीसी का दर्जा मिला। इसके बाद केंद्र सरकार की लिस्ट में शामिल होने के लिए इस समुदाय ने अपनी लड़ाई जारी रखी।
इसी समय गुजरात तेली साहू महासभा के जनरल सेक्रेटरी एन.एस. चौधरी ने नेशनल कमीशन फॉर बैकवर्ड क्लास यानी NCBC को एक पत्र लिखा। अपने पत्र में उन्होंने तेली और इसकी 16 उपजातियों को केंद्र सरकार की बैकवर्ड क्लास की लिस्ट में शामिल करने की अपील की। इसमें मोदी सरनेम वाले मोध घांची समुदाय को भी शामिल किया गया था।
28 अगस्त 1997 को नेशनल कमीशन फॉर बैकवर्ड क्लास यानी NCBC ने दो मेंबर्स की बेंच बनाई। इस बेंच को इस मामले में फैसला लेना था। इसके बाद तेली, मोध घांची को इस लिस्ट में शामिल कर लिया गया।
मोदी सरनेम वाले घांची समुदाय के पिछड़े वर्ग से होने पर सवाल क्यों?
भारत सरकार के पूर्व सचिव पीएस कृष्णन कहते हैं कि जो लोग मोदी सरनेम वाले घांची को पिछड़े वर्ग से होने पर सवाल करने वालों का कहना है कि मोदी सरनेम वाले जाति को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग यानी SEDBC में शामिल नहीं किया गया था। इसे बाद में गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने पिछड़े वर्ग में शामिल किया है।
कृष्णन एक आर्टिकल में आगे लिखते हैं कि मोदी सरनेम वाले मोध घांची के पिछड़े वर्ग में होने पर आरोप लगाना सही नहीं है। इसकी वजह यह है कि नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री बनने से पहले ही इस समुदाय को पिछड़े वर्ग में शामिल कर लिया गया था।
2014 में कांग्रेस ने जब ये मुद्दा उठाया तो गुजरात सरकार के प्रवक्ता नितिन पटेल ने कहा था कि गुजरात सरकार के समाज कल्याण विभाग ने 25 जुलाई 1994 को एक नोटिफिकेशन जारी किया था। जिसमें 36 जातियों को ओबीसी कैटेगरी में शामिल किया था और इसमें संख्या 25(ब) में मोध घांची जाति का भी जिक्र है। हालांकि, घांची समुदाय की बाकी उप-जातियां, जो इस लिस्ट से बाहर थी, उसे 2002 में गुजरात सरकार ने इस लिस्ट में शामिल किया।
मोदी सरनेम की मानहानि एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा क्यों बन सकती है?
24 मार्च को बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने ट्वीट कर कहा कि सूरत कोर्ट ने राहुल को OBC समाज के प्रति उनके आपत्तिजनक बयान के लिए सजा सुनाई है। अब बीजेपी देशभर में 6 अप्रैल से 14 अप्रैल के बीच 1 लाख गांव और 10 लाख ओबीसी समुदाय के घरों तक पहुंचने के लिए अभियान चला रही है।
पॉलिटिकल एक्सपर्ट राशिद किदवई का कहना है कि NSSO के मुताबिक देश में ओबीसी समुदाय की 40% से ज्यादा आबादी है। ऐसे में इस वर्ग को अपनी ओर रिझाने के लिए बीजेपी इस मुद्दे को अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहती है। इसलिए इसे एक बड़ा मुद्दा बना सकती है।
किदवई बताते हैं कि 1980 में पार्टी बनने के बाद बीजेपी को सवर्णों और वैश्यों की पार्टी माना जाता था, लेकिन समय के साथ अपने सोशल इंजीनियरिंग के जरिए बीजेपी नेताओं ने इस धारणा को खत्म किया। 1990 के बाद अलग-अलग तरह से भाजपा ने ओबीसी समुदाय को अपने तरफ रिझाने में सफलता हासिल की है।
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